स्त्री होना…

मेरी ना उसे स्वीकार नहीं थी
मेरी हाँ भी होती तो भी नहीं बदलता कुछ भी
पुरूष होने का या स्त्री होने का
अंतर तो रहता ही हमेशा
बड़ा आसान है मुझे चुप कराना
हालाँकि मेरा कुछ ना कहना ही
स्वीकार नहीं था उसे बिल्कुल भी
मेरे पिता ने कहा चुप रहूँ
सबने कहा मत सुनो उसकी बात
मैंने भी तो सुना, अनसुना किया
मेरे होने और ना होने के बीच
मेरे कहने और ना कहने के बाद
मेरे रहने और ना रहने के अन्तराल में
मेरा स्त्री होना ही क्यों सालता है उन्हें
मेरा स्त्री होना ही हर पल मारता है मुझे

*****

– अनीता वर्मा

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