हमें रास आ गई है

कभी क़िस्सागोई
कभी सड़क
कभी रसोई
कभी बतकही
कभी अनकही
कभी यूँ ही भटकना
कभी बिन बात अटकना
कभी किताबों की बातें
कभी बेबाक़ मुलाक़ातें
कभी ईद कभी तीज
कभी इक दूजे पर खीज
कभी लड़ना झगड़ना
बस यूँ ही अकड़ना
कभी लिख लिख कर थकना
कभी लिखने पर छपना
कभी मौसम की बातें
कभी नदिया की रातें
कभी द्वीप बनकर
कभी सीप बनकर
फ़क़ीरों सी मस्ती
तूफ़ानी ये कश्ती
कभी खुद में रहना
कभी खुद में ही जीना
ये मस्ती ये ख़ुदपरस्ती
हमें रास आ गई है
ज़िन्दगी खुदबखुद
मेरे पास आ गई है

*****

– अनीता वर्मा

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