र्द रातें, टोक्यो और ‘तेनाली राम’

सुयोग गर्ग, जापान

ग़ौरतलब है कि पिछले कुछ सफ़्ताहों से शीत लहर ने शहर को झँझोड़ के रख दिया है। घर के दरवाज़े से बाहर निकलते हैं कि मानो रूह काँप सी जाती है। अब हुज़ूर इसमें आप गुस्ताखी किसकी मानेंगे, हमारी जो अपने देश के उस गर्म माहौल और मिज़ाज दोनों को ही छोड़कर इधर दूर विदेश में आकर बस गए हैं, या फिर इस निष्ठुर वातावरण का जो कि हमसे कोई आपसी रंजिश लिए मालूम पड़ता है। गलती किसी की भी हो, हम दोपहर से शाम तक का फ़ासला घर की गर्माहट और अपनी उस नर्म रज़ाई के भीतर रहने के परम सुख की आशा में किसी तरह व्यतीत कर भी लें, मगर जनाब ख़ुदा-न-ख़्वास्ता किसी रोज़ हमें यूनिवर्सिटी में देर रात तक रुक जाना पड़े। फिर साइकिल से घर लौटते वक्त इन हाथों की उँगलियों का क्या हश्र होता है, यह हमसे बहतर और कौन जान सकता है। हालांकि हमारे पास आला दर्जे के दस्ताने भी हैं, जिनका इस्तेमाल करना हम बाख़ूबी जानते हैं।

बहरहाल, वाक़या इन्हीं सर्द रातों में से किसी एक का है। कोई खास महत्वपूर्ण बात नहीं है। बस इतना है कि हमारे साथ धोखा हुआ है। गहरा और बड़ा धोखा, जिससे शायद ही हम फिर कभी उबर पाए। मगर आपको क्या? आप तो बस आगे पढ़िए।

पिछले माह की शुरुआत के दिनों की बात है। हम हाल ही में अपनी वार्षिक भारत यात्रा से जापान वापस लौटे थे। इस बार का आवास उधर लगभग एक महीने से भी ज़्यादा का हो गया था। हम भी क्या करते? लौट आने का तो मन ही नहीं कर रहा था। शीत ऋतु होने के बावजूद सूरज की धूप सेंकते हुए बीत रहे दिनों का और पारिवारिक संबंधों की मधुर मिठास का खिंचाव इस बार कुछ अलग ही सा था। और फिर टोक्यो की शीत लहरों से किसी का लगाव भी क्या? खैर लौट तो हम आए ही, आख़िर जरूरी जो था! लेकिन इधर आते साथ ही ना जाने किस शुभ काल में हमारे सूक्ष्म से मस्तिष्क में ख़्याल आया कि क्यों न यूट्यूब पर “तेनाली रामा” नामक सोनी टीवी पर कुछ वर्षों पहले अत्याधिक प्रचिलित हुआ धारावाहिक देखा जाए। अब इस ख़्याल आने के उस क्षण को शुभ कहा जाए या फिर अत्यंत ही मनहूस, मालूम नहीं, सच तो यह ही रहेगा कि जिस दिन से हमने उस शो को देखना चालू किया बस उसे देखते ही चले गए। दिनों क्या हफ्तों तक का रोज़ शाम का सिलसिला बस वही बन गया था।

इस तीव्र रुचि का करण केवल कहानी में दिलचस्पी ही नहीं थी, आख़िर तेनाली रामा के रोचक किस्सों से कौन ना-मुराद वाक़िफ़ नहीं है। दिल्लग़ी हमको शायद उन किद्दरों से भी हो गई थी। गौर फ़रमाइए कि अमूमन तेनाली रामा की कथाओं में केवल महाराज कृष्णदेवराय के दरबार और रामाकृष्णा के अपने बुद्धिकौशल द्वारा राज्य और प्रजा की विभिन समस्याओं का हाल खोज निकालने का ज़िक्र ही अधिक मिलता है। इन कहानियों में रामाकृष्णा के अपने निजी जीवन और परिवार का समाकलन आम तौर पर उतना अधिक नहीं होता। अब इस शो की ख़ास बातें यही दो थीं। एक तो यह कि निर्माताओं ने इन लोक कथाओं के विषय में शोध करने और जितना हो सकें उतनी नवीनतम कहानियों को शो के एपिसोडों के रूप में रूपांतरण करने में कोई कंजूसी न की थी, जिससे कि एक तो यह हुआ कि कहानियों से पहले से परिचित लोगों की रुचि शो में बनी रही, और तो और नए दर्शक भी जुड़ते गए। “तेनाली रामा” की दूसरी ख़ासियत यह थी कि रामाकृष्णा, उसकी पत्नी शारदा और माँ अम्मा से लेकर कपटी तथाचार्य और उसके शिष्य धनी और मणि तक के किद्दरों का चयन बेहद कुशलता से किया गया था। नाट्य कर रहे ये सभी पात्र अपने अपने किरदारों के ढांचे में यूँ ढल जाते जैसे मानो अपने ही किसी पिछले जन्म का जीवंत चित्रण कर रहे हों।

