
– अनिल वर्मा, ऑस्ट्रेलिया
बंजारा मन
बंजर तन
बंजारा मन
कहाँ कहाँ न हारा मन
जहाँ कहीं भी चोट लगी
वहीं गया दोबारा मन
ख़्वाबों के तिनके चुन चुन
यादों के धागों से बुन
नीड़ बनाया अंधाधुंध
टिका नहीं पर सारा मन
आकांक्षाओं के बादल
और जगत का कोलाहल
चंचल लहरों का संबल
कैसे जाय सँवारा मन
हाथ लिए टूटी जूही
आ जी लें, क्षण भर ही सही
लौटेगा कल निर्मोही
तड़पेगा बेचारा मन
***** ***** *****