
छछुंदर और बंदर
एक छछुंदर भोली भाली,
दिखती थी थोड़ी सी काली।
नाम छछुंदर का था झुमरी,
चुक चुक कर गाती थी ठुमरी।
एक था बन्दर,नाम था जन्तर,
खाये कुल्हाटी मस्त कलंदर।
खौं खौं खौं खौं दिनभर बोले,
इस डाली उस डाली डोले।
पेड़ के ऊपर था वो बंदर,
और छछूंदर घर के अंदर।
मूंगफली ले बाहर आई,
बंदर बोला बांट ले ताई।
सारे घर में मैं डोली हूँ,
तब जाकर इसको पाई हूँ।
मेहनत की ये मेरी कमाई,
कैसे इसको देदूं भाई।
मेहनत जो करते हैं बन्दर,
उनका भाग्य ही खुलता बंदर।
जो आवारागर्दी करते,
वो तुम जैसे बिन घर रहते।
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गिलहरी
आई गिलहरी आई गिलहरी,
दौड़ दौड़ कर आई गिलहरी,
उछल कूद उसकी मनभावान,
बच्चों के मन भाई गिलहरी।
श्री राम के पास वो आई,
छाप उँगलियों की थी पाई,
प्यार से प्रभु ने हाथ फिराया,
तीन धारियां उसने पाई।
तोड़ तोड़ कर बीज वो खाती,
जो फल मिलता उसको खाती,
देख के लोगों को डर कर वो,
पेड़ों पर झट से चढ़ जाती।
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चूहा बिल्ली
देख के चुनमुन चूहा भाऊ,
बिली बोली म्याऊं म्याऊं,
भूख लगी है बड़ी ज़ोर से,
आज पकड़ कर तुझको खाऊं।
लेकिन नहीं डरा था चूहा,
ज़ोर से बोला प्यारी बुआ,
सुनकर बिल्ली नरम पड़ गई ?
सोचा उसको यह क्या हुआ।
प्यार में ऐसी ताकत होती,
दुश्मन को भी मित्र बनाती,
बिल्ली ने उसको दुलराया,
अब कैसे वो उसको खाती।
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प्रभु की लीला
प्रभु की लीला अपरम्पार,
दिए हमें कितने उपहार।
सुंदर न्यारी धरा सजी है,
भाँति भाँति के पुष्प निहार।
चंदा मामा रात को आये,
संग में निंदिया रानी लाए,
लोरी गाकर हमें सुलाए,
मीठे सुन्दर सपन दिखाए।
भोर की किरणें दे सन्देशा,
रात बीत गई ना अन्देशा,
स्नान, ध्यान और योग करो अब,
विद्यालय तक सैर करो अब।
सूरज काका ताप दिखाते,
कर्मठता का पाठ पढाते,
दिनभर मन से काम जो करते,
वो मेहनत का फल हैं चखते।
मेहनत से तुम मुँह न मोड़ो,
अपनों से ना नाता तोड़ो,
सभी बड़ों का मान करो,
विद्यार्जन पर ध्यान धरो।
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सर्दी आई
सर्दी आई, सर्दी आई,
संग में अपने ठिठुरन लाई।
स्वेटर पहनो, मफलर पहनो,
कैसी है ये आफत आई।
समय खेलने का कम मिलता,
अंधियारा जल्दी छा जाता।
मम्मी कहती अंदर आओ,
मुन्नू के मन को ना भाता।
बर्फ जो गिरती मस्ती करते,
स्नोमैन बना कर रखते।
‘स्कीईंग’ है गेम निराला,
बर्फ में इसको खेला करते।
मूंगफली जाड़े का मेवा,
गजक, रेवड़ी लागे मेवा।
चाय पकौड़ी भी खूब मिलता,
मम्मी की जब करते सेवा।
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– मंजु श्रीवास्तव ‘मन’