भारतीय प्रवासियों पर अंतःविषयक परिप्रेक्ष्य : आगे की राह

कोलकाता विश्वविद्यालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और डायस्पोरा रिसर्च एंड रिसोर्स सेंटर द्वारा “भारतीय प्रवासियों पर अंतःविषयक परिप्रेक्ष्य : आगे की राह” विषय पर 20-22 मार्च 2025 तक तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। कोलकाता विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक सीनेट हाल में आयोजित इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ. जी. वी आनंदा बोस,  विशिष्ट अतिथि फीजी के उपप्रधानमंत्री श्री बिमान प्रसाद एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष श्री विनोद कुमार थे।

उद्घाटन के बाद पहले तकनीकी सत्र में देश-विदेश से पधारे विशिष्ट वक्ताओं ने डायस्पोरा पर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से अपने पत्र प्रस्तुत किए। सायंकाल के समय सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुमधुर गीतों की प्रस्तुति के बाद माननीय राज्यपाल की ओर से रात्रि भोज का आयोजन था।

दूसरे दिन क्षेत्रीय, भाषायी, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं से जुड़े पत्रों की प्रस्तुति की गई।

संगोष्ठी के भाषा संबंधी सत्र में अनिल जोशी ने प्रवासी साहित्य के काल विभाजन पर अपना व्याख्यान दिया। सत्र की अध्यक्षता श्री नारायण कुमार ने की। श्री अभय दुबे, श्री राकेश पाण्डे, श्रीमती इन्द्राणी, श्रीमती जसविंद्र कौर बिंद्रा भी उस सत्र में वक्ता थे।

वैश्विक हिंदी परिवार की साथी श्रीमती सुनीता पाहुजा व श्रीमती अनिता वर्मा ने एक सत्र में गिरमिटिया देशों की संस्कृति के संबंध में अपनी बात रखी। उस सत्र की अध्यक्षता श्री श्याम परांडे ने की।

समापन सत्र के अध्यक्ष प्रो. सांता दत्ता (डीई), कुलपति, कलकत्ता विश्वविद्यालय (टीबीसी), सह-अध्यक्ष श्री श्याम परांडे, महासचिव, एआरएसपी रहे। महामहिम प्रो. अनिल सूकलाल, उच्चायुक्त, दक्षिण अफ्रीका गणराज्य और महामहिम धर्मकुमार सीराज, उच्चायुक्त, सहकारी गणराज्य गयाना सम्मानित अतिथि एवं भोजपुरी संगठन, मॉरीशस की पूर्वाध्यक्ष डॉ. सरिता बुद्धू ने मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभागिता की।

डॉ. कमल किशोर मिश्रा, विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, कोलकाता विश्वविद्यालय ने सम्मेलन की रिपोर्ट प्रस्तुत की।

प्रो. गोपाल अरोड़ा, सचिव एआरएसपी ने सिफारिशें और समापन टिप्पणियां दीं।

22 मार्च 2025 को सम्मेलन के अंतिम दिन गिरमिटिया स्मारक और सूरीनाम के माई-बाप स्मारक के दौरे की व्यवस्था की गई थी।

कोलकाता में आयोजित यह सम्मेलन अपने उद्देश्य में अत्यंत सफ़ल और प्रभावशाली रहा। इस सफलता का पूरा श्रेय श्री श्याम परांडे और श्री गोपाल अरोड़ा को जाता हैं। कोलकाता चैप्टर के श्री कुंज बिहारी सिंघानिया और कोलकाता विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. कमल किशोर मिश्रा  की भी सम्मेलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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