
डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’, प्रयागराज
दिल में दीप जलाने वाले
(सार छन्दाधारित गीत)
घर-आँगन में घोर निराशा, चहुँदिश है अँधियारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
दुराचार के कारण निशदिन, जीवन में बदहाली।
दुर्व्यसनों के कारण अब तो, रूठ गयी खुशहाली॥
सद्भावों के दीप जलाओ, चहक उठे चौबारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
नंगा नाच दिखाती कटुता, वैमनस्य घर-घर में।
सारे दुर्गुण मन के भीतर, शोर करे नर-नर में॥
लिप्सा के लालच में पड़कर, मनुज हुआ बेचारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
नारी की अस्मत अब देखो, नित दिन लूटी जाती।
मानवता नीलाम हो गयी, झूठी है सब थाती॥
सदाचार सद्गुण जीवन में, होते नौ दो ग्यारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
जानी दुश्मन बन बैठा है, अब भाई का भाई।
लुप्त हुए हैं प्रेम दिलों से, हुए सभी सौदाई॥
वही बचायेगा दुर्गुण से, ईश्वर है रखवारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
नवल विचारों की बाती हो, तेल खुशी के डालो।
अपने जीवन के आँगन में, सदाचार नित पालो॥
जीवन-नैया पार लगे नित, हो सत्कर्म सहारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
सदाचार संयम जीवन में, सत्य मार्ग अपनाओ।
पाप-कर्म से दूर रहो नित, सद्गुण-सार जगाओ॥
सत्कर्मों को नित अपनाकर, हरदम करो गुजारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
मानव जीवन क्षणभंगुर है, समय सदा सौदाई।
इस जीवन के अंत समय में, बात समझ में आई॥
सरपट दौड़ लगाता जीवन, जैसे हो हरकारा।
दिल में दीप जलाने वाले, नित करते उजियारा॥
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Beautiful poem! Dil mein karate ujiyara!