
–अनिल वर्मा, ऑस्ट्रेलिया
खामोशी
हद से ज्यादा बढ़ी है खामोशी
अर्चियों की लड़ी है खामोशी
ऐसा क्या खो गया है मेले में
बुत-सी गुमसुम खड़ी है खामोशी
हुए हम कैद ख़ुद की जेलों में
दर्द की हथकड़ी है खामोशी
कुछ तो बोलो भले शिकायत हो
पत्थरों से कड़ी है खामोशी
अब तो बाँहों में जा के निकलेगी
दिल में ऐसी गड़ी है खामोशी
तुम्हारे पास हों तो लगता है
प्रेम की पंखुड़ी है खामोशी
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