खाई
(मूल मैथिली कविता श्री मंत्रेश्वर झा, भारत) हिन्दी अनुवाद – आराधना झा श्रीवास्तव, सिंगापुर कैसे पाटी जाएगी ये खाई? ये पीढ़ियों का अन्तर जो निरन्तर होती जा रही है गहरी…
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(मूल मैथिली कविता श्री मंत्रेश्वर झा, भारत) हिन्दी अनुवाद – आराधना झा श्रीवास्तव, सिंगापुर कैसे पाटी जाएगी ये खाई? ये पीढ़ियों का अन्तर जो निरन्तर होती जा रही है गहरी…
भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश प्राप्त अधिकारी श्री मंत्रेश्वर झा को वर्ष 2008 में मैथिली भाषा में लिखित अपनी संस्मरणात्मक कृति ‘कतेक डारि पर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से…
(मैथिली कविता एवं उसका हिन्दी अनुवाद – आराधना झा श्रीवास्तव) ज्यों जहाज का पंछी अपने पंखों से माप देता है सागर पर संध्याकाल में लौट आता है पुन: उसी जहाज…