– डॉ सुनीता शर्मा

आधुनिकता बनाम परंपरा

सिया ने अपनी डाइट का चार्ट बड़े ही मनोयोग से तैयार किया। गूगल खंगाला, विदेशी न्यूट्रिशनिस्ट के वीडियो देखे और आखिरकार एक नामी वेबसाइट से आर्डर कर दिया। डाइट प्लान तो हाथ में आ गया, पर साथ ही बजट भी हिल गया।

मां ने थोड़ी हैरानी जताई, पर कुछ बोली नहीं। लेकिन जब सिया ने दादी को गर्व से अपना ‘स्पेशल ऑर्गेनिक डाइट’ दिखाया, तो दादी हँसते-हँसते दोहरी हो गईं।

“अरे बिटिया! ये तो वही रागी, सतावरी और सत्तू है, जो हम बचपन से खा रहे हैं। अब तुम इसे गूगल पर ढूंढकर महंगे दामों में खरीद रही हो?”

दादी ने मुस्कुराकर कहा, “अगली बार जब सेहत बनानी हो, तो पहले किचन के डिब्बे खोल लेना, गूगल बाबा से बाद में पूछना!”

सिया का चेहरा उतर गया। वह सोचने लगी कि जिसे वह ‘इनोवेशन’ समझ रही थी, वह असल में पुरखों की विरासत है —बस आजकल कहीं अंग्रेजी नामों में लिपटी हुई..!

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