एक गायब हुआ द्वीप : सेंटोरिनी

– शिखा वार्ष्णेय

The lost Atlantis – एक ऐसा द्वीप जो एक रात में गायब हो गया। इसके पीछे कई किंवदंतियाँ हैं, जिन्हें कोई साबित तो नहीं कर सका परन्तु कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से उनके सम्बन्ध के बारे में पूरी तरह से इनकार भी नहीं किया जा सकता।

द लॉस्ट अटलांटिस का रहस्य दुनिया के सबसे लोकप्रिय मिथकों में से एक है। हालांकि, कोई भी यह साबित नहीं कर सका कि अटलांटिस वास्तव में अस्तित्व में था। कुछ लोग इस बात को मानते हैं कि मिनोअन सभ्यता और प्राचीन थेरा (सेंटोरिनी) की तबाही और खोए हुए अटलांटिस के बीच गहरा सम्बन्ध है। परन्तु इस सिद्धांत के समर्थन में भी साक्ष्य बहुत कम हैं।

अटलांटिस के बारे में सबसे पहले यूनानी दार्शनिक प्लेटो (427-437 ईसा पूर्व) के कथन मिलते हैं। उनके अनुसार अटलांटिस के लोग हरक्यूलिस के स्तंभों (आज का जिब्राल्टर जलडमरूमध्य) से दूर एक समृद्ध द्वीप पर शांति से रहते थे, इसलिए यह माना जाता है कि अटलांटिस शायद यूरोप और अमेरिका के बीच कहीं स्थित था, शायद अटलांटिक महासागर में। हालाँकि, इस बात पर भी संदेह किया जाता है कि प्लेटो द्वारा वर्णित ऐसी उन्नत सभ्यता कभी अतीत में थी भी।

जैसा कि प्लेटो कहते हैं, अटलांटिस की कहानी मिस्र के पुजारियों द्वारा, मिस्र की अपनी एक यात्रा के दौरान सोलन को बताई गई थी। इस कहानी के अनुसार अटलांटिस के पास मूल रूप से दैवीय शक्तियाँ थीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने उन्हें खो दिया। जब उनके पास केवल मानव शक्तियाँ रह गईं, तो उन्होंने अन्य समृद्ध द्वीपों से लड़कर वापस शक्ति पाने का फैसला किया। उन्होंने भूमध्य सागर के चारों ओर यात्रा की और एथेन वासियों द्वारा पराजित होने तक कई स्थानों पर विजय भी प्राप्त की। आखिरकार, अटलांटिस के इस अहंकार पर देवता नाराज हो गए और उनकी सजा के तौर पर ओलंपियनों (ग्रीस के देवताओं) ने अटलांटिस को एक रात में नष्ट कर दिया, और पीछे केवल मिट्टी का ढेर रह गया। (यह कहानी अपनी भारतीय दन्त कथाओं से कितना मिलती है न ?)

जैसा कि इतिहासकारों ने देखा है, सेंटोरिनी द्वीप पर खोजी गई अक्रोटिरी की मिनोअन बस्ती, एक विकसित बस्ती थी जो सेंटोरिनी ज्वालामुखी के भयानक विस्फोट के कारण लगभग 1,500 ईसा पूर्व नष्ट हो गई थी। इस ज्वालामुखी विस्फोट की तीव्रता इतनी शक्तिशाली थी कि ईजियन सागर की सूनामी लहरें उत्तरी क्रेते के मिनोअन बस्तियों तक पहुँच गईं और नष्ट हो गईं। पौराणिक अटलांटिस के विनाश के प्लेटो के विवरण और मिनोअन अक्रोटिरी की कहानी में कई समान बिंदु हैं।

अक्रोटिरी, जो सेंटोरिनी के ज्वालामुखीय राख से ढका हुआ था, यह खोया हुआ अटलांटिस हो सकता है, जो एक रात में गायब हो गया। इसके अलावा, पुरातत्वविद इस तथ्य को इंगित करते हैं कि प्राचीन थेरा (सेंटोरिनी) में एक समृद्ध अर्थव्यवस्था थी, और मिनोअंस महान नाविक थे जो अन्य भूमध्यसागरीय देशों के साथ व्यापार और वाणिज्य करते थे।

