अनिल वर्मा, ऑस्ट्रेलिया

संस्कार

जड़ ने कहा तने से
छाया विस्तार ले, अपरिमित प्यार दे
इसलिए तने रहो, बने रहो

तना बोला डाली से
फैलो पर याद रहे, किस वृक्ष की तुम डाली हो
पेंगें गगन चूमें, जिसने भी डाली हो

डाली फिर लचकी, थोड़ा मुस्करायी
पत्तियों से लदी-फदी
जड़ का पाँव छूने को धरती पर आयी

पर धरती तो धरती है
हाथ धर बिठा लिया मनुहार प्यार में
यूँ फैला वट-वृक्ष सारे संसार में!

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