हिन्दी के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन : उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ

वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं सहित  नई दिल्ली में आयोजित विश्व हिन्दी दिवस एवं अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन के मद्देनजर हिन्दी सम्मेलनों की उपलब्धियों और चुनौतियों पर गहन चर्चा हुई। मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ॰ रमेश पोखरियाल निशंक जी पधारे थे। उन्होने सभी को शुभ कामनाएं दी और कहा कि बड़ी चुनौतियाँ बड़ी सफलता भी सँजोये रखती हैं। हमें वसुधेव कुटुंबकम के अनुसार हिन्दी को केवल बाजार ही नहीं बल्कि परिवार और प्यार की भाषा के रूप में अंगीकार करना चाहिए। हिन्दी में अथाह वैश्विक सामर्थ्य है। हिन्दी के सम्मेलन मंथन के पश्चात अमृत तत्व प्रदान करते हैं। उन्होने देहरादून के थानों लेखक ग्राम के समारोहों को उद्घृत करते हुए कहा कि बेशक नालंदा में पुस्तकें जला दी गईं किन्तु ज्ञान को नहीं जलाया जा सकता। हम सब भाषा, संस्कृति और भारतीयता आदि के साथ एकजुट होकर अग्रसर रहें। अध्यक्षीय उद्बोधन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष एम्बेस्डर विनोद कुमार जी ने कहा कि हमें सामूहिक सत प्रयत्न से वैश्विक सम्मान, संवाद, सुरक्षा, समृद्धि और सांस्कृतिक रक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी का मन्तव्य था कि 10 से 12 जनवरी 2025 को नई दिल्ली में आयोजित सम्मेलन, जी 20 सम्मेलन के पूरक रूप में डायस्पोरा का बृहद रूप और मील का पत्थर स्वरूप सिद्ध होगा । इस अवसर पर देश विदेश से अनेक साहित्यकार,विद्वान विदुषी, प्राध्यापक शिक्षक, शोधार्थी विद्यार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े थे। 

    आरंभ में भारत से डॉ॰ जयशंकर यादव द्वारा आत्मीयता से स्वागत किया गया। संचालन की बागडोर रेल मंत्रालय में राजभाषा के पूर्व निदेशक और साहित्यकार डॉ॰ बरुन कुमार ने बखूबी संभाली। अरमीनियाँ में पूर्व प्रोफेसर एवं साहित्यकार डॉ॰ अनीता वर्मा का कहना था कि पिछले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों से सीखकर हम सब नई दिल्ली सम्मेलन हेतु पूरी तैयारी के साथ स्वागत में तत्पर हैं। हैदराबाद से जुड़ीं लेखिका डॉ॰ मणिक्यांबा मणि ने कहा कि हिंदीतर क्षेत्र में सम्मेलनों का व्यापक सकारात्मक प्रभाव है। इससे देश प्रेम और एकात्मकता को बढ़ावा मिलता है। सुप्रसिद्ध तकनीकीविद और माइक्रोसॉफ्ट एशिया में मार्केटिंग प्रमुख श्री बालेंदु शर्मा दाधीच का मत था कि मानवतावाद को बढ़ावा देते हुए तकनीकी विकसनशीलता पर यथेष्ट ध्यान देना चाहिए और सम्मेलनों में पोडियम से लेकर जमीनी स्तर तक नवाचार और आधुनिक तकनीकी का प्रयोग करना चाहिए।

     विशिष्ट अतिथि के रूप में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्री श्याम परांडे का कहना था कि विश्व में भारत की ख्याति प्रायः मेधा, संस्कृति और तकनीकी से की जाती है। दुनियाँ में भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन का अनुकरण सम्मानजनक है। इससे भाषायी सुदृढ़ता स्वाभाविक है। भारतीय डायस्पोरा का हिन्दी सम्मेलनों में सक्रिय सहयोग रहेगा। मुख्य वक्ता के रूप में जापान से जुड़े पद्मश्री से सम्मानित प्रो॰ तोमियो मीजोकामि ने कहा कि भारतीय भाषाओं में भारतीयता विलक्षण रूप में निहित है। उन्होने व्यतिरेकी भाषा विज्ञान,प्रतिध्वनि,संयुक्त व रंजक क्रियाओं आदि का भी जिक्र किया। अपने विशद अनुभव से उनका कहना था कि एशियाई लोगों को भारतीय भाषाएँ सीखना अपेक्षाकृत आसान है। सम्मेलनों के संकल्प को पूरे मनोयोग से कार्यान्वित किया जाना चाहिए।     

     

     समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान,वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गदर्शन में आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख की  सशक्त भूमिका का बखूबी निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर द्वारा किया गया। पूर्व राजनयिक डॉ॰ सुनीता पाहुजा के आत्मीय कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन –डॉ॰ जयशंकर यादव

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