
प्रकृति हमारी नहीं है, हम प्रकृति के हैं
©डॉ महादेव एस कोलूर
लोकताक झील, मणिपुर की सबसे बड़ी ताजा पानी की झील है, जो लगभग 250 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। मानसून के दौरान इसकी सतह बढ़कर 500 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक हो जाती है। इस झील की सबसे खास बात इसकी तैरती हुई द्वीपों की व्यवस्था है, जिन्हें “फुमदी” कहा जाता है। ये फुमदी जैविक पदार्थ जैसे घास, मिट्टी और सूखे पौधों से बनी मोटी तैरती हुई चटाई जैसा दिखने वाला प्राकृतिक भू-भाग हैं, जिनमें हवा के समूह रहते हैं, जो इन्हें पानी पर तैरने में मदद करते हैं ।
फुमदी पर बसे तैरते गांव
लोकताक झील के इन फुमदियों पर कई परिवार अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इन द्वीपों की सतह पर बनी झोपड़ियाँ बांस की ढांचे पर आधारित होती हैं, क्योंकि बांस तैरने में सक्षम होता है।यह घर बिना कील लगाए केवल गांठ बाँध कर बनाए जाते हैं और इनमें रसोई, बेडरूम एवं बैठक कक्ष होते हैं। गाँव के लोग मुख्य रूप से मेइती समुदाय के हैं, जिनकी स्थानीय भाषा है। यहाँ पर बिजली के लिए सौर पैनल और गैस सिलेंडर नाव के माध्यम से लाए जाते हैं। पेयजल के लिए झील का पानी इस्तेमाल होता है, जिसे फिटकरी डालकर शुद्ध किया जाता है ताकि वह पीने योग्य हो सके।
जीवन की चुनौतियाँ और समाधान
फुमदी की सतह अधिक स्थिर नहीं होती इसलिए यहाँ चलने के लिए बांस से बने मार्ग बनाए गए हैं। झोपड़ियों के अंदर भारी फर्नीचर नहीं रखा जाता क्योंकि वे तैरती सतह पर हैं। यहाँ बांस से बने बेड प्रयोग किए जाते हैं, जो हल्के होते हैं और आसानी से संभाले जा सकते हैं। साथ ही जैविक शौचालयों का भी उपयोग होता है, जिन्हें एनजीओ द्वारा झील की सफाई के लिए स्थापित किया गया है।
केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान: तैरती हुई वन्यजीवन का आश्रय
लोकताक झील के बड़े फुमदी पर केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान स्थित है, जो विश्व का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय उद्यान है। यहाँ मेहा संगाई हिरण रहता है, जो मणिपुर का राज्य पशु भी है। यह अनोखा पारिस्थितिकी तंत्र, जो पूरी तरह से तैरती हुई मिट्टी पर आधारित है, और यह अन्यत्र नहीं पाया जाता।
स्थानीय अर्थव्यवस्था: अनूठी मत्स्य पालन विधि
स्थानीय लोग मछली पकड़ने के लिए फुमदी को गोलाकार काटते हैं और उसके चारों ओर जाल लगाते हैं। ये जाल झील की तलहटी तक फैले होते हैं, जिनकी मदद से मछलियाँ रात के कुछ घंटों के अंदर जाल में फंस जाती हैं। इस तरह पकड़ी गई मछलियाँ बाज़ार में बेची जाती हैं जो इन लोगों के जीवन की मुख्य आजीविका का स्रोत है। मछली पकड़ने की अवधि प्रजनन मौसम तक सीमित रखी जाती है ताकि मछली की संख्या बनी रहे।
प्राकृतिक वातावरण के साथ संतुलित सह-अस्तित्व
लोकताक झील और उसके तैरते फ़ुमदी पर बसे इस गांव का जीवन प्रकृति के साथ सामंजस्य की अद्भुत मिसाल है। यहाँ के लोग अपने वातावरण के अनुसार खुद को ढाल चुके हैं, न कि प्राकृतिक वातावरण को अपने अनुसार। उनके इस व्यवहार के कारण ही यह स्थान अपनी अनूठी सुंदरता और जीवन शैली को बनाए रख सका है। बांस के हल्के और पर्यावरण के प्रति अनुकूल सामग्री से बने घर और जीवनशैली उनके इस विचार का प्रतीक हैं । “प्रकृति हमारी नहीं है, हम प्रकृति के हैं”–
सीख
यह तैरता फुमदी का जहान है,
जहाँ लोकतक की झील बना आसमान है।
बाँस की झोपड़ी, जल के ऊपर बनी,
जहाँ सादगी में भी खुशियों की रवानी है।
सृष्टि से जो समझौता किया,
नदियों, पेड़ों संग मेल किया।
प्रकृति की ममता को सजोया यहाँ,
ना संग्राम, ना क्षण का बहाना।
झील की छाती पर जीवन रंगा,
मछलियाँ साथ गातीं, हवाएँ थिरका।
आसमान की छाँव में सपने पलते,
हर घर की दहलीज़ पे प्यार चलते।
भारी फर्नीचर नहीं, हल्की बांस की छाँव,
जहाँ इंसान है प्रकृति का आशियाना।
जल के संग बाँधकर प्रेम की डोर,
सबसे अनमोल है यहाँ का स्नेहिल सोर।
जीवन संघर्ष की नहीं कहानी,
मगर सादगी, त्याग और सम्मान की बानी।
यह फुमदी नहीं केवल भू-भाग,
यह बरसों का मेल-जोल और संवाद।
सिखाता है ये तैरता गांव हमें,
कैसे सृष्टि संग समझौता करें हम।
पाइएको प्रेम और समरूपता यहाँ,
समस्त जीवन का है सच्चा गहना।
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