कस्तूरी मंच का कार्यक्रम- किताबें बोलती हैं में ‘सौ लेखक, सौ रचनाएं’ पुस्तक पर परिचर्चा

कस्तूरी मंच के ऑनलाइन कार्यक्रम ‘सौ लेखक, सौ रचनाएं’ पुस्तक परिचर्चा के अन्तर्गत वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष, कवि, लेखक प्रतिष्ठित साहित्यकार, चिंतक अनिल जोशी जी की पुस्तक ‘प्रवासी लेखन: नयी ज़मीन, नया आसमान’ पर विस्तृत चर्चा की गई।

कार्यक्रम में वक्ता के रूप में बोलते हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. कुमुद शर्मा (कुलपति- महात्मा गाँधी हिंदी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा) ने कहा कि यह पुस्तक पाठक को अपने साथ बाँधकर रखने में सक्षम है। यह पुस्तक प्रवासियों के अंतरमन में प्रवेश कराती है। यह प्रवासियों के संघर्ष की गाथा से परिचय कराती है। 21वीं सदी का जो भूमंडलीय समय है उसमें प्रवासियों की क्या भूमिका हो सकती है, उसे भी इस पुस्तक में पकड़ा जा सकता है।

पुस्तक के लेखक श्री अनिल जोशी ने इस पुस्तक के बारे में बोलते हुए बताया कि इस पुस्तक के पहले खंड में 2000 से 2015 तक के प्रवासी जीवन की जो सांस्कृतिक समस्याएं हैं- उसे उद्धृत किया गया। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से यह प्रयास है कि प्रवासी साहित्य को मुख्य धारा में शामिल किया जा सके। उसका इतिहास, उसकी धारा को समग्र रूप से लिखा जाना चाहिए। इस दृष्टि से इस पुस्तक में छोटा सा प्रयास किया गया है।

डॉ. शैलजा सक्सेना (प्रवासी साहित्यकार) ने कहा कि यह पुस्तक सुंदर कोलाज है। इसमें विविधता है, आत्मीयता है, स्पष्टता है, शैली की रोचकता है। एक ही स्थान पर इतनी सारी चीज़ों का मिलना मुश्किल होता है, जिसे अनिल जोशी जी ने साधा है।

प्रो. रेखा सेठी (शिक्षाविद्, आलोचक) ने इस पुस्तक के विषय में कहा कि इस पुस्तक में प्रवासी साहित्य के मुद्दे को शामिल किया गया है। यह लेखकीय दृष्टिकोण को उभारती है- जो दूर रहकर भी हमसे जुड़ा रहता है। यह प्रवासियों के अंतर्मन, उनके संघर्ष को, उनकी आकांक्षाओं को, भारत से जुड़े रहने की आकांक्षा को रेखांकित करती है। इस पुस्तक की विशेषता है कि यह प्रवासी साहित्य को पढ़ने का दृष्टिकोण देती है।

डॉ. पद्मेश गुप्त (प्रवासी साहित्यकार) ने कहा कि यह पुस्तक एक प्रकार से प्रवासी साहित्य की यात्रा वृतांत है। अनिल जी जहां-जहां गए, वहां वहां के प्रवासियों के जीवन को, उनके संघर्ष को देखा, उनकी रचनात्मकताओं से उनका परिचय हुआ और उन सबको इस पुस्तक में उन्होंने समेटा है। इसमें उनका वैश्विक दृष्टिकोण झलकता है।

विशाल पाण्डेय (साहित्य एवं कला अध्येता) ने इसका सफल संचालन किया।

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