
तेजेन्द्र शर्मा: एक बहुमुखी साहित्यकार का वैश्विक रचना संसार
~विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र
परिचय एवं प्रारंभिक जीवन
तेजेन्द्र शर्मा का जन्म 21 अक्टूबर 1952 को पंजाब के जगराँव शहर के रेलवे क्वार्टरों में हुआ। उनके पिता रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे, जिस कारण उनका बचपन उचाना, रोहतक (अब हरियाणा) और मौड़ मंडी जैसे स्थलों में बीता। 1960 में पिता का स्थानांतरण दिल्ली हुआ और यहीं से तेजेन्द्र का स्कूली जीवन आरंभ हुआ। पंजाबी भाषी होते हुए भी उन्होंने दिल्ली के अंधा मुग़ल क्षेत्र के सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए. (ऑनर्स) और एम.ए. (अंग्रेज़ी) की उपाधियाँ प्राप्त कीं और कंप्यूटर कार्य में भी डिप्लोमा प्राप्त किया।
साहित्यिक रचनाएं और शैली
तेजेन्द्र शर्मा का साहित्यिक अवदान बहुआयामी है – वे कथा, कविता, ग़ज़ल, नाटक और अनुवाद में समान रूप से दक्ष हैं। उनकी कहानियाँ सामाजिक यथार्थ, प्रवासी जीवन की जटिलताएँ, स्त्री अनुभव, वैश्विक पहचान और भारतीय मानसिकता के विविध पहलुओं को उभारती हैं। वे अपनी रचनाओं में मानवीय संवेदना के साथ-साथ सामाजिक प्रश्नों को भी उठाते हैं।
प्रमुख कहानी संग्रह
उनके अनेक कहानी संग्रहों में प्रमुख हैं – गोद उतराई, संदिग्ध, मौत… एक मध्यांतर, सपने मरते नहीं, दीवार में रास्ता, बेघर आँखें, देह की कीमत, ढिबरी टाईट और काला सागर। उनके कहानी संग्रह ढिबरी टाईट को 1995 में महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रदान किया गया।
काव्य और ग़ज़ल संग्रह
तेजेन्द्र शर्मा का काव्य पक्ष भी उतना ही सशक्त है। ये घर तुम्हारा है…, मैं कवि हूँ इस देश का, और Building Bridges जैसे संग्रहों में उनके भावपूर्ण और संवेदनशील कवि व्यक्तित्व की झलक मिलती है।
अनुवाद और अंतरराष्ट्रीय स्वरूप
उनकी कई कहानियाँ पंजाबी, उर्दू, नेपाली, उड़िया, मराठी, गुजराती, चेक और अंग्रेज़ी में अनूदित हो चुकी हैं। अंग्रेज़ी में प्रकाशित उनकी पुस्तकों में Grave Profits, Black & White, John Keats – The Two Hyperions उल्लेखनीय हैं।
पत्रकारिता
तेजेन्द्र शर्मा का पत्रकार रूप तुलनात्मक रूप से कम लोकप्रिय है। लन्दन से प्रकाशित होने वाली ऑनलाईन पत्रिका ‘पुरवाई’ के संपादक के रूप में वे हर सप्ताह एक संपादकीय – ‘अपनी बात’ लिखते हैं। प्रवासी हिन्दी जगत में वे अकेले ऐसे संपादक हैं जिनके संपादकीयों के चार संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। संकलनों का भी वही नाम है – ‘अपनी बात’।
शोध और आलोचना
तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों पर अब तक 11 पीएच.डी. और दस एम.फिल. कार्य हो चुके हैं। उन पर केन्द्रित आलोचना ग्रंथों की श्रृंखला जैसे तेजेन्द्र शर्मा – वक़्त के आइने में, कथाधर्मी तेजेन्द्र, प्रवासी हिन्दी साहित्य और तेजेन्द्र शर्मा उनके साहित्य की आलोचनात्मक महत्ता को प्रमाणित करती है। तेजेन्द्र शर्मा के साहित्य पर 17 आलोचनात्मक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।
साहित्यिक सम्मान और उपलब्धियाँ
तेजेन्द्र शर्मा को 2017 में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय द्वारा एम.बी.ई. (Member of the British Empire) की उपाधि से सम्मानित किया गया। अन्य प्रमुख सम्मान हैं:
डॉ. मोटुरी सत्यनारायण सम्मान (केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, 2011)
प्रवासी भारतीय साहित्य भूषण सम्मान (यू.पी. हिन्दी संस्थान, 2013)
हरियाणा साहित्य अकादमी सम्मान (2012)
एन.आर.आई ऑफ़ द ईयर सम्मान (टाइम्स ऑफ़ इंडिया और ICICI, 2018)
निर्मल वर्मा सम्मान (म.प्र. सरकार, 2017)
साहित्य के अतिरिक्त रचनात्मक गतिविधियाँ
तेजेन्द्र शर्मा न केवल लेखक बल्कि उत्कृष्ट अभिनेता और प्रसारक भी रहे हैं। 1973–78 के बीच दिल्ली रेडियो पर ड्रामा आर्टिस्ट रहे, दूरदर्शन के प्रसिद्ध धारावाहिक शांति के लगभग 140 एपिसोड लिखे। फ़िल्म ‘अभय’ में उन्होंने नाना पाटेकर के साथ अभिनय भी किया। बी.बी.सी. लन्दन में समाचार वाचक रहे; ऑल इंडिया रेडियो, सनराइज़ रेडियो लन्दन जैसे माध्यमों से उनकी कहानियाँ प्रसारित होती रही हैं। उनकी ग़ज़लों और कहानियों की ऑडियो सीडी भी उपलब्ध हैं।
शैक्षिक पाठ्यक्रमों में समावेश
उनकी कहानियाँ – अभिशप्त, पासपोर्ट का रंग, क़ब्र का मुनाफ़ा, कोख का किराया और बेघर आँखें – देश के कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गई हैं, जैसे चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (मेरठ), गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय (नोएडा), कलकत्ता विश्वविद्यालय, गोवा विश्वविद्यालय, चेन्नई के कॉलेज इत्यादि।
समकालीन वैश्विक साहित्य में भूमिका
तेजेन्द्र शर्मा कथा यू.के. संस्था के महासचिव हैं। वे लंदन की संसद (हाउस ऑफ़ कॉमन्स) में प्रतिवर्ष इन्दु शर्मा कथा सम्मान और पद्मानन्द साहित्य सम्मान का आयोजन करते हैं। भारत, ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका में हिन्दी कहानी कार्यशालाओं और प्रवासी साहित्य सम्मेलनों के आयोजन में उनकी अग्रणी भूमिका रही है।
प्रवासी साहित्य का सेतु
तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी साहित्य में एक सेतु की तरह कार्य करते हैं—जो भारत और प्रवासी समाज के मध्य भावनात्मक, सांस्कृतिक और भाषिक संबंधों को जोड़े रखता है। उनकी लेखनी में प्रवास की पीड़ा, जड़ से कटने की बेचैनी और नई पहचान की तलाश की व्यथा-कथा गहराई से दर्ज है। वे हिन्दी कथा साहित्य में एक प्रतिष्ठित, प्रभावशाली और सम्मानित नाम हैं।
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