पुराने कैलेण्डर के अनुसार साल का अंत बहुत ही सुखद लग रहा है , क्या गावं क्या शहर , कोई भी इस सुखद अंत से अछूता नहीं था I नए साल के स्वागत में चारों ओर पठाखे छोड़े जा रहे हैं, और आकाश पटाखों के बारूद के धुएं से भर गया है , मानो आकश भी नए साल के आने की कहानी कह रहा हो I आकश में बिजली चमक रही थी, चारों ओर से पटाखों की आवाजें आ रही थी जो रसोईघर के देवता के प्रस्थान की ख़ुशी मना रहे थे I और इसी बीच एक दिन मैं अपने पैतृक गावं लुचन पहुंचा I यद्यपि मैं इसे अपना पैतृक गावं कहता हूँ, लेकिन अभी तक मैंने यहाँ पर अपना घर नहीं बनवाया है I यहाँ आने पर मैं अपने लू चाचा के यहाँ ठहरता हूँ, जिन्हें मैं प्यार से  छोटे चाचा कहकर बुलाता हूँ , जो मेरे ही खानदान के हैं I अगले दिन सुबह मैं अपने पुराने मित्रों और खानदान के लोगों से मिलने निकला , गावं और गावं के मित्रों में मुझे कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिखा , बस लोग पहले से थोड़े बूढ़े हो गए थे , लेकिन प्रत्येक घरों में “बलिदान ” की तैयारी हो रही थी I यह लुचन गावं में वर्ष के सबसे अच्छे अंत का समारोह था , जब सभी लोग श्रद्धा के साथ “भाग्य के देवता ”का स्वागत करते हैं और आने वाले वर्ष में सौभाग्य की कामना करते है I मुर्गी ,बतख , सूअर काटे जा रहे थे , उन्हें धोते समय महिलाओं के हाथ खून से लाल हो गए थे  I मांस पक जाने के बाद उसमें चॉपस्टिक (यह लकड़ी का बना होता है जिससे चीनी लोग खाना खाते है I ) को खड़ा कर के रख दिया जाता है , यह “भेंट ” कहलाता है I यह भेंट भोर में देवता को अर्पित किया जाता है , “भेंट ” के चारों और धुप एवं मोमबतियां जला कर लोग श्रद्धापूर्वक “भाग्य के देवता ” को भेंट ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करते है I केवल पुरुष ही बलि को चढ़ाते है , उसके बाद पटाखे चलाने का दौर शुरू होता है , ऐसा हर परिवार में होता है बशर्ते वे “भेंट ” और पठाखे खरीद सकें , और इस वर्ष भी लुचन गावं के लोगो ने स्वाभाविक रूप से अपने पुराने रीती – रिवाज का पालन किया I

चारों ओर लोग नववर्ष की स्वागत में लगे थे , महिलाओं के हाथों में गोदना गोदवाए जा रहे थे I मेरी छोटी चाची भी नए साल की तैयारी में लगी थी , लेकिन चाची के घर में उनकी नौकरानी श्यांगलीन बहु (श्यांगलीन की पत्नी ) को नहीं देखकर उसके द्वारा पूछे गये तीनों प्रश्न मेरे मनोमष्तिष्क में कौंध गये  जो उसने पिछली बार मेरे गावं आने पर पूछा था  I उसका स्याह बुझा हुआ चेहरा , सफ़ेद बाल  मुझे बरबस याद आ गए I मुझे देखते ही उसने कहा ;

 अच्छा ! तुम वापस आ गए ?

हाँ !

“यह बहुत अच्छा है I आप विद्वान् हैं , बहुत यात्रा भी कर चुके हैं , बहुत कुछ देखा सुना भी है I मैं बस आपसे कुछ पूछना चाहती  हूँ I ” यह कहते कहते उसकी बुझी हुई ऑंखें अचानक चमक उठी I

मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह मुझसे इस तरह बात करेगी , मैं वहीँ जड़वत खड़ा रहा I

वह दो कदम चलकर मेरे और नजदीक आई और बहुत ही आत्मविश्वास के साथ धीरे से पूछा  – “क्या आत्मा का अस्तित्व होता है ? क्या मरने के बाद आदमी भूत बन जाता है ? ”

यह सुनकर मेरे पुरे शरीर में लहर सी दौड़ गयी I उसने जिस तरह से मेरी आँखों से आँखों से मिला के मुझसे प्रश्न पूछा था , मेरी रीढ़ की हड्डी भी कांप गई थी I मैं उस एक छोटे बच्चे से भी अधिक घबड़ा गया था जो पहले दिन स्कुल जाता है और शिक्षक उससे अप्रत्याशित प्रश्न पूछ बैठते हैं I आत्मा का अस्तित्व होता है कि नहीं , मुझे इसकी चिंता नहीं थी , लेकिन श्यांगलीन बहु  के लिए इसका सही उत्तर क्या हो सकता है , मुझे बस इस बात की चिंता थी I एक क्षण रुकते हुए ,लड़खड़ाते हुए बोला – आत्मा का अस्तित्व हो सकता है I

इसका मतलब , तब तो नरक भी होना चाहिए ?

