रोबोट: एक शब्द की अनोखी यात्रा

~ विजय नगरकर, अहिल्यानगर, महाराष्ट्र

1920 का साल, जब चेक लेखक कारेल चापेक ने अपनी नाटकीय कृति R.U.R. (रॉसुम्स यूनिवर्सल रोबोट्स) के माध्यम से दुनिया को एक ऐसे शब्द से परिचित कराया, जो आज हमारी तकनीकी दुनिया का पर्याय बन चुका है—रोबोट। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस शब्द की जन्मकथा उतनी ही रोचक है, जितनी स्वयं इसकी अवधारणा? यह कहानी न केवल एक शब्द की उत्पत्ति की है, बल्कि यह उस युग की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को भी उजागर करती है, जिसने इसे जन्म दिया।

कारेल चापेक, एक प्रतिभाशाली लेखक, अपनी काल्पनिक दुनिया में कृत्रिम मानवों की रचना कर रहे थे। ये प्राणी न तो पूरी तरह मशीन थे, न ही पूर्णतः मानव, बल्कि एक ऐसी जैविक रचना थे, जो मनुष्यों की मेहनत को आसान बनाने के लिए बनाए गए थे। लेकिन इन प्राणियों को नाम देने का सवाल उनके सामने एक पहेली बनकर खड़ा हो गया। कहते हैं कि कारेल इस उलझन में अपने भाई, जोसेफ चापेक, के पास पहुंचे। जोसेफ, जो एक चित्रकार और लेखक थे, ने बिना देर किए सुझाव दिया—“रोबोट”। और बस, यहीं से एक शब्द का जन्म हुआ, जो आज विज्ञान, तकनीक और हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है।

लेकिन “रोबोट” शब्द की जड़ें और भी गहरी हैं। यह शब्द पुराने स्लाविक भाषा के शब्द रोबोटा से आया है, जिसका अर्थ है “श्रम,” “काम,” या फिर “गुलामी”। उस दौर में चेक भाषा में रोबोटा का इस्तेमाल उन अनिवार्य और बिना मेहनताने के कामों के लिए होता था, जो किसान अपने सामंती स्वामियों के लिए करने को बाध्य थे। यह शब्द उस कठोर मेहनत और बंधन को दर्शाता था, जो समाज के निचले तबके की नियति थी। क्या यह विडंबना नहीं कि जिस शब्द का जन्म “गुलामी” के अर्थ में हुआ, वह आज उन मशीनों का प्रतीक बन गया है, जो मनुष्य को श्रम से मुक्ति दिलाने का वादा करती हैं?

R.U.R. में चापेक के रोबोट धातु की मशीनें नहीं, बल्कि जैविक प्राणी थे, जिन्हें मानवों की तरह दिखने और काम करने के लिए बनाया गया था। ये आज के ह्यूमनॉइड रोबोट्स के प्रारंभिक स्वप्न थे—न कठोर धातु, न तारों का जाल, बल्कि एक ऐसी कृत्रिम सजीवता, जो मानव की मेहनत को अपने कंधों पर उठा ले। इस नाटक में चापेक ने न केवल तकनीकी प्रगति के सपने बुने, बल्कि उन नैतिक और सामाजिक सवालों को भी उठाया, जो आज भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में प्रासंगिक हैं। क्या मशीनें कभी मानव की जगह ले सकती हैं? क्या वे केवल श्रम करेंगी, या फिर हमारी भावनाओं, हमारी आत्मा को भी छू पाएंगी?

रोबोट शब्द की यह छोटी-सी कहानी हमें उस दौर में ले जाती है, जब मानव कल्पना ने पहली बार मशीन और मानव के बीच की रेखा को धुंधलाना शुरू किया था। जोसेफ के एक सुझाव ने न केवल कारेल के नाटक को एक नाम दिया, बल्कि पूरी दुनिया को एक नई सोच, एक नई संभावना दी। आज जब हम अपने घरों में वैक्यूम क्लीनर रोबोट्स देखते हैं, या कारखानों में अथक काम करने वाली मशीनों को, या फिर साइंस-फिक्शन फिल्मों में भावनाओं से भरे ह्यूमनॉइड्स को, तो उस छोटे से शब्द रोबोट की गूंज सुनाई देती है, जो कभी एक चेक लेखक के दिमाग में जन्मा था।

तो अगली बार जब आप “रोबोट” शब्द सुनें, तो उसे सिर्फ एक मशीन न समझें। यह एक कहानी है—श्रम की, स्वप्न की, और उस मानव कल्पना की, जो हमेशा असंभव को संभव बनाने की जिद करती है।

***** ***** *****

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »