
आशीष में जुड़ें हाथ
– शशि पाधा
अपने पैंतीस वर्ष के सैनिक जीवन में कितने ही लोगों से मिली हूँ, कितनी छावनियाँ देखी हैं। कुछ ऐसे पल, कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी स्मृति कोमल, ठंडी-सी छुअन का अहसास देती है….
वर्ष 1983 में जब मेरे पति को भारतीय सेना की सब से पुरानी यूनिट ‘वन पैरा कमांडो , स्पेशल फोर्सेस के कमान अधिकारी होने का उत्तरदायित्व मिला तो मन में खुशी, गर्व के साथ कमान अधिकारी की पत्नी के दायित्व को निभाने की उमंग भी थी।
हिमाचल तो वैसे ही खूबसूरत राज्य है और उस पर इसी राज्य की एक पहाड़ी पर स्थित नाहन नगर में हमारी पलटन की छावनी थी। छावनी में कमान अधिकारी का घर बिलकुल आरम्भ में ही था। अंग्रेजों के समय का पत्थरों से बना हुआ, ऊँची छत, फायर प्लेस, लम्बे- लम्बे बरामदे और छोटा से बगीचा। कुल मिला कर मैं यही कहूँगी कि मानो स्वर्ग का एक सुंदर सा कोना ही था हमारा घर।
अप्रेल महीने में पहाड़ों पर वसंत अपने पूरे यौवन पर होता है। हमारे घर का बगीचा भी सुन्दर रंग बिरंगे फूलों से महक रहा था। कभी कभी मैं अपनी दिनचर्या से कुछ पल चुरा कर बगीचे में आती तो एक माली बाबा को चुपचाप खुरपी से क्यारियों में काम करते देखती। मुझे देखते ही वे खड़े हो जाते। आँखें नीची और हाथ जोड़ कर कहते, ”नमस्ते मेम साहब जी।”
मैं भी अभिवादन में नमस्ते कहती और वे अपने काम में जुड़ जाते। मुझे तब तक बहुत से फूलों के नाम नहीं आते थे। घर में गुलाब, गेंदा, चमेली आदि तो पता थे लेकिन यहाँ तो भांति-भांति के फूल थे। धीरे-धीरे मैं भी माली के साथ बगीचे में काम करने लगी।
आयु में मुझे वह वृद्ध लगे इसीलिये मैं उन्हें बाबा कह कर पुकारती थी। मैंने उनसे कभी उनका नाम नहीं पूछा। हाँ! फूलों के नाम ज़रूर पूछती थी। बाबा हर फूल का अंग्रेज़ी और हिन्दी में नाम बताते थे। मैंने एक बार पूछ लिया कि आप कहाँ तक पढ़े हो, तो उन्होंने हँसते हुए कहा, “बस अंग्रेज़ी में फूलों के नाम जानने तक।”
एक बार बता दिया था, “मेम साहब जी, मैंने अंग्रेजों के घरों में और उनके दफ्तरों में माली का काम किया है। इसीलिए यह नाम जानता हूँ।”
कभी निम्बूपानी का गिलास या रूहफ्जा मैं उनके लिए भिजवाती तो हाथ जोड़ कर खूब आशीष देते। मैं समझ सकती थी कि अंग्रेजों के घरों में काम करने के कारण उन्हें हमेशा आँख नीची करके ही बात करने की आदत पड़ गयी थी। उम्र और परिस्थियाँ बदलने के बाद भी उनकी यह आदत बदली नहीं।
नये फूल आते तो एक गुलदस्ता बना कर वे मुझे अवश्य भेट करते। मैं भी उनका कुशल मंगल पूछ लेती थी। तीन साल तक हम उस घर में रहे और माली बाबा घर के सदस्य की तरह ही रहे।
रोज सुबह जब मेरे पति ऑफिस जाने के लिए बाहर निकलते, सेवादार, ऑफिस अर्दली और ड्राइवर के साथ माली बाबा भी कतार में खड़े होकर इनका अभिवादन करते। मेरे पति कभी कभी बाबा के पास रुक कर उनसे कुछ बात कर लेते थे। बाबा की आँख नीची और हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में ऊपर होते। यह रोज़ का नियम था।
तीन साल कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला। हमारे बगीचे में कितने मौसम आये और चले गये, इसका भी पता नहीं चला। हाँ! बाबा के साथ बातचीत में मैं उनके परिवार के बारे में भी जान गयी थी।
हमारी पोस्टिंग वहाँ से दूर एक और पहाडी क्षेत्र में हो गयी। उसके बाद न जाने कितने शहर देखे, कितने लोगों से मिले। इसका लेखा- जोखा करने लगूँगी तो एक पूरी किताब हो जायेगी। खैर! आज तो बात माली बाबा की हो रही है न …
लगभग बारह वर्षों के बाद मेरे पति की पोस्टिंग एक बार फिर से नाहन छावनी में हो गयी। वहाँ मैं सब को जानती थी। अपना सा शहर था और इनके स्टाफ में भी बहुत लोगों को जानती थी।