श्यांगलीन बहु का यह दूसरा प्रश्न था जो उसने मुझपर तीर की तरह छोड़ा था I

 क्या…?  नरक ….?

तार्किक रूप से कहा जाय तो नरक का अस्तित्व होना भी चाहिए लेकिन कोई निश्चित नहीं है , कौन इतना ध्यान देता है ?

मैंने जैसे तैसे उसके प्रश्नों का उत्तर पूरा किया I

तब तो मरने के बाद घर के सारे सदस्य एक बार फिर से मिलेंगे ? तीसरा प्रश्न उछाला था श्यांगलीन बहु  ने I  मैंने महसूस किया कि वास्तव में मैं पूर्ण रूप से मुर्ख हूँ , क्योंकि मेरा संकोच और मेरे चेहरे के भाव उसके तीनों प्रश्नों से मेल नहीं खाए था I जल्दी जल्दी में मैंने जो भयानक बातें श्यांगलीन बह से कह दी थी, उससे वापस मुड़ने के विचार में पड़ा ……..I

ऐसी स्थिति में ……

वास्तव में …..मैं निश्चित नहीं हूँ I

सही कहो तो मैं पूरी तरह निश्चित नहीं हूँ कि भूत होते है  यह नहीं ….I

श्यांगलीन बहु फिर कोई प्रश्न पूछे , इसके पहले मैं वहां से भाग निकला I एकांत में विचार करने पर मैंने पाया कि बहुत ही भयानक उत्तर दे दिया है I निश्चित रूप से इस समय उसके मष्तिस्क में उथल पुथल मची होगी जबकि इस समय सभी लोग नए साल के उत्सव को मनाने में व्यस्त है I यह आने वाली घटना का पूर्वाभ्यास तो नहीं  ? यदि श्यांगलीन बहु के मन में कोई दूसरा विचार आ रहा हो , और यदि परिणाम कुछ ख़राब हुआ तो आंशिक रूप से उस घटना में मेरी भी जिम्मेदारी होगी I

मुझे अपने आप पर हंसी आई , मैं उस विषय के बारे में चिंतित हूँ जिसका कोई गंभीर महत्व ही नहीं है I वैसे भी विद्वान लोग मुझे संशयवादी कहते है I

“मैं निश्चित नहीं हूँ I ” यह बहुत ही उपयोगी वाक्य है I

अगले दिन चाचा के कमरे से तेज तेज आवाज अ रही थी , लग रहा था कि किसी गंभीर बात पर बहस हो रही थी , लेकिन जल्दी ही बहस समाप्त हो गयी I मैंने महसूस किया कि चाचा – चाची के बीच बहस का कारण मैं भी हो सकता हूँ I थोड़ा इंतजार किया चाची  के निकलने का लेकिन निराशा ही हाथ लगी I अंततः अन्दर जाकर मैं चाची से पूछ बैठा कि छोटे चाचा किस बात पर इतने गुस्सा थे ?

श्यांगलीन बहु I

जबाब मिला I

क्यों ?

वो चली गयी ……I

क्या , अब वह नहीं रही ?

कुछ देर के लिए मेरे दिल की धड़कन बंद हो गई I पूछा – कब मरी ? कल रात या आज सुबह ?

निश्चित नहीं हूँ I

कैसे मरी ?

बिना शक ……गरीबी के कारण I

“आने वाली घटना का पूर्वाभ्यास ” सच हो गया I श्यांगलीन बहु की मृत्यु भयंकर गरीबी अर्थात पैसों के अभाव में हुई , ये सोच कर मैं अपने आप में जला जा रहा था I मेरा सर्वोदयी उत्तर “मैं निश्चित नहीं हूँ ”, मेरे ह्रदय को जलाये जा रहा था I इसमें मैं अपना भी अपराध महसूस कर रहा था I

