अन्जान – (ग़ज़लें)
अन्जान उम्र भर घर में रहा, अपनों से अन्जान रहा शख़्स दीवाना था, दुनिया से परेशान रहा कुछ ख़रीदार जो आते रहे, जाते भी रहे ख़्वाहिशें बिकती गईं और वो…
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अन्जान उम्र भर घर में रहा, अपनों से अन्जान रहा शख़्स दीवाना था, दुनिया से परेशान रहा कुछ ख़रीदार जो आते रहे, जाते भी रहे ख़्वाहिशें बिकती गईं और वो…
ज़ख्म पुराने जाने क्यों फिर रोने का मन करता है ज़ख्म पुराने धोने का मन करता है यूँ तेरी यादों के मंज़र तारी हैं दामन आज भिगोने का मन करता…