सुहाना सुहाना लगे यह मौसम,

यह रिमझिम यह सरगम यह गुंजन

यादों के बीच चले जब बचपन

मदहोश लहरों से सतरंगी सपने

आँखों में ठहरे साँझ सबेरे

धरती को चूमें अमुवा की डालें

बहकी फिजाओॆ में खुशबू के डेरे

पेड़ों के झुरमुट तले

ये पंचम, ये थिरकन, ये झनझन ये उन्मन

मेघा के बीच चले जब बचपन

सुहाना सुहाना लगे यह मौसम।।

कजरारे बादल में उलझे यह चंदा

ढूंढ़ रहा है अपना यह रस्ता

धुंधले पहाड़ों पे ठंडी हवाएं

आँख मिचौली करें काली घटाएं

खामोशियों के तले

ये सिहरन ये धड़कन, ये कंपन ये तड़पन

शबनम के बीच चले जब बचपन

सुहाना सुहाना लगे यह मौसम।।

-अनिता बरार

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