अगले दिन मैं वहां से लौट आया , मेरे छोटे चाचा ने भी भी रुकने के लिए दबाब नहीं डाला I जाड़ा का दिन था , दिन छोटा ही हो रहा था , चारों ओर बर्फ़बारी हो रही थी , समूचा शहर लिफाफा की तरह बंद था I दिए जलते हुए घरों से रुक रुक के हल्ला गुल्ला की आवाज आ रही थी , लेकिन बाहर पूरी तरह शांत था I बहार सिसक – सिसक कर बर्फ गिर रही थी, जो एक पतली परत का रूप धारण कर चुकी थी , यह किसी के भी अकेलेपन को बढ़ाने के लिए काफ़ी थी I मैं सोचने लगा उस अभागन , असहाय औरत के बारे में जिसका हाल कूड़े जैसा हुआ I जैसे किसी फटे हुए पुराने गुडिया से तंग आकर उसका मालिक कूड़े पर फेंककर अपने जीवन का आनंद उठाते हुए  गुड़िया के लिए सोचे कि वह ठीक हो   I और अंततः वो सर्वदा के लिए मृत्यु की गोद में सो गयी I आत्मा का अस्तित्व होता है या नहीं , मैं नहीं जानता लेकिन हमारे संसार में हर एक बेकार अस्तित्व का अंत उसी तरह है जैसे उस वस्तु का बदलना जिसे लोग देखते देखते थक गए हों I

श्यांगलीन बहु के जीवन का एक टुकड़ा जिसे मैंने देखा और सुना था अब वह पूरा …………I

वो लुचन गावं की नहीं थी, जाड़े की एक सुबह , श्रीमती वेई श्यांगलीन बहु को लेकर छोटे चाचा के घर लेकर आयीं थी, मेरी चाची को एक नौकरानी की जरुरत भी थी ,  श्रीमती वेई ने ही  उसका परिचय मेरी चाची से कराया –  ये  श्यांगलीन बहु है जो मेरे मायके  में मेरी  पडोसी हैं , इनके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं,  ये काम ढूँढ रहीं हैं I मेरे छोटे चाचा जो कन्फ़्यूशियस के विचारों को मानने वाले हैं, वे यह सुनकर आपे से बाहर हो गए , वे श्यांगलीन बहु को एक विधवा के रूप में अपने घर काम पर नहीं रखना चाहते थे , लेकिन चाची ने श्यांगलीन बहु के मजबूत हाथ पैर, उसकी चुप्पी , उसकी नीचे झुकी हुई नजर को देखा , जो एक अच्छी नौकरानी होने के सभी शर्तों को पूरा करता था I और इस प्रकार मेरी चाची ने छोटे चाचा के गुस्से और अहसमति को दरकिनार करते हुए  श्यांगलीन बहु को पांच सौ रूपये प्रतिमाह पर घर के काम के लिए रख लिया I

हर कोई उसे श्यांगलीन की बहु के नाम से ही बुलाता था , कोई भी उसके  वास्तविक नाम से उसे नहीं बुलाता था I श्यांगलीन बहु सुबह से लेकर शाम तक काम करती थी , बहुत पूछने पर एक या दो शब्दों में उत्तर देती थी I बहुत दिनों के पूछने पर पता चला कि उसकी सास बहुत ही कर्कशा है , दस साल का उसका एक देवर भी है , उसका पति जो उससे लगभग दस साल छोटा था , लकड़ी काटने का काम करता था I गावं के लोग आपस में बात करते थे कि श्यांगलीन बहु एक बहुत मेहनत करने वाले मर्द से भी अधिक काम करती है I नए साल का त्यौहार बीतने के बाद ,एक दिन वह चावल धोने नदी के किनारे गई , वापस आने पर वह कुछ चिंतित सी दिख रही थी , क्योंकि नदी के उस पर एक आदमी बहुत तेज़ तेज़ क़दमों से चहलकदमी कर रहा था , जो उसके देवर जैसा लग रहा था , हो सकता है वह मेरी खोज में आया हो I इस घटना को जानने के बाद छोटे चाचा बिफर पड़े कि “वह निश्चित ही यहाँ से भाग जाना चाहती है I ”

इस घटना को बीते लगभग एक महिना हो चूका था , और सब कोई इसे भूल भी चूका था , कि एक दिन दोपहर में श्रीमती वेई अचानक एक औरत के साथ मेरे चाचा के घर आई ,उस औरत का परिचय श्यांगलीन बहु के सास के रूप में चाची से कराया और कहा कि ये अपनी बहु को वापस ले जाना चाहती हैं , क्योंकि अभी वसंत का शुरूआती महिना चल रहा जो बहुत व्यस्तता भरा होता है और घर में इनका कोई हाथ बटाने वाला भी नहीं है I

“अगर उसकी सास उसे ले जाना चाहती है तो इसमें कुछ कहने कि क्या आवश्यकता  है “ छोटे चाचा ने अपनी भड़ास निकाली I चाची ने उसे 1750 रुपये नगद और श्यांगलीन बहु के कपडे उसे दे दिए , जिसे लेकर वह चली गयी I

ओह्ह ! चावल …चाची चिल्लाई I

क्या  श्यांगलीन बहु चावल धोने नहीं गई है ?