इस सबके वावजूद वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि अटलांटिस द्वीप का रहस्य केवल एक मिथक है जिसमें अनगिनत अनुत्तरित प्रश्न हैं। इसलिए, यह संभव है कि अटलांटिस कभी अस्तित्व में ही नहीं था।

इस खोये हुए द्वीप की कहानी कुछ कुछ भारत की द्वारका नगरी जैसी नहीं लगती? यही नहीं ग्रीस के लगभग सभी मिथक, किंवदंतियाँ और साहित्य–संस्कृति, भारतीय मेथोलोजी और साहित्य से काफी मिलती जुलती है।

कुछ ये ऐतिहासिक विशेषताएँ थीं और कुछ इस द्वीप की बनावट और सुन्दरता कि जब से इसके बारे में पढ़ना शुरू किया, इसकी तस्वीरें देखीं तब से मन में, इससे रू ब रू मुलाकात करने का सपना पलने लगा था। आखिरकार वह पल आया जब यह सपना साकार होने को व्याकुल होने लगा। बुजुर्ग कह गए हैं कि सपने जरूर देखने चाहिए तभी तो उनके पूरे होने के अवसर और प्रयास बनेंगे।

सैंटारिनी हालाँकि आज के समय, दुनिया का सबसे रोमानी गंतव्य है। इसे ‘हनीमून डेस्टिनेशन’ भी कहा जाता है। परन्तु मेरा उद्देश्य इसकी खूबसूरती को आत्मसात करने के अलावा इसके इतिहास में से समान कहानियाँ ढूंढने का भी था। इन कहानियों और इस द्वीप की खूबसूरती को तलाशने हम निकल पड़े। क्योंकि यह सैंटोरिनी था इसलिए यह यात्रा चाहे, अनचाहे कुछ विलासितापूर्ण होने ही वाली थी। क्योंकि मुख्यत: यह जगह आराम और आनंद के लिए ही है। अत: हमने भी सात दिनों की छुट्टियाँ लीं, एक पाँच सितारा होटल बुक किया और इसके हर्जाने स्वरुप रेयान एयर की सबसे सस्ती उड़ान से सफ़र करने का और इसका सीजन शुरू होने से कुछ समय पहले जाने का निश्चय किया।

लन्दन से सीधी सेंटोरिनी की चार घंटे की उड़ान समय से कुछ पहले ही पहुँच गई है तो जहाज़ उतरने के लिए हवा में तैरने लगता है। ऊपर से ऐसा लगता है मानो नीचे बादलों की बस्ती है जिसमें से कहीं कहीं आसमान झाँक रहा है। सिर्फ सफेद मकान और उनके नीले दरवाजे और गुम्बद जैसी छत।

जहाज के सेंटोरिनी हवाई अड्डे पर उतरते ही एक तरफ समुद्र दिखता है, एक तरफ पहाड़ और एक तरफ मकान। पूरी क़ायनात इस कुल 76 किलोमीटर के द्वीप में सिमट आई है। पूरे सेंटोरिनी की इमारतें सफेद हैं। लगता है जैसे किसी ने इस द्वीप पर चूना उड़ेल दिया है। इस सफ़ेद, नीले रंग के बारे में भी कई कहानियाँ प्रचलित हैं। जिनमें सबसे वैज्ञानिक है कि – इस द्वीप पर होने वाली सूखी गर्मी से राहत के लिए मकानों को सफ़ेद रंग से पोता जाता था। क्योंकि सफ़ेद रंग ऊष्मा प्रतिरोधी होता है। बाद में यहाँ की सत्ता ने अपने राजनितिक एजेंडे के तहत यहाँ के सभी मकानों को सफ़ेद और नीले रंग से पोतने के लिए लोगों को विवश किया। यहाँ के झंडे में भी यही सफ़ेद और नीली पट्टियां हैं। हालाँकि अब इनसे इतर कुछ इमारतें हलकी गुलाबी, बादामी आदि रंगों की दिखाई देती हैं परन्तु 99% इमारतें अब भी सफ़ेद और नीली ही हैं। कालांतर में नीले सागर के मध्य ये सफ़ेद, नीली इमारतें सुन्दरता का ऐसा पर्याय बनीं कि आज इस द्वीप का मुख्य आकर्षण ही इन इमारतों की बनावट है।

