भूधरा पर आर्ष सभ्यता सबसे न्यारी,
सर्वाधिक प्राचीन सनातन संस्कृति हमारी,
हमी से सुशिक्षित हुआ था जग सारा ,
हमी थे वसुंधरा के नायक -उन्नायक II
सम्पूर्ण विश्व है परिवार हमारा ,
भारतीयता है पहचान हमारी,
हम है खंडित भारत के वासी ,
अखंड भारत है आस हमारी II
प्रकृति का है यह शाश्वत नियम,
सभी दिवस होते नहीं एक समान,
जो आरूढ़ होता है शिखर पर,
वही अवतरित होता है भूतल पर II
उन्नति -अवनति का चक्रवत नियम,
राष्ट्रीयता का ह्रासमान इतिहास,
विखंडित होती रही भारतीय स्मिता ,
पुनर्स्थापित न हो सकी राष्ट्रीय एकता II
आजादी का अमृत महोत्सव,
राष्ट्रीय विमर्श का यह महान पर्व ,
करें विवेचन विगत में हमने, क्या खोया क्या पाया ,
कैसे रखेंगे सुरक्षित हम अपनी आजादी II
हम भारतवासियों की यह प्रबल भावना ,
प्रखर राष्ट्रीयता की हो पुनर्स्थापना,
जन जन का है यही सन्देश,
“ विजयिनी भारतीयता ” का उद्घोष II
–विवेक मणि त्रिपाठी