घर में कठवत (चावल धोने की टोकरी ) की खोज होने लगी , रसोईघर से लेकर बरामदा तक चाची ने सारा घर छान मारा लेकिन कठवत कहीं नहीं मिला , अंत में  छोटे चाचा ने नदी पर जाकर देखने के लिए कहा I नदी के किनारे जाने पर चाची को जमीन पर गिरा हुआ कठवत मिला , उसमें के चावल वहीँ नीचे बिखरे पड़े थे I नदी के किनारे के कुछ लोगों ने बताया कि एक सफ़ेद ढंका हुआ नाव सुबह से ही किनारे पर लगा था , लेकिन उसके अन्दर कौन कौन था ये नहीं दिखा , और जैसे ही श्यांगलीन बहु चावल धोने के लिए झुकी तभी दो आदमी पहाड़ की तरफ से आये और उसे जबरजस्ती नाव में बैठा कर लेते गए I  उसने चिल्लाना चाहा लेकिन जल्दी ही वह चुप हो गई ,क्योंकि तभी दो औरतें नाव में चढ़ीं जिसमें से एक अपरिचित महिला थीं और एक श्रीमती वेई थी I

शाम में श्रीमति वेई चाचा के यहाँ पहुंची , उन्हें देखते ही छोटे चाचा अपने आपे से बाहर हो गए I

तुमने दुबारा अपना चेहरा दिखाने की हिम्मत कैसे किया ? पहले तुमने उसे काम पर लगाया और फिर उसे भगा के ले गई, आखिर तुम दिखाना क्या चाहती हो ?

हे भगवान ! मुझे क्षमा करें श्रीमान लू , मुझे पता नहीं था कि वह घर से बिना बताए ही आई है , कृपया मेरी स्थिति को समझें, मैं भाग्यशाली हूँ कि आप बहुत बढियां व्यक्ति हैं और मुझे क्षमा करेंगे I

मेरी चाची अभी भी श्यांगलीन बहु को नहीं भूल पाई थी I अगले दिन श्रीमती वेई नववर्ष की शुभकामना देने चाचा के घर आईं I चाची से श्यांगलीन बहु के बारे में पूछे बिना रहा नहीं गया , और श्रीमती से वेई से पूछी कि श्यांगलीन बहु कैसी है ? उसका नाम सुनते ही श्रीमती वेई एकदम से उछल पड़ी – श्यांगलीन बहु ….!  उसका भाग्य फिर से जाग चूका है , उसकी सास ने उसकी दुबारा शादी कर दी है , अब वह बहुत खुश है I

“कितनी महान सास है उसकी ” चाची ने कहा I

महान ….और उसकी सास ?

उसकी सास वास्तव में बहुत महान है, उसने श्यांगलीन बहु की शादी पहाड़ी इलाके में कर दिया जहाँ कोई अपनी लड़की नहीं देना चाहता और बदले में उसकी सास ने अस्सी हज़ार रुपये नगद लिया  , श्यांगलीन बहु को बेच कर उसकी सास ने अपने छोटे बेटे के लिए पचास हज़ार में दुल्हन ख़रीदा , दस हज़ार रूपये शादी में खर्च किया और बीस हज़ार रुपये अभी भी उसके हाथ में है I वह बहुत ही चालक औरत है , श्रीमती वेई ने बताया I लेकिन श्यांगलीन बहु की सहमति ………..? उसकी इच्छा जानने का कोई प्रश्न ही नहीं था श्रीमती लू I

