
बुद्धत्व : एक परम उपलब्धि
अज्ञानता के अंधकार को केवल ज्ञान का प्रकाश ही मिटा सकता है। “अप्प दीपो भव, अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनें। वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा सहयोगी संस्थाओं के तत्वावधान में बुद्ध पूर्णिमा के मद्देनजर रविवारीय कार्यक्रम के अंतर्गत 11 मई 2025 को आभासी कार्यक्रम का आयोजित किया गया।
मुख्य वक्ता के रूप में थाइलैंड के बैंकाक स्थित भारतीय राजदूतावास के स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक एवं चिंतक मनीषी डॉ॰ चैतन्य प्रकाश योगी ने ओजपूर्ण गंभीर व्याख्यान में कहा कि बुद्ध पूर्णिमा को वैसाख दिवस और बुद्ध का जन्म दिन, ज्ञान प्राप्ति और निर्वाण दिवस भी माना जाता है। सिद्धार्थ गौतम ने जरा, मरण और व्याधि पर विजय प्राप्त करने के लिए राजपाट छोड़कर गृह त्याग कर दिया और प्रयत्न की पराकाष्ठा से कठोर साधना पद्धतियों से ऊपर उठकर परम उपलब्धि प्राप्त की। आखिरी मंजिल मिलने से पूर्व उन्हें “मार (काम) ने रोका किन्तु अडिग रहते हुए उन्होने भूमि स्पर्श मुद्रा का सहारा लिया। उन्हें बोध गया में पीपल के पेड़ नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ। वे बुद्ध हो गए। ज्ञातव्य हो कि शास्त्र भी भूमि से जनित हैं। गौतम बुद्ध ने पथ भ्रष्ट समझने वाले परिव्राजकों को अपने तेज के प्रभाव से हृदय परिवर्तन कर सारनाथ में पहला उपदेश दिया।
दिल्ली, जापान और दक्षिण अफ्रीका में कार्यरत रह चुके तथा अमेरिका, ब्रिटेन और स्पेन आदि विश्व के अनेक देशों में शोध व्याख्यान आदि से ज्ञानदान दे चुके विचारक डॉ॰ चैतन्य प्रकाश योगी ने मंत्रमुग्ध करने वाली अपनी ओजपूर्ण गंभीर शैली में दृष्टांतों और अनुभवजन्यता से बताया बताया कि सभी प्राणियों में बुद्धत्व की संभावना सन्निहित है। जो मोह और शोक से परे हो जाते हैं वे मुक्त हो जाते हैं। बुद्ध ने चालीस वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त करने के बाद चालीस वर्षों तक विचरण किया। उनके आभामंडल में आने वाले प्रभावित हुए। हमें ध्यान में एकाग्रता ही नहीं बल्कि समग्रता भी चाहिए और विचार रहित, अहम रहित और समय रहित ध्यान पर बल देना चाहिए। वस्तु, व्यक्ति और धारणाएं भी बदलती रहती हैं। काम और अहम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रकृति में संगछध्वम से जीवन सार्थक होता है और चेतना का स्तर भी बदलता है। मृत्यु अटल सत्य है। आत्मा अजर अमर है। हम सब निजदोषदर्शन करते हुए आत्मिक विकास करें। विमर्श के अंतर्गत सिंगापुर से श्री शांति प्रकाश के प्रश्न पर उन्होने कहा कि परिवर्तनशीलता से अनुभवजन्यता का आभास होता है। जापान से प्रो॰ वेद प्रकाश ने ओसाका विश्वविद्यालय में डॉ॰ योगी जी के बहुमूल्य योगदान और ज्ञान प्राप्ति रूपी राजमार्ग के निजी अनुभव बताए। श्रोताओं में से बुद्ध और युद्ध तथा बुद्ध की अहिंसा नीति के प्रश्न पर उन्होने बेबाक विश्लेषण सहित कहा कि तत्कालीन स्थितियाँ नितांत भिन्न थीं और अन्याय से मुक्ति से बंधी थीं। बुद्ध बहुत प्रासंगिक हैं। सान्निध्यप्रदाता के रूप में वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के वैश्विक विस्तार तथा भारत के मनीषियों की अनमोल वैश्विक देन पर प्रकाश डालते हुए स्व से साक्षात्कार की यात्रा कराई और मुख्य वक्ता डॉ॰ योगी के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।




इस कार्यक्रम में देश-विदेश से अनेक साहित्यकार, विद्वान विदुषी, तकनीकीविद, प्राध्यापक, अनुवादक, शिक्षक, राजभाषा अधिकारी, शोधार्थी, विद्यार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े थे। आरंभ में दिल्ली से साहित्यकार डॉ॰ बरुण कुमार द्वारा पृष्ठभूमि और संक्षिप्त बौद्ध दर्शन सहित आत्मीयता से स्वागत किया गया। तत्पश्चात वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से डॉ॰ जयशंकर यादव द्वारा शालीनता से संचालन का दायित्व बखूबी संभाला गया।
समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गनिर्देशन में सामूहिक प्रयास और टीम की भावना से आयोजित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख एवं सहयोगी की भूमिका क्रमशः ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर और पूर्व राजनयिक सुनीता पाहुजा द्वारा निभाई गई। अंत में थाईलैंड से डॉ॰ शिखा रस्तोगी की आत्मीय मृदुवाणी में कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।

रिपोर्ट लेखन – डॉ॰ जयशंकर यादव