वैश्वीकरण और २१वीं सदी का भारत

-अनु बाफना

If you don’t adapt, you will get left behind !

Change is the only constant !

दोनों ही कथन एकदम सटीक हैं और भारतवर्ष ने इस बात को समझा है, माना है और सही दिशा में इसका अनुसरण भी किया है तभी तो विकासशील देश से अब विकसित देशों की श्रेणी की ओर अग्रसर है।

वैश्वीकरण की व्यापक रूप से उद्धृत परिभाषा में, एंथोनी गिडेंस का दावा है कि वैश्वीकरण ” विश्वव्यापी सामाजिक संबंधों की गहनता है जो दूर के इलाकों को इस तरह से जोड़ता है कि स्थानीय घटनाएं कई मील दूर होने वाली घटनाओं से आकार लेती हैं । “

सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि – ‘वैश्वीकरण यानी भूमंडलीकरण का अर्थ है सम्पूर्ण विश्व का एक होना जहां इस प्रक्रिया के चलते सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक समस्याओं को वैश्विक स्तर पर सभी देशों की मदद से सुलझाया जाता है’।

सभी के हित के लिए रची गयी समान नियमावली के अनुशासन को स्वेच्छा  से ग्रहण कर जब सभी देश अपना-अपना  व्यापार व निवेश संचालित करते हैं तब सभी एक सूत्र में पिरोये जाते हैं। इसे ही कहते हैं वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण।

वैश्वीकरण और तकनीकी अभिवृद्धि भी आपस में जुड़े हुए हैं। तकनीकी विकास ने वैश्वीकरण को सुगमता से कार्यान्वित होने में पूरी मदद की है वहीं वैश्वीकरण की वजह से नयी-नयी तकनीकों की भी उन्नति और प्रसार हो पाया। विज्ञान और मनुष्य की अथक चेष्टाओं का ही नतीजा है कि आज पूरे विश्व में ऐसी अभूतपूर्व क्रान्ति आ गयी है जिसकी कल्पना भी करना मुश्किल था। आज हर सूचना,हर खबर कुछ ही पलों में विश्व के हर कोने में प्रसारित की जा सकती है।

आज संसार के सभी देशों का परस्पर वस्तु, सेवा, पूँजी व बौद्धिक सम्पदा का अप्रतिबंधित आदान-प्रदान भी वैश्वीकरण की ही देन है।  ये पढ़ने में कितना आसान लग रहा है पर इस प्रक्रिया को कार्यान्वित करना व सफल बनाना उतना ही मुश्किल था । क्योंकि बात सिर्फ एक देश में नियम लागू करने की नहीं थी, सभी देशों का आपस में विश्वास,सौहार्दपूर्ण व्यवहार होना,सर्व सम्मति से नीति निर्धारक सिद्धांतों का ब कार्यान्वित होना व अनुसरण होना व अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा संचालित होना-अपने आप में चुनौती पूर्ण कार्य था पर अंततः सब हुआ और सफलतापूर्वक हुआ। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

आज जब हम वैश्वीकरण की बात करते हैं तो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्वीकरण की परिभाषा में बदलाव आया है । अर्थशास्त्रियों, व्यापारिक संगठनों व राजनीतिज्ञों ने संरक्षणवाद और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एकीकरण में गिरावट के सही  मूल्य को पहचाना है।

मैं बात कर रही हूँ इसी आधुनिक वैश्वीकरण की जहाँ आधुनिकीकरण के चलते कई फायदे हुए -सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि GATT-General Agreement On Tariffs & Trade के Free Trade यानी  मुक्त व्यापार पर से प्रतिबन्धl हट गया जो कि वैश्विक स्तर पर उठाया गया एक बड़ा ही प्रगतिशील  कदम था।

अब अगर हम भारत की बात करें तो नब्बे के दशक के मध्य से भारतीय अर्थव्यवस्था ने विकास की ओर रुख करना शुरू किया । आर्थिक सुधारों के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे अन्य क्षेत्र भी विकासोन्मुख होने लगे।

अब अगर हम १९९० के मध्य की बात करें या फिर अंत की -तो इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन देखे गए । उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की नवल नीतियों को गले लगाया गया जिससे देश की अर्थव्यवस्था विश्व की अर्थव्यवस्था बन गयी थी।

तत्पश्चात २१वीं सदी में पदार्पण करने के बाद भारत ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा- ९० के दशक में अंकुरित होती सफलताओं ने धीरे-धीरे सघन रूप ले लिया था । सभी क्षेत्रों में प्रगतिशील कदम उठाते हुए दुनिया को दिखा दिया कि भारत अब सपेरों का देश या गरीबी-भुखमरी का परिचायक देश नहीं रहा । उस नकारात्मक परिभाषा के कलेवर को हमने अब उतार फेंका है।

कछुए-सी चाल चलता भारत २१वीं सदी में चीते-सा फुर्तीला होता चला गया। मैं यहां मुख्यतः भारतीय आर्थिक स्थिति पर अपने विचार रखना चाहूंगी।

