
डॉ. आंबेडकर का भाषण

प्रस्तुति- विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र
> “मैं यह मानता हूँ कि हिंदी को राजभाषा बनाया जाना एक उचित कदम है, लेकिन इसे थोपा नहीं जाना चाहिए। यदि हम एक भाषा को राष्ट्र की भाषा बनाना चाहते हैं, तो उसे सभी वर्गों द्वारा सहज रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।”
> “देश में अनेक भाषाएँ हैं और हर भाषा बोलने वालों की भावनाएँ गहरी होती हैं। यदि हम हिंदी को थोपी गई भाषा के रूप में प्रस्तुत करेंगे, तो यह असंतोष का कारण बनेगा।”
> “अंग्रेज़ी को कुछ समय तक एक सेतु भाषा (link language) के रूप में बनाए रखना ज़रूरी है, ताकि हम बिना किसी वर्ग को पीछे छोड़े, धीरे-धीरे हिंदी की ओर बढ़ सकें।”
> “मैं चाहता हूँ कि संविधान में ऐसा प्रावधान हो जिससे गैर-हिंदी भाषी जनता की भाषायी पहचान और अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा हो।”
> “राजभाषा को अपनाते समय हमें लोकतंत्र की भावना को नहीं भूलना चाहिए। किसी एक भाषा को दूसरों पर वर्चस्व के रूप में नहीं लादना चाहिए।”
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इस ऐतिहासिक भाषण से स्पष्ट होता है कि डॉ. आंबेडकर भाषायी मसले को केवल भावनाओं का प्रश्न नहीं मानते थे, बल्कि उन्होंने इसे राष्ट्र की एकता, समानता और सामाजिक न्याय से जोड़कर देखा।