हमारा होटल कमारी नाम के गाँव में था और वहां तक ले जाने के लिए होटल की गाड़ी हवाई अड्डे पर आ चुकी थी, जिसने बड़े आदर के साथ कुल 10 मिनट में हमने हमारे होटल पहुँचा दिया।

सेंटोरिनी पाँच द्वीपों के परिसर का एक हिस्सा है। सबसे बड़ा द्वीप सेंटोरिनी या थेरा है, उसके बाद थिरसिया एवं एस्प्रोनिसी और फिर नेआ कमेनी (नया कमेनी) और पालेया कमेनी (पुराना कमेनी) हैं। पालेया और नेआ कमेनी ज्वालामुखीय द्वीप हैं और वे निर्जन हैं। बाकि सेंटोरिनी/ थेरा और थिरसिया में छोटे छोटे गाँव हैं। इन्हीं में से एक गाँव कमारी में हमारा होटल था। यहाँ पहुंचते ही मेरी नजरों और मस्तिष्क ने ग्रीक और भारतीय इतिहास और संस्कृति में समानताएँ ढूँढना आरम्भ कर दिया था। इसलिए पहले ही दिन इसके सबसे पुराने शहर और सेंटोरिनी की राजधानी फिरा, जिसका पुराना नाम थेरा है जाने का निर्णय किया गया। जिसके लिए हमें स्थानीय ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना था। हालाँकि इस छोटे से द्वीप पर घूमने के लिए टैक्सी के अलावा स्कूटर या कार किराए  पर लेने का भी खासा रिवाज है। परन्तु पहले दिन हमने बस से कुछ अंदाजा लेने का निर्णय किया। फिर बाद में कोई और माध्यम आजमाने का । क्योंकि पूरे सेंटोरिनी में बस डिपो सिर्फ फिरा में है। कहीं भी जाना हो पहले फिरा आना होगा, बस फिरा से ही मिलेगी। इसलिए कमारी से फिरा आना सबसे आसान था।

अब बस का समय पूछकर हम बस स्टॉप पर आकर खड़े हो गए थे। यहाँ मिली अपनी संस्कृति से पहली समानता। समय की कोई पाबंदी नहीं। जैसे कहते हैं “भारतीय समयनुसार” उसी तरह यहाँ कहा जाता है “ईट्स आयरलैंड टाइम।(इट गेट्स यू, व्हेन इट गेट्स यू)। हर 15 मिनट में बस को आना चाहिए। 1 घंटा हो गया था इंतजार करते। आखिर बस आई और लगभग दो छोटे छोटे गाँव में रुकती हुई बीस मिनट में फिरा पहुंचा गई।

