उदित स्वर्णिम भोर

(रूपमाला छन्द)

चैन की वंशी बजाती, नित्य स्वर्णिम भोर।
वो सुहाना युग पुराना, खो गया किस छोर?

खत्म आँखों से शरम ह स्वार्थ ठेकेदार।
चढ़ गया मुख पर मुखौटा, मतलबी संसार।
पथ भ्रमित हो गए हम, चल दिए किस ओर?
वो सुहाना युग पुराना, खो गया किस छोर?

पूर्वजों की सीख भूले, होम है बलिदान।
किस नशे में फूंक डाला, आगमों का ज्ञान।
खूब ऊंचे उड़ रहे हैं, कट गयी है डोर।
वो सुहाना युग पुराना, खो गया किस छोर?

धर्म की भाषा पलट कर दिया अनुवाद।
कीच में पाखंड घोले, ले रहे हैं स्वाद।
धर्म की वाणी मधुर थ रह गया अब शोर।
वह सुहाना युग पुराना, खो गया किस छोर?

सुख हो कि दुख एक दूजे से जुड़ा था गाँव।
इक पुराने नीम नीचे, बांटते थे छाँव।
स्वप्न जैसे ढह गया सब, था प्रलय घनघोर।
वह सुहाना युग पुराना, खो गया किस छोर?

दौड़ अंधी-आंख मींचे, जग रहा है भाग।
रुक ज़रा तू सांस तो ले, नींद से अब जाग।
आंक ले कर्तव्य क्या है, इस सदी की ओर?
प्रकट होगा सूर्य फिर से, उदित स्वर्णिम भोर।
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-अनु बाफना

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