कविता

– कृष्णा कुमार

लिखने बैठी हूँ कविता,
कविता ये क्या है ?
ये हक़ीक़ते बयाँ है क्या ?

जिसे कहना बहुत मुश्किल हो,
लफ़्ज़ों से खेलना जिसकी फ़ितरत हो,
कई प्रकार की कल्पना हो,
कई भाव और अल्पना हो,
सपनों की उड़ान, धरातल की गहराई,
समन्दर सा रहस्यमय, पर्वत सा विशाल,
जिसके रूप अनेक हो,
जिसे समझना बहुत मुश्किल हो
यें शब्दे- जाल है क्या ?

लिखने बैठी हूँ कविता,
कविता ये क्या है ?
ये हक़ीक़ते बयाँ है क्या ?

ढूँढने की कोशिश की,
इस रहस्यमयी ख़ज़ाने को,
जितना तलाशा, जिज्ञासा उतनी ही बढ़ी,
लालच सा आ गया, मज़ा आने लगा,
एैसा लगा कविता,
मन के सारे तार खोलती,
सुन्दर संगीत की तरह,
कानों में रस घोलती,
गुनगुनाती
इक हालाते बयाँ है क्या ?

लिखने बैठी हूँ कविता,
कविता ये क्या है ?
ये हक़ीक़ते बयाँ है क्या ?

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