महाकवि बिहारी
-राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी
महाकवि बिहारी की गणना रीतिकाल के राज्याश्रित कवियों में ही की जाती है।
महाराज जयसिंह के दरबार में थे ही, किन्तु राजा के मन में उनका सम्मान इतना था कि जब राजा एक नयी-नवेली रानी के साथ राजकाज से भी विरत हो गये, तो बिहारी ने पहले बडी रानी से चिन्ता प्रकट की फिर उनकी सहमति से उन्होंने एक दोहा लिख कर उस महल के अन्तरंग में पंहुचवा दिया, जहां राजा विलासमग्न था >>
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यह काल।
अली कली ही सों बिंध्यौ, आगें कौन हवाल।
राजा ने दोहे के भाव को गहराई से आत्मसात कर लिया था। वह महल से बाहर आया, दरबार लगा और राजकाज के समस्याओं का समाधान करने लगा।
जब औरंगजेब ने राजा जयसिंह को आदेश दिया कि वह शिवाजी के विरुद्ध युद्ध करे। युद्ध की तैयारी चल रही थी उन दिनों बिहारी मथुरा में थे, जब वे आमेर पंहुचे तो मामले की नजाकत को पहचाना। कूच करने को सेना तत्पर थी, तभी बिहारी ने महाराज को एक दोहा सुनाया >>
स्वारथ सुकृत न, स्रम बृथा, देखि बिहंग विचार।
बाज पराये पानि पर, तू पच्छीनु न मार।
यह अन्योक्ति है।
इसमें विहंग [पक्षी : बाज] को संबोधन है कि दूसरे के हाथ पर बैठ कर तू पक्षियों को ही क्यों मार रहा है? न मार! तेरा न स्वार्थ सिद्ध होगा न ही यह पुण्य का कार्य ही होगा।
ऐसे अनेकानेक संस्कृतग्रन्थ हैं, जिनका हिन्दी में रूपान्तरण और अनुवाद हुआ। किन्तु जो रचना ब्रजभाषा से रूपान्तरित हो कर संस्कृत में पंहुचीं, उनमें से एक महत्वपूर्ण रचना है महाकवि बिहारी की सतसई। बिहारी की सतसई फारसी में भी अनूदित हुई और उसके दोहों के आधार पर अनेक चित्रकारों ने चित्र भी बनाये।
संस्कृत रूपांतरण दो हुए, एक मथुरानाथभट्ट ने किया तो दूसरा परमानन्दजी ने। उदाहरण >
खेलन सिखये अलि भलैं, चतुर अहेरी मार।
काननचारी नैन मृग, नागर नरन सिकार।
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मृगनयने मृगयाविधिं मदनो मुंजमुवाच।
वनचरनयनमृगाविमौ,नागरनरमृगया च। [भट्ट]
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अद्भुत इति मृगलोचने,मृगयाविधिस्तथैव।
यल्लोचनमृगकृतचतुरनरहिंसनमधुनैव॥ [परमानन्दजी]
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