मैं चाहे अभी मज़बूर हूँ रुग्ण हूँ पर टूटी नहीं हूँ

आंचल में खुशियाँ समेटे, मैं सदा यूँ मुस्कराती रहूँगी।

रावण से कैंसर को भस्म करे, वह राह चाहे है जटिल

राम का वाण बन मैं,  इस राह पर फिर भी चलूँगी।

क्यों व्यर्थ सब मौन हैं भयभीत हैं विक्षुब्ध से अंधकार में  

नहीं जानते उस तिमिर में दीप बन मैं सदा जलती रहूँगी।

आत्म सम्बल चाँद बन जब तलक रहे चमकता पास में

चाँदनी बन मैं निरन्तर प्रगति पथ पर चलती रहूँगी।

आरोग्यसाधक पथ कंटकित है अनम्य है यह जानती हूँ

पर नैराश्यगामी मैं क्यों बनुँ जब सामने है मंजिल खड़ी।

पवन चलती कभी प्रतिकूल है, यह कटु सत्य मैं जानती हूँ

फिर भी साध्य पाने के पथ पर, मैं सदा यूँ चलती रहूँगी।

मैं चाहे अभी मज़बूर हूँ रुग्ण हूँ पर टूटी नहीं हूँ

आंचल में खुशियाँ समेटे, मैं सदा मुस्कराती रहूँगी ।

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-अनिता बरार

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