फिरा यानि थेरा इस द्वीप का सबसे बड़ा कस्बा है और इसकी राजधानी भी। अत: यहाँ देखने के लिए एक बहुत बड़े बाजार और वही सफ़ेद नीली इमारतों के अलावा एक संग्राहलय भी है। इसमें प्राचीन थेरा के अवशेषों से  मिली वस्तुएँ  रखी गई हैं जो इस द्वीप का इतिहास बयान करती हैं। 15 वीं ईसा पूर्व के इस नगर की व्यवस्था और समृद्धता प्राचीन थेरा की खुदाई में निकली इन वस्तुओं से सहज ही समझी जा सकती है। नगरीय व्यवस्था, मकानों की बनावट, बर्तन, औजार, संस्कृति आदि को दर्शाती हुई ये वस्तुएँ आपको उसी काल में ले जाकर बैठा देती हैं। यहाँ फिर मुझे भारतीय संस्कृति से एक समानता दिखाई देती है। इसके घरों और इमारतों की दिवार पर बने चित्र। जहाँ उनपर स्त्रियों, उनके आभूषणों आदि के चित्र उकेरे जाते थे वहीँ ‘ब्लू मंकीज’ (नीले बन्दर) नामक चित्र भी बहुत प्रमुख माना जाता है। दिवार पर बने इस चित्र में नीले रंग के कुछ बंदरों को उछलते- कूदते, विभिन्न अवस्थाओं में चित्रित किया गया है। कहा जाता है कि प्राचीन थेरा के निवासी इन्हें देवता तुल्य मानते थे और इस तरह चित्रित करके व्यक्तिगत स्वतंत्रता को चित्रित करते थे। उन चित्रों को देख मुझे अपने हनुमान जी और उनकी वानर सेना याद हो आये। संग्राहलयों में रखे बर्तनों, आभूषणों आदि में भी बहुत समानता दिखाई पड़ रही थी। यह एहसास तब और भी अधिक मजबूत हो जाता है जब हम इस नए थेरा से कुछ दूर प्राचीन थेरा के पुरातात्विक स्थल पर जाते हैं, जहाँ इस नगर के अवशेषों को उसी प्रकार एक खँडहर के तौर पर सहेज कर रखा गया है। यह एक आर्कियोलॉजिकल  साईट है। इसी से आधा किलोमीटर की दूरी पर है रेड बीच एवं व्हाईट बीच। इन्हें वहाँ पर मिलने वाले पत्थरों के रंग पर यह नाम दिया गया है।

दूसरा दिन हमने समुद्री यात्रा से कुछ ऐसे आकर्षणों को देखने के लिए रखा था जहाँ समुद्री मार्ग से ही जाना संभव है। अत: इसके लिए सुबह 10 बजे हम समुद्री जहाज में सवार हो गए। यह जहाज सबसे पहले हमें एक ज़िंदा ज्वालामुखी तक ले गया। वहां पहुँच कर हमसे कहा गया कि यहाँ से लगभग 1 घंटे की सीधी पहाड़ की चढ़ाई के बाद उस ज्वालामुखी को देखा जा सकता है। तो जिसे जाना है वह जा सकता है परन्तु ठीक 2 घंटे बाद यह जहाज आगे की यात्रा करेगा अत: तब तक वापस आना है। काले पत्थरों से युक्त पहाड़ रुपी रास्ते से इस ज्वालामुखी तक जाने का और उसे देखने का मेरा मन तो बहुत था परन्तु मुझे अपने घुटनों पर तनिक भी भरोसा नहीं था। अत: अपने मन को समझा कर मैंने लावे वाले उन काले पहाड़ों की तस्वीरें लीं और उसी जहाज पर धूप में लेट कर इंतज़ार करने का फैसला किया।

ज्वालामुखी से निकल कर अगला स्टॉप था “हॉट स्प्रिंग” समुन्द्र के बीच ही एक छोटा सा कोना, जहाँ का पानी अचानक से बेहद गर्म और कत्थई रंग का है और कहा जाता है इसमें स्नान करने से काफी तरह की बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। मुझे फिर देहरादून के पास का सहस्त्र धारा याद आने लगता है। जहाज का गाइड फिर घोषणा करता है कि जहाज से निकलकर उस स्प्रिंग तक तैरकर ( लगभग 100 मीटर की दूरी) जाना होगा। परन्तु सिर्फ वही लोग जाएँ जो बहुत ही अच्छे तैराक हैं। एक बार फिर मुझे अपने आप को इस आकर्षण के लिए भी ख़ारिज करना पड़ा। यूँ यह भी बहुत अजीब सी बात थी कि उस जहाज में उपस्थित किसी भी भारतीय ने इसकी जुर्रत या प्रयास नहीं किया था। बहुत से यात्री, यहाँ तक कि कुछ बच्चे भी बिंदास तैरते हुए वहाँ तक गए और उस सल्फर युक्त सागर के छोटे से अंश में दो – चार डुबकियाँ लगाकर लौट आये। अब यहाँ से इस जहाज़ ने प्रस्थान किया एक मछुआरों के गाँव, थिरिसा की तरफ। इस गाँव में कुल 300 नागरिक रहते हैं और सभी नाविक या मछुआरे हैं। परन्तु समुंद्री किनारे से ऊपर टापू पर, उनकी बस्ती तक जाने के लिए भी एक सौ पचास सीढीयाँ थीं। मन के बहुत ठेलने के वावजूद फिर एक बार दिमाग ने घुटनों की हालत याद दिलाई। मन को मनाया कि नहीं बेटा, तुम्हारी यह जिद ठीक नहीं। इस तरह एक बार फिर मैंने सिर्फ तस्वीरों से काम चलाया।  

