– विनोद पाराशर

खूबसूरत कविता!

मैं /जब भी
लिखना चाहता हूं
कोई खूबसूरत कविता!
अभावों की कैची
कतर देती है
मेरे आदर्शों के पंख!
कानों में-
गूंजती हैं-
आतंकित आवाजें
न अजान,न शंख!

मैं/जब भी
लिखना चाहता हूं
कोई खूबसूरत कविता
भ्रष्टाचारी रावण!
चुरा ले जाता है
मेरी ईमानदारी की सीता!

मैं /जब भी
लिखना चाहता हूं
कोई खूबसूरत कविता
बेटा-खींच लेता है
हाथ से कलम
और कहता है
इस कागज पर बनाओ
शेर,भालू या चीता!

मैं /जब भी
लिखना चाहता हूं
कोई खूबसूरत कविता
चुपके से-
गोदी में आकर
बैठ जाती है बिटिया
पूछती है
पापा!आज क्या लाये हो ?
सेब,केला या फिर पपीता!

और-
मैं/जब भी
लिखना चाहता हूं
कोई खूबसूरत कविता
पत्नी-दिखाती है-
अपनी निस्तेज आंखें
मुर्झाया चेहरा
मेरा फटा हुआ कोट
आटे का पीपा-एकदम रीता!

मैं /जब भी
लिखना चाहता हूं
कोई खूबसूरत कविता!

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