हमारा आयात-निर्यात बखूबी बढ़ा, विदेशी मुद्रा कोष जो महज़ ५ बिलियन डॉलर का होता था अब बढ़कर ३०० बिलियन से भी ज़्यादा हो गया है । हमारे निवेशक आज दुनिया के हर कोने में निवेश कर रहे हैं और भारत में भी विश्व के सभी सक्षम देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में निवेश किया है।  यह सफर इतना आसान नहीं रहा पर समय-समय पर छोटी-बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए भारत डटा रहा और उसी का परिणाम है कि आज जी-२० समूह के सशक्त देशों में भारत का नाम अग्रणी है।

वैश्वीकरण का दौर इतना परिवर्तनशील रहा कि आर्थिक उत्थान के साथ-साथ सामाजिक व राजनैतिक सम्पन्नता भी परिलक्षित होती है ।

वैश्वीकरण के सामाजिक प्रभाव की अगर बात करें तो आज के परिप्रेक्ष्य में विकास का मार्ग प्रशस्त इसी ने किया है- इस तथ्य को नाकारा नहीं जा सकता। चर्चा विश्व की हो, देश की हो, समूह की या फिर व्यक्ति विशेष की , वैश्वीकरण ने सभी को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

निवेशकों के संख्या बढ़ने से नए-नए क्षेत्रों में रोज़गार की संभावनाएं भी बढ़ने लगी। छोटे-बड़े सभी तरह के उद्योगों में बढ़ोतरी हुई । घरेलु व कुटीर उद्योगों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलने लगी – विकास का दायरा बड़ा होता चला गया।

 मशीनीकरण ने भी अपनी जगह बनाई और उत्पादन में उन्नति हुई। पिछड़े वर्गों और पिछड़े गाँवों में भी प्रगति की लहर नज़र आने लगी , महिलाओं की लिए रोज़गार के अनगिनत नए अवसर सामने आये।

अब देखिये सभी कुछ सकारात्मक नहीं था कई नुकसान भी झेलने पड़े।

नकारात्मक प्रभाव – प्रगति की राह पर हम इतनी तेज़ी से दौड़े कि यह देखना भी भूल गए कि पैरों तले कितनों को रौंदते हुए निकल रहे हैं । तरक्की-तरक्की का ढोल पीटने के चक्कर में हरे-भरे जंगलों में ऐसा अतिक्रमण किया कि ताज़े हरी भरी वनस्पति की जगह अब गगनचुम्बी इमारतों ने ले ली है । परिणाम- पर्यावरण का असंतुलित होता रूप।

हम हर जगह पहुँचने लगे हैं पर किसी भी प्राकृतिक सम्पदा का सम्मान करना नहीं जानते । हर जगह कूड़ा करकट , तहस- नहस करना ही आता है ।

वैश्वीकरण ने छोटे लघु उद्योगों को तो जड़ से उखाड़ फेंका है । बहुत से नियम-विधान कागज़ पर बनाये कुछ और गए थे पर कुछ लोगों कि स्वार्थ कि चलते मूल रूप से कार्यान्वित कभी नहीं हो पाए। परिणाम, पूँजीवाद का विकृत रूप और भी ज़्यादा डरावना हो गया।

पर वो कहते हैं न कि- In the course of development there’s always a bigger picture & a greater purpose concealed behind the small failures !

सो एक सिक्के के दो पहलू की तर्ज पर हमें इसे समझना पड़ेगा और यथासंभव प्रयास करने पड़ेंगे कि ये ज़रूरी नियम भी महज़ दस्तावेज़ों में बंद नहीं रहें और सुचारु रूप से कार्यान्वित भी हो ताकि वैश्वीकरण का सम्पूर्ण लाभ लिया जा सके ।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि २१ वीं शताब्दी में बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत की विदेश नीतियों में काफी बदलाव आया है। प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी कि कार्यकाल से लेकर  डॉ० मनमोहन सिंह जी व तत्कालीन प्रधान मंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदी जी के कार्यकाल तक भारतीय आर्थिक नीति व भारतीय विदेश नीति में भारी परिवर्तन हुआ । आज के समय में भारत की स्थिति इतनी सक्षम है कि वैश्विक आर्थिक नीतियों में अंतर्राष्ट्रीय सम्प्रभुता का मान रखते हुए  भारत ने अपनी एक मजबूत पहचान बनाई है । बड़े- बड़े मुद्दों पर भारत कि सुझाव व निर्णय को सम्मान मिलने लगा है ।

इसीलिए वैश्वीकरण प्रगति की ओर इंगित करता बड़ा ही सफल कदम माना गया। इस क्रांतिकारी दौर में हम लिंग-भेद, जाति-पाँति के भेद भाव की दकियानूसी परिधि से परे एक विकासोन्मुख विश्व के सृजन में अग्रसर हैं -यह कदम अपने-आप में उत्साह का द्योतक है।

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