डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की भाषा नीति

~ विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया और जो भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार थे, ने भाषा नीति पर गहरी और विचारशील राय रखी, जो भारत की भाषाई विविधता और राष्ट्रीय एकता के बीच संतुलन बनाने के उनके प्रयासों को दर्शाती है। उनकी राय मुख्य रूप से उनकी पुस्तक Thoughts on Linguistic States में व्यक्त की गई है, जो Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches, Volume 1 का हिस्सा है और 1979 में महाराष्ट्र सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित की गई थी। इस लेख में, हम उनकी भाषा नीति संबंधी विचारों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, जिसमें उनके द्वारा प्रस्तावित नीतियों, उनके तर्कों, और इन विचारों के ऐतिहासिक संदर्भ को शामिल किया गया है। 

 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संदर्भ :

1950 के दशक की शुरुआत में, भारत सरकार के सामने राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियां थीं, विशेष रूप से भाषाई राज्यों के पुनर्गठन के संबंध में। 1955 में, डॉ. आंबेडकर ने Thoughts on Linguistic States लिखा, जो भाषाई राज्यों के गठन पर उनकी स्थिति को स्पष्ट करता है। इस पाठ को वसंता मून द्वारा संपादित किया गया था और इसमें पांच मुख्य खंड हैं, जो भाषाई राज्यों के पक्ष और विपक्ष, और राष्ट्रीय एकता के लिए भाषा की भूमिका पर चर्चा करते हैं। इस पाठ में, उन्होंने सांख्यिकीय साक्ष्य और अनुभवजन्य अध्ययनों पर आधारित तर्क प्रस्तुत किए, जो उनकी लचीली और तार्किक दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। 

संविधान सभा में भाषा विमर्श और अम्बेडकर की भूमिका:

संविधान सभा (CA) में 1946 से 1950 के बीच भाषा का मुद्दा अत्यधिक गहन और अक्सर विवादास्पद बहसों का केंद्र रहा । मुख्य विवाद हिंदी बनाम हिंदुस्तानी, देवनागरी लिपि बनाम फारसी-अरबी लिपि, अंतरराष्ट्रीय बनाम देवनागरी अंक, संस्कृत की स्थिति, अंग्रेजी की निरंतरता और क्षेत्रीय भाषाओं की सूची जैसे मुद्दों पर केंद्रित थे । उत्तर और दक्षिण भारत के बीच भाषाई विभाजन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था ।

मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में, डॉ. अम्बेडकर इन बहसों के केंद्र में थे और समझौतों को तैयार करने तथा बातचीत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनकी भूमिका एक उत्साही भाषाई पैरोकार के बजाय एक व्यावहारिक वार्ताकार और संविधान-निर्माता की अधिक प्रतीत होती है।

विशिष्ट हस्तक्षेप:

मुंशीअय्यंगार फॉर्मूला: अम्बेडकर इस महत्वपूर्ण समझौता फॉर्मूला के सूचीबद्ध प्रायोजकों में से एक थे । इस फॉर्मूला ने देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा बनाया, अंतरराष्ट्रीय अंकों के उपयोग को अनिवार्य किया, 15 वर्षों (संसद द्वारा विस्तार योग्य) के लिए अंग्रेजी के उपयोग को जारी रखा, और हिंदुस्तानी तथा अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द लेकर हिंदी को समृद्ध करने का निर्देश दिया । यह फॉर्मूला विभिन्न गुटों के बीच संतुलन बनाने का एक प्रयास था।

संस्कृत संशोधन: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, उन्होंने (अन्य लोगों के साथ) संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव करने वाले संशोधन को प्रायोजित किया । इसे चल रही बहसों और संभावित रणनीतिक मंशाओं के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

प्रक्रियात्मक गतियाँ: उन्होंने भाषा के उपयोग से संबंधित विधेयकों को पेश करने (जैसे प्रिवी काउंसिल क्षेत्राधिकार उन्मूलन विधेयक ) और संसद तथा राज्य विधानसभाओं में हिंदी/अंग्रेजी के उपयोग के संबंध में संशोधन पेश करने में भूमिका निभाई । उन्होंने राष्ट्रपति को संविधान का हिंदी और अन्य प्रमुख भाषाओं में अनुवाद कराने के लिए अधिकृत करने का प्रस्ताव भी पेश किया ।

बहस में सीमित प्रत्यक्ष वकालत: उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि अम्बेडकर ने संविधान सभा के पटल पर किसी एक विशिष्ट भाषा के पक्ष में अन्य सदस्यों की तरह शायद व्यापक भाषण नहीं दिए। उनका प्रभाव संभवतः समिति स्तर के कार्यों और मुंशी-अय्यंगार जैसे समझौतों को संभव बनाने में अधिक महत्वपूर्ण था। हालांकि, औपचारिक बहस के बाहर उन्होंने संस्कृत पर सवालों के जवाब दिए थे ।