तो जनाब, जाहिर सी ही बात है कि उस 14वी शताब्दी की दुनिया में कदम रखते ही हम उसमें लुप्त से होकर रह गए। बस शाम होने का इंतज़ार रहता और घर लौटते ही उस विजयनगर की अद्भुत नगरी में प्रवेश हो जाता। उधर टेबल के मॉनिटर पर अपने मृत्युदंड से बचने का कोई उपाय खोजता रामाकृष्णा, और इधर बिस्तर पर रज़ाई ओढ़कर पड़े हुए हम। कभी प्यास लगने पर रज़ाई छोड़कर बिस्तर से हम उठते थे, और उधर यूट्यूब पर शारदा अपने “उठा लो!” की गूँज कर देती, जैसे कि उस ठंड में रज़ाई के अलग होते ही हमारे प्राण उठने की बात हो। वास्तव में कभी-कभी शारदा के उस प्रलाप का समय इतना सटीक बैठ जाता जैसे अतीत के काल की एक गूँज यहाँ सुनाई दे रही हो।

सब कुछ इसी प्रकार यूँ ही अच्छा चल रहा था। धीरे-धीरे विजयनगर की दुनिया में विचरते हुए हम एपिसोड 268 तक पहुँच गए थे। रामा को अब दरबार में विशेष सलाहकार नियुक्त हुए भी काफ़ी समय गुज़र चुका था। हम अपनी दिनचर्या में सुख से दिन गुज़ार रहे थे। सारा विजयनगर भी खुश मालूम पड़ता था। शारदा अब गर्भवती थी और राज दरबार में उसकी गोदभराई का कार्यक्रम भी ठीक ही से हो गया था। अचानक ही शो ने नौ महीनों का टाइमस्किप लिया और रामा के पिता बनते ही, शो के उन नमकहराम निर्माताओं को किसी ने ना जाने क्या पाठ पढ़ाया कि उन्होंने शारदा का पात्र निभा रही अभिनेत्री को ही बदल डाला। बस क्या था, हम तो जनाब आत्मघात पर उतर आए। वह नई शारदा का अभिनय हमको फूटी आँखों से देखने का भी मन नहीं करता था। आख़िर में हमको दिल पर पत्थर रखकर “तेनाली रामा” से अपना नाता तोड़ना ही पड़ा।

इस हादसे के कारण हमें जो आघात पहुँचा है, उससे हम अभी तक ठीक तौर पर उभर नहीं पाए हैं। हाँ, माना कि इतने बड़े स्तर के शो में इस प्रकार के परिवर्तन का जरूर ही कोई उचित कारण रहा होगा, मगर दर्शकों से निष्ठा का भी तो प्रश्न बनता है। आख़िर दर्शकों के कोमल हृदयों से वे निर्लज निर्देशक कैसे यूँ खेल खेल सकते हैं? अंत में नुक़सान भी तो उन्हीं का हुआ। हमारा गया भी तो गया क्या?

सुना है कि हाल ही में इस धारावाहिक का एक नया संस्करण भी सामने आया है। इसमें कुछ बदलावों के साथ वही पुराने अभिनेताओं के होने की खबर है। मगर एक बार का जला, हर कदम फूंक-फूंक कर रखता है। क्या मालूम इस संस्करण का भी जनाज़ा वे लोग उसी प्रकार निकाल दें। अब हम तो बस इन्हीं उलझनों में फँसे, सर्द शामों को मस्त चाय की चुसकियां लेते हुए गुजारते हैं। संभव है यह सिलसिला अभी कुछ और दिवसों के लिए ही सही लेकिन आगे भी बरक़रार रहे।

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