तिलक करें दशरथ नंदन का
(चौपाई छन्द)
सब भक्तों के पालनहारे, गूँज रहे उनके जयकारे।
परमशक्ति सबके रखवाले, जय हो नीली छतरी वाले।
आदि-अनंत शक्ति के दाता, धर्म-कर्म-वेदों के ज्ञाता।
मितभाषी तुम महामनस्वी, रघुकुल गौरव महा तपस्वी।
महाभुजा राघव उपकारी, जगद्गुरु हैं कोदंड धारी।
प्राण-प्रतिष्ठा, मंगल-बेला, चहल-पहल ज्यों सजता मेला।
सरयू तट की छटा निराली, अवध मनाता आज दिवाली।
अक्षत-कुमकुम थाल सजे हैं, नर नारी भी सजे-धजे हैं।
चौक पुराएं मंगल गायें, घर आँगन में दीप जलाएं।
संग जानकी लक्ष्मण आते, रामदूत भी शीश नवाते।
बजे नगाड़े शंख मलंगा, निकल पड़ी है जटा से गंगा।
तीनों लोकों के सब प्राणी, देख रहे यह क्षण कल्याणी।
रामलला जब चरण धरेंगे, पुष्पों से सत्कार करेंगे।
कमलनयन जब पट खोलेंगे, चन्दन संग केसर घोलेंगे।
तिलक करें दशरथनंदन का, केसर में घुलते चंदन का।
रघुपतिनंदन कुल उजियारे, जय जय जय गूंजे जयकार।
दोहा
प्राण-प्रतिष्ठा हो रही, पूज्य अयोध्याधीश ।
सब लोकों से देवगण, बरसाते आशीष ।
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-अनु बाफना