डॉ. इंगीता चड्ढा (ठक्कर), ऑस्ट्रेलिया

संवेदनशील विश्वास

ना जाने कितनी बार पूछा होगा,
क्या हाल-चाल हैं आपके?
चलो माना कि जब सुनाने लगे हम हाले-दिल,
कर चले तुम — सुनकर भी अनसुना।
कह देने से कहाँ सुनी जाती है दिल की दास्ताँ,
महसूस करो तो जानो,
मेरे भीतर समंदर बोलता है।
हमने माना कि तुम्हारा साथ भी एक भ्रम है,
मगर फिर भी शायद कुछ मरासिम हैं।
रोक रखी है जिसने —
कुछ उखड़ी हुई साँसें,
कुछ डूबती हुई धड़कनें।

नहीं है मेरी चाहत कुछ पाने की मोहताज,
चाहे बस एक सनातन — अपनेपन का एहसास,
जो दे मुझे एक — अविरत आत्मविश्वास।

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