मेघ ये आषाढ़ के

मेघ ये आषाढ़ के…
बाँध कर साफे धुले,
एक- सी लय में खड़े,
ये चलें तो-
आसमानी फर्श-
फाहे सा उड़े,
छतरियाँ सिर पर धरे,
धूप से मुखड़ा ढके,
मेघ ये आषाढ़ के…

श्वेत-श्यामल तन हिले,
रंग बगुलों से खिले,
लो झिंगोलों में सजे
गुड्डे –
कपासों के सिले,
आ गये कीचड़ सने-
पाँव लेकर चाढ़ के,
मेघ ये आषाढ़ के…

घोर जनरव सा घहर,
काँपते जड़ तक शिखर,
नृत्यरत पग
थम गये-
पिक ने उठाये
षड्ज-स्वर,
खिलखिलाती
द्युति हँसी,
दाँत चमके दाढ़ के,
मेघ ये आसाढ़ के…

थिरकतीं बूँदें बड़ी,
कुछ पखावज सी बजीं,
घन-घनर मल्हार ध्वनि,
नभ में उठी,
नदियाँ सजीं,
झूलने नावें लगीं-
डाल झूले बाढ़ के,
मेघ ये आषाढ़ के…

खुल गयी गुदरी हरी,
बिछ गयी
तृण की दरी,
विहँसती जैसे लबालब-
झील पर,
कोई परी-
कुछ नये
प्रतिमान के-
बेल-बूटे काढ़ के,
मेघ ये आषाढ़ के…

*****

-राजीव श्रीवास्तव


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