संविधान सभा में अम्बेडकर की प्राथमिक भूमिका एक व्यावहारिक मध्यस्थ की थी, जिसका लक्ष्य एक कार्यात्मक संवैधानिक समझौता खोजना था। मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में, उनका मुख्य ध्यान प्रतिस्पर्धी मांगों (हिंदी समर्थक, दक्षिण भारतीय प्रतिरोध, प्रशासनिक आवश्यकताएं) को संतुलित करना और भाषा के मुद्दे को संविधान निर्माण की पूरी प्रक्रिया को पटरी से उतारने से रोकना था। उनका लक्ष्य एक ऐसा संवैधानिक ढांचा तैयार करना था जो हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं को समायोजित कर सके, भले ही वह समाधान सभी के लिए आदर्श न हो।

 एक राज्य, एक भाषानीति:

आंबेडकर ने “एक राज्य, एक भाषा” नीति का समर्थन किया, जिसका अर्थ था कि प्रत्येक राज्य को अपनी भाषाई पहचान के आधार पर गठित किया जाए। यह नीति भाषाई समूहों की सांद्रता के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन करती थी, जैसा कि राज्यों के पुनर्गठन आयोग (SRC) की सिफारिशों में भी देखा गया था। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि भाषाई राज्यों का गठन केवल तभी प्रभावी होगा यदि यह राष्ट्रीय एकता को कमजोर न करे। 

 राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी और संस्कृत:

आंबेडकर ने राष्ट्रीय एकता और साझा संस्कृति के विकास के लिए हिंदी को सभी भारतीयों की भाषा के रूप में अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा, “चूंकि भारतीय एकजुट होना चाहते हैं और एक साझा संस्कृति विकसित करना चाहते हैं, यह सभी भारतीयों का कर्तव्य है कि वे हिंदी को अपनी भाषा के रूप में स्वीकार करें।” इसके अलावा, उन्होंने संयुक्त भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत को प्रस्तावित किया, क्योंकि यह किसी भी क्षेत्रीय भाषा को वरीयता दिए बिना एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के रूप में कार्य कर सकता था। 

 विभाजन और चेतावनी:

आंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि यदि उनकी यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया, तो भारत एक एकीकृत राष्ट्र के बजाय प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीयताओं के संग्रह में बंट सकता है। उन्होंने कहा, “यदि मेरा सुझाव स्वीकार नहीं किया गया, तो भारत भारत नहीं रहेगा। यह राष्ट्रीयताओं के संग्रह में बदल जाएगा जो एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा और युद्ध में लगे होंगे।” यह चेतावनी उनकी राय को दर्शाती है कि भाषाई पहचान और राष्ट्रीय एकता के बीच संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। 

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की भाषा नीति भारत की भाषाई विविधता और राष्ट्रीय एकता के बीच संतुलन बनाने का एक प्रयास थी। उनकी राय यह थी कि जबकि भाषाई राज्यों का गठन महत्वपूर्ण है, राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी और संस्कृत जैसे साझा भाषाई तत्वों को अपनाना आवश्यक है। उनकी चेतावनियां और तर्क आज भी भारत की भाषा नीति पर चर्चा में प्रासंगिक हैं।

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  संदर्भ 

 Since Indians wish to unite, it’s bounden duty of all Indians to own up Hindi as their language: Dr Babasaheb Ambedkar [Organiser.org](https://organiser.org/2022/12/06/100859/opinion/one-state-one-language-is-a-universal-feature-of-almost-every-state-dr-babasaheb-ambedkar/) 

– Why Ambedkar Demanded “One State, One Language”: An Overview of His “Thoughts on Linguistic States” [AllAboutAmbedkarOnline.com](https://www.allaboutambedkaronline.com/post/why-ambedkar-demanded-one-state-one-language-an-overview-of-thoughts-on-linguistics-states)

– Thoughts on Linguistic States – Dr. Babasaheb Ambedkar [DrAmbedkar.co.in](https://www.drambedkar.co.in/books/thoughts-on-linguistic-states/)

One thought on “डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की भाषा नीति – (शोध आलेख)”
  1. नमस्कार आदरणीय। अति सार्थक, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक लेख । अनेक जानकारियों से समृद्ध संग्रहणीय लेख। कुछ बातें जो केवल शोध खोजों से उपलब्ध है आपकी लेखनी ने सहज उपलब्ध करा दिया। आभार। डॉ रानू मुखर्जी। बड़ौदा।

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