इसके बाद यह जहाज समुद्री रास्ते इस लावे पर बने द्वीप के गाँवों के दर्शन काराता हुआ हमें वापस अपने स्थान पर छोड़ गया।

ज्वालामुखी के लावे से बने आयरलैंड को कैसे एक मुख्य रोमांटिक डेस्टिनेशन बनाया जा सकता है और कैसे 100% टूरिज़्म पर रहा जा सकता है यह सेंटोरिनी से सीखना चाहिए। कुल 13000 की आबादी, यात्रियों के आने से 2 मिलियन हो जाती है और उनके लिए इस लावे से बने द्वीप पर भी अच्छे खासे आकर्षण बना दिए गए हैं। प्रकृति के चमत्कार तो जो हैं वे अद्भुत हैं ही। मानव के दिमाग का भी कोई सानी नहीं है। जहाँ लावे से बने पहाड़ रुपी द्वीप आपको हतप्रभ छोड़ते हैं वहीँ मानव द्वारा उनपर इतना खूबसूरत निर्माण और व्यवस्था आपको बेचैन किये देती है। कवि दिनकर ने ठीक ही तो कहा है

“रात यूँ कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखी चीज होता है…
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।”

विपदा में से भी अवसर खोजने और नीबू मिला तो उससे शिकंजी बनाकर पी जाने जैसी कहावतों का साकार रूप है यह द्वीप।

यह तय है कि भूकंप, ज्वालामुखी के फटने और समुद्री तूफानों से एक दिन ये द्वीप फिर से ध्वस्त हो जायेंगे जैसे कि पूर्व में भी हो चुके हैं। उसके वावजूद वर्तमान में इस कदर खूबसूरत दुनिया का निर्माण कर देना सिर्फ ये स्वप्न देखने वाले मानवों के बस की ही बात है।

सेंटोरिनी में यात्रियों के आने का मुख्य समय मई से सितम्बर तक का है। इस दौरान सूर्य भी अपनी पूरी कृपा यहाँ बरसाए रखता है। अक्टूबर से मार्च तक यहाँ नए सीजन की तैयारी हेतु निर्माण कार्य चलता रहता है। अत: यहाँ काम करने वाले अधिकतर लोग भी यहाँ सीजन में ही, बाहर देशों से आते हैं और 6- 7 महीने काम करके अपने अपने देश वापस लौट जाते हैं। ज्वालामुखी और यहाँ के मौसम की वजह से यहाँ की मिट्टी भी अनोखी है। अंगूर और एक अलग किस्म के चेरी टमाटर यहाँ की मुख्य पैदावार है और फावा बीन्स की बेहतरीन किस्म यहाँ पाई जाती है। यह कहावत सत्य है कि इस द्वीप में पानी से अधिक वाइन है। वाइन का यहाँ एक पूरा म्यूजियम भी है। यह वाइन बेहद क्रिस्प और स्वादिष्ट है। 

सेंटोरिनी, ग्रीस में बाकी यूरोप की अपेक्षा अधिक शाकाहारी व्यंजन उपलब्ध हैं। इसकी वहज इसका 100% टूरिस्ट बेस्ड होना एवं आजकल वीगनिस्म का फैशन में होना भी हो सकता है।

