
‘विश्व हिन्दी सचिवालय मॉरीशस’ का कार्यक्रम ‘हिन्दी साहित्य के प्रति अभिरुचि’
“विश्व हिन्दी सचिवालय मॉरीशस” का कार्यक्रम “हिन्दी साहित्य के प्रति अभिरुचि” भाग -20 का 08 दिसंबर 2024 (रविवार) को आभासी पटल द्वारा आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में भारत से कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जी ”विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस” की महासचिव, डॉ. माधुरी रामधारीसिंह जी, विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस के उपमहासचिव, संयुक्त अरब अमीरात से क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्कृष्टता केंद्र, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, दुबई संयुक्त अरब अमीरात में निदेशक डॉ. राम शंकर जी, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की हिंदी से प्यार है संस्था के संस्थापक श्री अनुप भार्गव जी हमारे साथ उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के संचालन का दायित्व नीदरलैंड से डॉ ऋतु शर्मा ननंन पाँडे “अध्यक्ष अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड “ ने निभाया।
इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले शिक्षकों में जापान के ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल से हिंदी शिक्षिका, मीनाक्षी अग्रवाल अपने छात्र आओई हाशिबा, न्यूज़ीलैंड के वैलिंग्टन हिंदी विद्यालय की अध्यक्षा सुनीता नारायण अपनी ग्यारह वर्षीय छात्रा काव्या कृष्णा और फ़िजी के मुलोमुलो सेकेंडरी स्कूल से भाषा शिक्षिका रीमा रंजीता जी अपने छात्र हर्षल चंद के साथ कार्यक्रम में उपस्थित रहीं ।
कार्यक्रम का आरंभ”विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव, डॉ. माधुरी रामधारी जी के स्वागत-भाषण द्वारा किया गया।अपने स्वागत भाषण मे उन्होंने कार्यक्रम के अध्यक्ष सहित सभी प्रतिभागियों का “हिन्दी के प्रति अभिरुचि “ और विदेशों में हिन्दी के प्रति अभिरुचि पैदा करने के लिए सभी का उत्साह वर्धन किया।
छात्रों में प्रथम वक्ता आओइ हाशिबा, जापान ने अपने वक्तव्य में बताया की कुछ वर्षों पहले जब वह अपने माता पिता के साथ भारत गए थे तो उन्हें भारतीय संस्कृति और भाषा से प्रेम हो गया था। उन्होंने सोचा जापान में भी बहुत भारतीय रहते हैं, किन्तु जापानी भाषा का ज्ञान होने के कारण वह जापानी समाज से जुड़ नहीं पाते। इसलिए यदि वह हिन्दी भाषा सीख कर भारतीय निवासीयों से संपर्क कर सकें और दोनों देशों की संस्कृतियों के बीच सामंजस्य स्थापित कर सकें तो बहुत अच्छा रहेगा। यही से उनकी हिन्दी भाषा को सीखने की शुरुआत हुई। आज वह हिन्दी कक्षा आठ के छात्र हैं।
कार्यक्रम में भाग लेने वाली ग्यारह वर्षीय द्वितीय छात्रा काव्या दिशिता कृष्णा, ने न्यूज़ीलैंड की संस्कृति के विषय में बताते हुए एक हिन्दी में अनुदित एक कहानी के पाठन के माध्यम से दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत की।
कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति ‘धरती मेरी माँ’ फ़िजी के छात्र हर्षल चंद ने बताया कि किस तरह से कई सौ वर्षों पूर्व गए गिरमिटिया भारतीयों को आज भी अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी पड़ रही है।
इस कार्यक्रम में इन छात्रों की अध्यापिकाओं ने भी विदेश में हिन्दी पढ़ने और पंढाने के लिए अपनाए जाने वाले तरीक़ों, प्रोत्साहन पुरस्कारों आदि के विषय में जानकारी कार्यक्रम में प्रस्तुत की।
अध्यक्ष के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री, मुख्य मंत्री व मूर्द्धन्य साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल“ निंशक” ने कार्यक्रम में प्रतिभाग कर साहित्यप्रेमियों को संबोधित एवं विभिन्न देशों से जुड़ी प्रतिभागियों, युवा और विद्यार्थियों से संवाद किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा- “वर्चुअल संगोष्ठी के दौरान, जब मैं विभिन्न देशों से जुड़ी प्रतिभागियों और युवा लेखकों से बात कर रहा था, यह स्पष्ट हुआ कि हिंदी साहित्य केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर, परंपराओं और राष्ट्रबोध का गहरा प्रतीक है। आज के युवाओं में साहित्य के प्रति जो गहरी रुचि और विचारशीलता देखी, उसने यह विश्वास मजबूत किया कि साहित्य समाज में बदलाव लाने का एक सशक्त माध्यम बन सकता है।”
“हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि साहित्य केवल अध्ययन का विषय न बने, बल्कि यह हमारे जीवन का हिस्सा बने। जब युवा पीढ़ी साहित्य और संस्कृति के महत्व को समझेगी, तभी समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव है।
आइए, हम सभी मिलकर साहित्य के माध्यम से समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को महसूस करें और इसे अपनी पहचान बनाएँ।”
कार्यक्रम के अंत में डॉ ऋतु शर्मा ननंन पाँडे व “विश्व हिन्दी सचिवालय मॉरीशस“ की निदेशक डॉ माधुरी रामधारी सिंह जी ने आभार ज्ञापन द्वारा कार्यक्रम में उपस्थित व आभासी पटल से जुड़े सभी दर्शकों व श्रोताओं का का भी आभार व्यक्त किया।
रिपोर्ट : डॉ ऋतु शर्मा ननंन पाँडे, अध्यक्ष अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड