
– विकाश नकछेदी, मॉरीशस
विवश राजा लाचार पिता
अकेला पुरुष महल में पड़ा था,
ध्यान उसका युद्ध भूमि पर अड़ा था।
धर्म और अधर्म के बीच आज जंग है,
उसे है यकीन कि पराजय उसकी निश्चित है।
पर पुत्र मोह ने आज नेत्रहीन को पूरे अंग से अंधा कर दिया है,
प्रकृति का जो नियम है उसे आज तलक कोई न बदल पाया है।
पर चहेते बेटे ने लालच कभी नहीं त्यागा है, और उधर
विवश और लाचार राजा, आज राजा कम पिता ज्यादा है।
संजय उसे कुरुक्षेत्र का पल-पल का हाल सुनाता है,
अर्जुन अपने सगे-संबंधियों को सामने पाता है
उसके हाथ से उसका धनुष छूट जाता है।
श्री कृष्ण जी तब अपना विराट रूप दिखाते हैं,
समाज को तब गीता का ज्ञान प्राप्त कराते हैं।
अर्जुन के सारथी साक्षात हरि निकले
आत्मा के ज्ञान के परम गुरु निकले ।
यह सुन धृतराष्ट्र श्री कृष्ण को कोस्ता है।
पर उसे क्या मालूम के विधि के विधान को कोई नहीं बदल पाता है ।
चाहे पुत्र ही क्यों न हो, जो अधर्म की राह पर चलता है ।
वह अपने पाटन को खुद पालता है,
वह अपने दुर्भाग्य रास्ता खुद खोलता है।
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