इसमें सबसे सुलभ, स्वादिष्ट और सस्ता है ग्रीक सलाद – टमाटर, खीरा, रंगविरंगी शिमलामिर्च, लैट्यूस, फेटा चीज़, क्रूटन्स और जैतून के तेल के साथ कुछ स्थानीय हर्ब डाल कर बनाया जाने वाला यह सलाद अपने आप में ही पूरा एक समय का भोजन है। फिर भी भारतीय मन को रोटी की तलब हो तो ताज़ा ग्रीक ब्रेड ली जा सकती है। उसके साथ फावा, तजीकी और भुने हुए बैगन की चटनी जैसे डिप, चटनी और चोखा दोनों की आस पूरी कर सकते हैं। और तो और प्याज टमाटर के पकोड़े भी स्थानीय डेलिकेसी है जिसे टोमेटो बॉल या टोमेटो फ्रिट्र्स कहा जाता है।

इसके अलावा पास्ता, पिज़्ज़ा, बर्गर आदि में भी शाकाहारी विकल्प हर जगह मिल रहे हैं। पेय, आइसक्रीम और फ्रोजन योगर्ट की तो भरमार है ही उनके फ्लेवर भी बहुत अलग और स्वादिष्ट हैं। आइसक्रीम में ब्लैक लावा और बकलावा जैसे फ्लेवर मैंने पहली बार यहाँ देखे।

हालांकि इनका राष्ट्रीय व्यंजन है सौवल्कि – जिसे गायरोस भी कहा जाता है। पित्ता ब्रेड के अंदर आग पर भुने हुए पोर्क/बीफ/चिकन के टुकड़े, सलाद, तजीकी और आलू के चिप्स डाल कर उसका रोल बनाकर दिया जाता है। एक रोल में ही सम्पूर्ण भोज्य तत्वों से पूर्ण यह व्यंजन यहाँ सबसे अधिक सुलभ और लोकप्रिय है जो हर छोटी दुकान और बड़े से बड़े रेस्टॉरेंट में हर समय मिलता है।

कहने का आशय यह है कि मीट और समुद्री व्यंजन खाने वालों के लिए बेशक यह जगह किसी पैराडाइज से कम नहीं परंतु शाकाहारी यात्रियों के लिए भी यहाँ काफी कुछ है जो पसंद किया जा सकता है। फिरा के एक रेस्टॉरेंट में खाने के बाद हमें एक छोटे से क्रिस्टल के गिलास में एक पेय निशुल्क परोसा गया। कहा गया कि यह खास पेय पाचन के लिए है और मस्तिखा नामक एक खास पेड़ से बनाया जाता है। बहुत थोड़े अल्कोहॉल की मात्रा के साथ बनाए गए इस पेय का स्वाद मुझे कुछ कुछ सौंफ से मिलता जुलता लगा। मुझे फिर भारत में खाने के बाद सौंफ या पान देने के  रिवाज़ की याद आई।

यहाँ ज्यादातर रेस्टॉरेंट्स के बाहर एक व्यक्ति खड़ा रहता है जो, आवाज लगा लगा कर और यात्रियों को रोक रोक कर अपने रेस्टॉरेंट की खासियत बताता है और वहाँ आने का निमंत्रण देता है।

हम रात के खाने के लिए जगह तलाश रहे थे, ऐसे ही एक बड़े अच्छे से रेस्टॉरेंट के आगे खड़े एक व्यक्ति ने बुलाया, “यह हमारे अपने परिवार का रेस्टॉरेंट है, यहाँ मेरी बीवी ही खाना बनाती है, आइये”

हमने उनका मेन्यु देखा। हमें कुछ बहुत हल्का और शाकाहारी खाना था। यह सोचकर कि और कुछ नहीं तो ताज़ी ब्रेड तो मिल ही जाएगी, हम उसी ‘ब्लैक स्टोन’ नामक रेस्टॉरेंट में खाना खाने बैठ गए।

