
अर्चना
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सच्चा साथी
इंसान हूँ इस्तेमाल हेतु कोई वस्तु नहीं
सीढ़ी बना अपनी मंज़िल पाना,
सभी का शौक़ रहा।
हर रिश्ते को बहुत ईमानदारी से निभाया,
पर हर बार छली गई।
भीड़नुमा रिश्तों के होते,
शुन्यता है जीवन मे
कौन है अपना, कौन पराया ?
ख़ाली हाथ आए और खाली ही जाना है।
किसी पर भरोसा करने को मन नहीं होता
क्यूँकि शब्दों के बाणों से छली जाने वाली,
जिसे ज़ख़्म दिखायगी,
वो इसमें एक और इज़ाफ़ा कर जाएगा
अरे पगली तेरा साथी,
सिर्फ़ मैं हूँ,
तेरी कलम,
थाम मुझे और कुछ लिख डाल ।।।