असहाय लोग

– कृष्णा कुमार

एक पाँच साल की बच्ची,
और उसकी तीन साल की बहन,
उचक उचक के चलते पाँव,
क्या हज़ार किलोमीटर चल पाएँगे?
नंगे पॉंव पे छाले कहाँ तक ले जाएगें?
एक मॉं, कन्धे और कमर पे उठाए दो बच्चे,
हाथ में सामान, क्या दर्शाते हैं?
पैर रुकते नहीं,
चलते चले जाते हैं !

बन्द कमरे की घुटन, न कमाई,
न अनाज, न कोई आस,
याद दिलाती गॉंव की हवा,
रुलाती मॉं की पुकार,
परिवार की बदहाली और मिलने की आस,
एक हिम्मत दे डालते हैं।
पैर रुकते नहीं,
चलते चले जाते हैं !

गाल धँसे हुए, आँखो पे गड्ढे,
भूखे पेट, मौत का भय,
नहीं डराते हैं।
करोना कौन सा विषाणु है,
इससे बड़ा तो इनका जुनून है,
अपने ज़मीं पे पहुँचने की आस,
एक हिम्मत दे डालते हैं।
पैर रुकते नहीं,
चलते चले जाते हैं !

स्त्री ने कहा, हमें कुछ कहना नहीं
चलो-चलो, घर पहुँचना है।
इन्हें आपकी मदद की माँग नहीं,
इन्हें आपसे उम्मीद नहीं,
ख़ुद से ही बुलंद है !
निराश किया आपने इतना कि,
अब ये स्वयम् ही स्वाभिमानी, निडर और
स्वावलम्बी बन गए हैं।

मन में निश्चय किया है कि
अब वापस ना जायेंगे,
ज़िन्दा रहे तो,
अपने ही घर में रोज़गार बनाएँगे,
देखिए इन्हें, अब ये,
आत्मनिर्भर बन गये हैं!

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