– निशा भार्गव

आपरेशन सिंदूर

आज से 48 वर्ष पूर्व हमने भी किया था
ऑपरेशन सिंदूर
जिससे हमारे चेहरे पर छाया था नूर
माँग का सिंदूर रहा था चमक
और उसी दिन से शुरू हुई हमारी धमक
हम किसी समझौते का नहीं करते फेवर
हमें चाहिए तो चाहिए ही थे जेवर
वरना बिगड़ जाते थे हमारे तेवर
हमारी मर्जी के खिलाफ कुछ भी हो
यह हमें नहीं था बर्दाश्त
इसलिए प्रत्येक संधि हम कर देते थे बर्खास्त
छोटी सी बात पर भी चल जाते थे
बेलन, चिमटा और झर
वे बचाते फिरते थे अपना सर
हम तो भई घर में घुसकर ही लड़ते हैं
बाहर से तो निहायत शरीफ बनते हैं
हमारी रोजाना की लड़ाई में
कभी नहीं होता सीज़फायर
क्योंकि न वे कायर न मैं कायर
हमारा आपरेशन सिंदूर 48 years से जारी है
कभी वो तो कभी हम उन पर भारी हैं।
हमारे बीच कभी होता है छोटा मोटा
तो कभी होता है खतरनाक झगड़ा
वाक् युद्ध होता है बहुत ही तगड़ा
Never ending है हमारी प्यारी सी जंग
फिर भी हमारे दिलों में समाई है उमंग
हमारी शादी Contract नहीं
सात जन्मों का है बंधन
चाहे भारत में रहें या लंदन
कोई कूटनीतिक चाल भी
नहीं रोक सकती हमारा आपसी WAR
हम दोनों नहीं मानने वाले हैं हार
क्योंकि लड़े बिना हमें नहीं आता है करार
तो ये है operation सिंदूर का चमत्कार

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