सुकून तो देती थी चाय

– डॉ स्मिता सिंह

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चाय हो या कोई चाह,
पक्का रंग जब तक ना चढ़े
और नहीं हो जुनून,
कहाँ मिलता है सच्चा सुख और कौन देता है सुकून।

पक्का रंग जब तक ना चढ़े
कहाँ आयेगा जीवन में स्वाद,
वैसे ही फीका रह जाएगा जीवन
जैसे एक प्याली फीकी चाय।

मन कभी हो उदास और
कोई ना हो आस-पास
क्या कहें कुछ कहा ना जाए,
इसके बग़ैर रहा ना जाए।

मौन सी बैठी घर के आँगन में
अकेली कुर्सी पर खोजती छाँव,
सिर्फ़ एक कप चाय आ जाए और
कोई आकर वही पुराना शहर ले जाए,
जिसपर टिकी थी आँखें मेरी
वह फिर मेरे सामने आ जाए।

आज तो कोई नहीं है साथ
जिसको कह सकती हूँ ख़ास
कभी तो हो कुछ ऐसा
सामने उसकी परछाई ही आ जाए।

चाय की सौंधी-सौंधी खुश्बू
बरसात में भीगी मिट्टी की सुगंध,
यादें बरबस आ ही जाती हैं
क्योंकि हर मुलाक़ात पर आ जाती थी केतली भर चाय।

राम बाण औषधि सी लगे चाय,
ठिठुरती ठंड में काँपती अँगुलियों में
गर्माहट देती प्याली में रखी चाय।

दस्तक देते यादों के झरोखे से तुम अचानक
याद बड़ी आती है तुम्हारे हाथ की बनी बेहतरीन चाय,
हर चर्चा और हर एक मुद्दा बिना चाय ले आये सूनापन,
देनी हो जब कोई राय कोई बिना मतलब की भी बात की जाए।

चाय हो साथ और हो कोई ख़ास
तब क्यों ना जागें अहसास,
ख्वाहिश तो बस एक ही दबी है
वही लम्हा फिर से आ जाए,
ख़ुशियों की दस्तक फिर से वही दौर लौट आये
तलब ऐसी है जो छोड़ा ना जाए।

सुबह शाम इसके बिना ख़ाली जाए
फिर वही लम्हा लौट जाए जिसके बिना रहा ना जाए,
एक प्याली मीठी सी चाय होठों से लगाई जाए
चाय ख़त्म हो जाए अगर
पर बातों का सिलसिला लगातार बारंबार चलता जाए।

मुलाक़ातों का सिलसिला अनवरत
इस चाय के बहाने ही सही,
लेकिन बहाना इसका बड़ा अच्छा
फिर एक प्याली चाय हो जाए।

अहसास तो अब भी है तुम्हारा
पर तुम नहीं दिखते आस-पास,
केतली चढ़ा चाय शक्कर घोलती उँगलियाँ,
पत्ती की सौंधी खुशबू ज़हन में ले आती तुम्हारी याद।

बीता हुआ पल और अनेकानेक शाम प्याली में रखी चाय
आज तुम्हारे नाम कितने ही बरस बीत गये हैं,
पर आज भी जब लेती चाय झील के किनारे बैठी
सहमी सी देख रही थी ख़ाली नाविक बिन नाव,
चलो यादों की पतवार चलाई जाए।

आँगन में उतरती रूपहली धूप
और आकाश को देखती घंटों सूनी आँखें,
ढूँढती रहती हैं ना जाने किनको
रंग बिरंगीं पतंगों के पास रह जाती है प्याली में ठंडी चाय।

इंतज़ार ना जाने किसका
करती रहती ठंडी चाय के साथ,
काश कुछ ऐसा हो जाए
वही लम्हा फिर जिया जाए।

जब भी थोड़ी थक सी जाती हूँ
तब लेकर हाथों एक प्याली चाय,
करती रहती हूँ ख़ुद से ही बातें

ख़ाली प्याली हो जाती है ख़ाली सूने मन के साथ
आज ख़ाली प्याली से ही बातें की जाए।

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