
मेरे राम लला
एकटक तकतीं शून्य में,
बाट जोहती प्रति क्षण,
पंथ निहारतीं.. तरसती दरस को,
अंखियां मेरी प्रतीक्षा में तेरी,
ओ मेरे राम लला।
सुध-बुध बिसरा के,सर्वस्व भूला के,
राम नाम जपते जपते,
सिया राम की धुन में रम के,
बावले हुए ऐसे लीन भक्ति में तेरी,
ओ मेरे राम लला।
निर्भीक हो डटे रहे..
बिना थके चलते रहे,
सालों साल इस धर्म की लड़ाई में..
अधिकारों की लड़ाई में..
तेरे सम्मान की लड़ाई में,
ओ मेरे राम लला।
क़रीब पांच सौ वर्षों से तत्पर,
आस्था की लौ को जलाए रक्खा,
डगमगाने ना दिया ज़रा भी,
विश्वास ऐसा अटल रक्खा,
ओ मेरे राम लला।
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– अंतरा राकेश तल्लम