इस प्रवासी काया में
मेरा देसी मन ये कहता है,
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
बेहतर कल की आशा में हमने
लाँघी देश की सीमाएँ,
रोज़गार की चाह में सीखी
जाने कितनी नई विधाएँ,
बैरागी मन मेरा फिर भी
ध्यान-योग में ही रमता है ।।1।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
मन की संन्यासिन निर्जन में
जब बैठ के धुनी रमाती है ।
टोली इच्छाओं की आकर
चौखट पर शोर मचाती है ।
इन ऊँचे भवनों में ये नयन
आँगन-दालान को तरसता है ।।2।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
ट्यूलिप, ऑर्किड की ये कलियाँ
मेरे मन को बहुत लुभाती हैं
पर घर-आँगन के फुलवरिया की
याद मुझे आ जाती है ।
भावों की फुलडाली में मन
उड़हल कनेर ही चुनता है ।।3।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
एक भारत मुझमें बसता है ।
जस्टिन बीबर और एड शीरिन
की धुन पर तन थिरकता है,
मन की आकाशवाणी में पर
विविध भारती ही बजता है ।
लकड़ी के घोड़े पर बैठा
मेरा बचपन ज्यूँ चहकता है ।।4।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
इस नीले अंबर के नीचे
हरी फ़सलें झूम के गाती हैं
उजले बादल संग उषाकिरण
केसरिया रंग सजाती है ।
मेरे मन की हारमोनियम पर
जन-गण-मन ही तो बजता है ।।5।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
तू ईद मेरी, मेरी होली तू
मेरी पूजा और अज़ान मेरी ।
दिल धड़कन मेरी जान है तू,
बिन तेरे क्या पहचान मेरी ।
मेरे मन के इस आंगन में जो
तुलसी बनकर महकता है ।।6।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
भारत से दूर भले हूँ पर
मन मेरा तो है वहीं बसा,
मेरी जननी मेरी जन्मभूमि
तेरी माटी ने है मुझे रचा ।
मेरी धमनी में, मेरी नस-नस में
गंगधार बन जो बहता है ।।7।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
मीलों की दूरी दिखती हो
दिल मेरा हिंदुस्तानी है,
ये हर प्रवास करने वाले
भारतवंशी की कहानी है ।
भले पासपोर्ट का रंग बदले
दिल में तिरंगा मचलता है ।।8।।
मैं जाऊँ जहाँ जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
ये क़तरा क़तरा ख़ून मेरा
तेरे कर्ज़ में डूबा डूबा है,
ये ख़ुशबू तेरी माटी की
माँ अलग है, एक अजूबा है ।
वीर सपूतों के माथे जो
चंदन बन चमकता है ।।9।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
ये वीर सपूतों की धरती
गाँधी और बुद्ध बनाती है ।
ज्ञान-योग की आभा से
दुनिया को राह दिखाती है ।
पाठ अहिंसा का ये जग
जिस शांति गुरू से पढ़ता है ।।10।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
ऐ मेरे वतन, ऐ हिंद मेरे
तू ख़ुश रहे, आबाद रहे,
लहराए दुनिया में परचम
हिंदोस्तां ज़िंदाबाद रहे ।
हिम के उत्तंग शिखरों पे जब
केसरिया रंग दमकता है ।।11।।
मैं जाऊँ जहाँ, जहाँ भी रहूँ
इक भारत मुझमें बसता है ।
-आराधना झा श्रीवास्तव