बैठते ही एक युवक आया “मेन्यु यह है, आप आराम से देखिये, बस मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि यह ‘टोमेटो फ्रिटर्स’ मेरी माँ दुनिया में सबसे अच्छे बनाती हैं। मैं वादा करता हूँ इससे अच्छे आपको कहीं नहीं मिलेंगे, मेरे फेवरेट हैं, बहुत बहुत स्वादिष्ट” बड़े ही जोश में यह कह कर और मेन्यु पकड़ाकर कर वह चला गया।

हम तीन दिन से टमाटर के पकोड़े खा रहे थे, अब खाने के मूड में नहीं थे। हमें कुछ सलाद और आलू के चिप्स मँगवाने थे परन्तु उसकी आँखों में अपनी माँ के लिए वे गर्व के भाव देखकर मैंने कहा, “चलो ठीक है वह टमाटर के पकोड़े भी ले आओ।” सुनते ही वह एकदम छोटे बच्चे की तरह उछलते हुए रसोई की तरफ भागा और चिल्लाकर बोला “ममा, टोमेटो फ्रिटर्स” – उसकी आवाज में ख़ुशी और उत्साह मैं सुन सकती थी।

वह खाना लाया और मेज पर रखकर दूर जाकर खड़ा हो गया और टुकुर टुकुर उत्सुकता और बेचैनी भरी नज़रों से हमने देखने लगा। मैंने इशारे से उसे कहा , ‘बहुत अच्छे हैं, अपनी माँ को बता दो”  उसने अपने दिल पर हाथ रख कर संतोष की गहरी सांस ली और “अभी ममा को बताता हूँ” कह कर तुरंत फिर रसोई में जाकर बड़ी जोश भरी आवाज में हमारी बात बोल आया।

मुझे नहीं पता कि वह खाना वाकई इतना अच्छा था या नहीं। वे पकोड़े वाकई दुनिया के सबसे स्वादिष्ट टोमेटो फ्रिटर्स थे या नहीं। परन्तु अपनेपन का छौंक लगा वह खाना आत्मा को तृप्त करने वाला अवश्य ही था।

उस युवक का व्यवहार, उस परिवार का एका और प्रयास और वह पारिवारिक प्रेम से भरा वातावरण, आप कहीं भी चले जाएँ मनुष्य इस एहसास से हमेशा जुड़ा हुआ महसूस करता है।

यह परिवार अल्बानिया से ग्रीस काम करने आया है और माता, पिता और बेटा मिलकर यह रेस्टॉरेंट चलाते हैं। सीजन के 6-7 महीने यह काम करते हैं और तीन महीने अपना वक़्त परिवार के साथ या बाकी कामों में बिताते हैं और फिर नए सीजन की तैयारी में जुट जाते हैं।  मैंने एक फोटो के लिए उससे पूछा तो वह तुरंत अपनी माँ को बुला लाया और दोनों ने निहाल होते हुए तस्वीर खिंचवाई।

चौथा दिन हमें कमारी में ही आराम करने के लिए रख लिया। असल में मौसम विभाग ने भी बारिश का एलान किया था और दो दिन काफी पैदल चलने के कारण पाँवों को भी राहत की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। अत: अगले दिन सेंटोरिनी का मुख्य आकर्षण – इआ की तरफ रुख करने से पहले हमने थोड़ा बहुत कमारी के काले बीच पर चहल कदमी करने और अपने पाँवों की मरम्मत करने का फैसला किया। 

और यह है इआ – रोमांटिक जोड़ियों का स्वर्ग।

सफ़ेद गुफा जैसे आलिशान मकान, कमरे का दरवाजा खोलते ही, छज्जे पर अपना व्यक्तिगत, छोटा सा, फिरोजी रंग से झलकता तरणताल और सामने से निहारता, गहरा नीला एजियन सागर।

सेंटोरिनी द्वीप का यह सबसे खूबसूरत और गाँव है। कुल डेढ़ हजार निवासियों वाले इस गाँव में सुन्दरता जैसे बिखरी हुई है। आप कहीं भी खड़े हो जाइए वहाँ से आपको एक खूबसूरत नजारा देखने को मिल जायेगा।