एक दिन सुबह सुबह मेरे छोटे चाचा के दरवाजे की घंटी बजी , चाची ने दरवाजा खोला , दरवाजे पर श्रीमती वेई श्यांगलीन बहु के साथ खडी थीI  श्यांगलीन बहु एक बार फिर अपना पति खो चुकी थी , लेकिन इस बार वह पति के साथ साथ अपने छः माह के बच्चे को भी खो चुकी थी , जिसे भेड़िया उठा ले गया था , उसके देवर ने उसके घर पर कब्ज़ा कर उसे घर से निकाल दिया था I लू चाची ने महसूस किया कि वह अब पहले वाली श्यांगलीन बहु नहीं रही , उसके चेहरे पर हंसी की एक लकीर भी नहीं थी , उसका चेहरा मुखौटे की तरह मरा हुआ सा था , उसका शरीर और दिमाग दोनों ने काम करना छोड़ दिया था I अभी भी लोग उसे “श्यांगलीन बहु” के नाम से ही पुकारते थे I वह अपने बेटे को हमेशा याद करती I “ओह्ह , मैं सही में बेवकूफ थी ”अपने आप से कहती और आकाश की तरफ देखती रहती I नया साल आने वाला था , लू चाचा ने कुछ दिनों के लिए एक पुरुष नौकर को रख लिया था I एक दिन ने जिसका नाम अमाह लियु था , उसने श्यांगलीन बहु से कहा कि तुमने दो – दो शादियाँ की है , मरने के बाद जब तुम नरक में जाओगी तो तुम्हारे दोनों पति के भूत तुम्हें पाने के लिए आपस में लड़ना शुरू कर देंगे I तब यमराज तुम्हारे शरीर को दो भाग में काट देंगे , और आधा – आधा शरीर तुम्हारे दोनों पतियों में बाँट देंगे  I

मैं सोचता हूँ कि यह बहुत ही ……….?

वह बहुत डर गई I

बढ़िया होगा कि तुम रक्षा के देवता के मंदिर में जाओ और एक “प्रवेश द्वार” खरीदकर दान कर दो I श्यांगलीन बहु ने कुछ कहा तो नहीं लेकिन इस सलाह को ह्रदय से लगा लिया I अगले दिन वह रक्षा के देवता के मंदिर पहुंची और दान करने के लिए एक “प्रवेश द्वार ” खरीदने की बात पुजारी से कहा I पहले तो पुजारी ने उसकी प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया , लेकिन जब श्यांगलीन बहु निराशा होकर रोने लगी तो अंतत पुजारी ने अनिच्छापूर्वक हामी भरी I  पुजारी जी ने प्रवेशद्वार का शुल्क बारह हज़ार रुपये बताया I

अगले दिन उसकी आँखे उदास थी , उसका चेहरा स्याह हो चूका था I छः माह में ही उसके बाल भूरे हो चुके थे और उसकी स्मरण शक्ति ख़त्म हो चुकी थी I वह अक्सर चावल धोने के लिए जाना भूल जाती थी , खाली समय में वह मूर्खों की तरह चुपचाप बैठी रहती थी I उसमें कोई सकारात्मक परिवर्तन होता हुआ नहीं दिख रहा था I उसकी समझ वापस आएगी इसकी भी कोई आशा दिखाई नहीं दे रही थी I इसलिए चाचा और चाची ने मिलकर निर्णय लिया कि उसे श्रीमती वेई के पास जाने के लिए कह दिया जाय I चाचा और चाची ने उससे क्या कहा नहीं पता , उस समय मैं वहीँ पर था I क्या उनलोगों का ऐसा करना आवश्यक था ?उसने मेरे चाचा का घर छोड़ने के बाद भीख मांगना शुरू किया या पहले श्रीमती वेई के घर पहुंची और उसके बाद भिखारी बनी , मैं नहीं जानता I

नजदीक और दूर से आते हुए पटाखों की आवाजों से मेरी नींद खुल गई I लालटेन की मद्धिम पीली रोशनी और पटाखों के शोर से लग रहा था कि मेरे छोटे चाचा के यहाँ नववर्ष का बलि दिया जा चूका है I लग रहा था कि पौ फटने वाली है I इधर उधर की आवाजें सुनते हुए मैंने दूर पास से आती हुई अंतहीन पटाखों की आवाजें सुनी , ऐसा लग  रहा था कि पूरा शहर शोर के घने बादलों में बंद सा हो गया है और बर्फ के फुहारों से नहा गया है I इन सब से मैं आराम महसूस कर रहा था, और मुझे ऐसा लग रहा था कि भी चीजें रात से लेकर अबतक मेरे मनोमष्तिष्क में चल रहा था वह इस नए साल के खुशनुमें वातावरण में खो गया है और मैं अपने आप को अपेक्षाकृत तरोताज़ा महसूस कर रहा था I मैंने बस यहीं महसूस किया कि स्वर्ग के देवदूत नए साल के बलिदान को स्वीकार कर रहे हैं और ख़ुशी में आकाश में झूम रहे हैं तथा लुचन गावं के लोगों को खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दे रहे हैं I

 

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