जैसे ही दोपहर के समय हमारी गाड़ी नाहन पहुँची तो स्वागत की कतार में खड़े अधिकारियों के ठीक पीछे खड़े माली बाबा पर मेरी दृष्टि पड़ी। फौज में कभी- कभी औपचारिकताएँ आपके पाँव रोक लेती हैं। लेकिन सब से मिलते मिलते हम दोनों ने बाबा को आगे बुलाया और उनका अभिवादन किया। लगा, हमारे आने से बाबा भी खुश थे।
मेरे पति की उन्नति हो गयी थी। अब यह ब्रिगेडियर थे, इसी लिए घर भी सब से अलग छोटी सी पहाड़ी के ऊपर था, बाकी घरों से थोड़ा दूर।
खुशी की बात यह थी कि घर में सारा पुराना स्टाफ ही काम करने को इच्छुक था। वही धोबी भैया, वही कुक, वही सफाई कर्मचारी और वही माली बाबा। मुझे इस नये घर में व्यवस्थित होने में कोई दुविधा नहीं हुई।
बाकी सहायकों की तरह माली बाबा ने भी अपना बगीचा सम्भाल लिया। इस घर का बगीचा बहुत बड़ा था और काम भी ज़्यादा था। बाबा हर सुबह खुरपी लेकर काम में लग जाते। मैं स्कूल में पढ़ाने लगी थी। जाने पर बाबा को नमस्ते कहती और वह आशीष में हाथ उठा देते।
उस वर्ष हमारे बगीचे में इतनी रौनक नहीं आई थी। फूलों की भी कमी भी लग रही थी। मेरे मन में आया …शायद बाबा बूढ़े हो चले हैं, उनसे अब इतना काम नहीं होता है। कई बार बाबा से उनके स्वास्थ के बारे में पूछा लेकिन हर बार उन्होंने कहा, “ठीक हूँ मेम साहब जी।” मेरे बिना कुछ पूछे ही कह दिया, “इस बार शायद गर्मी ज़्यादा पड़ी है, फूल कम ही आ रहे हैं।” उनकी आवाज़ कुछ कमज़ोर सी लग रही थी।
मुझे न जाने क्या सूझी। कभी- कभी इतनी बड़ी गलती हो जाती है कि उसके फल का अहसास ही नहीं होता। मैंने इनके स्टाफ अधिकारी से कहा, “लगता है माली बाबा से अब इतना काम नहीं हो सकता ही। आप इन्हें कहीं और शिफ्ट कर दें, जहाँ कम काम हो, और किसी और माली को हमारे घर भेज दें।”
अगली सुबह घर में नया माली आ गया। अगर कभी मैं सुबह बगीचे की ओर चली जाती तो वह खड़े हो कर नमस्ते अवश्य कहता और फिर अपने काम में जुड़ जाता। क्यारियों में फूल तो बिलकुल वैसे थे लेकिन कुछ था जो नहीं था।
जो गुम था, उसे मैं ढूँढ नहीं पाई।
मेरे पति एक सप्ताह के लिए कहीं दूर गये हुए थे। मैं भी वेलफेयर, लेडीज़ मीट आदि फौजी कार्यक्रमों में व्यस्त थी।
लौट आने के बाद एक दिन मेरे पति जैसे ही ऑफिस से आये, मुझसे कहा, “आज सुबह माली बाबा को नहीं देखा। बगीचे में कोई नया माली काम कर रहा था। बाबा ठीक तो हैं न?”
इनके स्वर में चिंता थी। मैंने सहज ही कह दिया, ”मैंने स्टाफ ऑफिसर से कह आकर माली बदलवा लिया है। बाबा से इतना काम होता नहीं था। सारे स्टेशन में हमारा बगीचा ही थोड़ा कम सुन्दर दिखाई दे रहा था। किसी और जगह बाबा को कम काम होगा, यही सोच कर,”…
“आप जानती हैं आपने क्या किया।” इनकी आवाज़ में थोड़ी तल्खी सी थी। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि ऐसा क्या हो गया।
“ओह! मैं हर सुबह ऑफिस जाते हुए जब बगीचे से गुजरता था तो बाबा को प्रणाम करता था। उनके आशीष में उठे हुए हाथ तब तक ऊपर रहते, जब तक मैं अपनी गाड़ी में नहीं बैठ जाता। उनके आशीष से मेरा पूरा दिन अच्छे कामों में बीतता था। गर्मी हो, बारिश हो, सर्दी हो — मैंने बाबा को कभी अनुपस्थित नहीं देखा। मुझे उनमें अपने बाबा दिखाई देते थे। उनके होने से मैं सुरक्षित महसूस करता था।”
मैं हैरान सी इनकी ओर देख रही थी। मुझे यह सब मालूम ही नहीं था। बाबा मेरे साथ बातचीत करते हैं, आशीष देते हैं यह तो मुझे पता था। इनके साथ बाबा का इतना गहरा रिश्ता था …मैं नहीं जानती थी।
मुझे बहुत ग्लानि हुई और मेरी आँखें भर आईं । इन्होंने उसी क्षण स्टाफ ऑफिसर को फोन करके हिदायत दी कि कल से माली बाबा को हमारे घर फिर से भेज दें।
अगली सुबह स्कूल जाते हुए मैंने देखा कि मेरे पति और माली बाबा क्यारियों के पास खड़े फूलों की बातें कर रहे थे। बाबा इन्हें अंग्रेज़ी में फूलों के नाम और किस्में समझा रहे थे। ऐसा तो मैंने पहले कभी नहीं देखा था। आज इन्हें ऑफिस जाने की कोई जल्दी नहीं थी।
उस दिन मेरे बगीचे के सारे फूल मुस्कुरा रहे थे।
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