प्रकृति मंत्रमुग्ध करती है और मानवीय मस्तिष्क की कल्पना और उसका क्रियान्वयन अचम्भित। 1956  के एक भूकंप में इसका एक हिस्सा ख़त्म हो गया था। परन्तु आज भी ज्वालामुखी के लावे से बने पहाड़ों पर गुफा रुपी होटल और मकान उसी तरह खड़े हैं। पहाड़ के कोने तक बने मकान और बस नीचे सागर। और इन्हीं किनारों से अस्त होता हुआ सूर्य, यही आकर्षण हैं इस गाँव के। सीढियाँ ही सीढियाँ और इनके दोनों तरफ बने खूबसूरत कैफ़े, रेस्टॉरेंट्स और दुकाने। जहाँ ग्रीक संस्कृति से जुड़े हुए व्यंजन, परिधान, आभूषण,सजावट की वस्तुयें आदि मिलती हैं। और रास्तों पर सिर्फ फोटो खींचते, खिंचवाते, यात्री। कहीं भी और कुछ भी इतर नहीं मिलता। न ही मैक डोनाल्स, पिज्जा हट जैसे चैन जॉइंट्स, न ही समुद्री किनारों पर बने हुए बड़े बड़े वाटर पार्क। शायद इसलिए यह जगह दुनिया में सबसे अलग है और सबसे प्रसिद्ध और खूबसूरत।

 सेंटोरिनी द्वीपसमूह में पाँच द्वीप हैं, जिनमें से सबसे बड़ा थेरा, जिसे आजकल फिरा कहा जाता है जिसका क्षेत्रफल 73 किमी है और इसकी जनसंख्या लगभग 15,500 है।

प्राचीन ग्रीक इआ, प्राचीन थेरा/ फिरा के दो बंदरगाहों में से एक था और यह द्वीप के दक्षिण पूर्व में स्थित था, जहां अब कमारी है जहाँ हमने अपना अड्डा बनाया हुआ था। वर्तमान इआ से पूर्व इआ (कमारी) अब बीस किलोमीटर है।

पूरा सेंटोरिनी, सड़क मार्ग द्वारा, बस, कार या स्कूटर से आप ढाई घंटे में कवर कर सकते हैं।

एक ज्वालामुखी के लावे से बने द्वीप पर एक आधुनिक और सबसे खूबसूरत गंतव्य बनाना आसान कार्य नहीं। आज भी यहाँ सामान ढोने के लिए गधों का इस्तेमाल किया जाता है और पूरे ग्रीस में इन गधों के सुविनियर हर दूकान में मिल जाते हैं। इसके अलावा भी बहुत सी समस्याएँ हैं। पूरे द्वीप पर सिर्फ एक अस्पताल है और हर गाँव में सिर्फ एक स्कूल। स्कूल के बाद की पढाई के लिए पूरे द्वीप पर एक भी कॉलेज नहीं है। शायद इसलिए यहाँ की रिहायशी आबादी बहुत कम है। बच्चे तो इक्का दुक्का ही दीखते हैं। यहाँ तक कि अधिकाँश होटल सिर्फ वयस्कों के लिए हैं जहाँ बच्चे लाने की अनुमति ही नहीं है। ड्रेनेज सिस्टम और पानी की समस्या भी है। कुछ अतिआधुनिक जगहों को छोड़कर बाकी सभी जगह टॉयलेट ब्लाक हो जाने की वजह से इनमें में टॉयलेट पेपर डालना भी मना है। इसके लिए वहाँ एक बंद डिब्बा रखा होता है, जिसे रोज सुबह शाम खाली करके साफ़ किया जाता है। इस सबके वावजूद भी यात्रियों को कहीं कोई असुविधा और समस्या नहीं होती। स्थानीय लोग हों या वहाँ काम करने वाले, सभी बेहद प्यारे, मददगार और विलक्षण हास्य बोध से भरे लोग हैं। यह द्वीप बेहद खूबसूरत और विस्मयकारी है। 

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