ज़ख्म पुराने

जाने क्यों फिर रोने का मन करता है

ज़ख्म पुराने धोने का मन करता है   

यूँ तेरी यादों के मंज़र तारी हैं

दामन आज भिगोने का मन करता है

साहिल पे जो मेरी कश्ती डूबी है

तूफानों में खोने का मन करता है

खवाहिश, ख़्वाब, हज़ारों अरमां टूटे हैं

फिर से सपने बोने का मन करता है

महफ़िल में चर्चे थे तेरी बातों के

अब तो तन्हा होने का मन करता है

दिल को खाली कमरे जैसा रखना है 

सारा सामाँ ढोने का मन करता है

ज़िंदा रह के तो अब हमने देख लिया

आज सुकूँ से सोने का मन करता है

***

-रेखा राजवंशी

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