मूल लेखक – प्रो. यु लोंग यू , निर्देशक , भारत अध्ययन केंद्र , शनचन विश्ववविद्यालय , चीन
अनुवादक – डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी , एसोसिएट प्रोफ़ेसर (हिंदी ), क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्ववविद्यालय ,चीन
सारांश – एशिया, अमेरिका और अफ्रीका कपास के मूल उद्गम स्थान हैं, लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता में सूती कपड़ा उद्योग का प्रचलन सबसे पहले था । चीन और यूरोप में सूती कपड़ा उद्योग भी भारत से पहुंचा। चीनी और यूरोपीय भाषाओं में प्रयुक्त “कपास” शब्द संस्कृत से आया है। मेरा आगामी उपन्यास “ह्वांग ताओ फ़ो ” प्राचीन चीनी लोगों की कहानी का वर्णन करता है जिन्होंने कपास कताई कौशल में सुधार करके अपने जीवन को बेहतर बनाया।
यूरोपीय लोग कपास के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ थे, और इसे जानवरों और पौधों के मिश्रण के रूप में कल्पना करते थे- “पौधा वाला भेड़”। हालांकि, ” साम्राज्यवादी विस्तार, दासता, भूमि हथियाने-युद्ध पूंजीवाद ने सूती वस्त्र उद्योग की नींव रखी, जो अभी भी यूरोपीय देशों में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में छोटा और पुराना है। युद्ध एवं पूंजीवाद ने सूती वस्त्र उद्योग के लिए एक सक्रिय बाजार प्रदान किया है तथा साथ ही प्रौद्योगिकी और महत्वपूर्ण कच्चे माल भी प्रदान किया है । ” उपरोक्त कथन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्वेन बेकेट द्वारा ” कपास साम्राज्य-एक वैश्विक पूंजीवाद का इतिहास “मेंउल्लिखित है I भारत और चीन, जिन्होंने कपास उद्योग में महान योगदान दिया था, बाद में युद्ध पूंजीवाद के आक्रमण के कारण उपनिवेश और अर्ध-उपनिवेश में परिणत हो गए ।
आज, हम चीनी और भारतीय विद्वानों को इतिहास के इस कालखंड को सावधानीपूर्वक अध्ययन और रेखांकित करना चाहिए, “सूती मार्ग ” और “रेशम मार्ग ” को एक-दूसरे को प्रतिबिंबित करना चाहिए, पश्चिम में प्रचलित झूठ “शिन च्यांग रक्त कपास” का सच विश्व समाज के सामने रखना चाहिए , और मानव जाति के लिए एक साझे भविष्य के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए ।
मुख्य विषय ;
हमारा यह विश्व “भाग्य” के बारे में है I वर्ष १९७० से मैंने अपने हिंदी में दिए गये पुराने व्याखानों पर आधारित “ह्वांग ताओ फ़ो ” शीर्षक से उपन्यास लिखना शुरू किया I ५० वर्षों के बाद , मैंने भारत के प्रसिद्ध सांस्कृतिक शहर वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित वेबिनार “बहु भाषावाद – भाषा एवं सांस्कृतिक विमर्श के परिप्रेक्ष्य ” में अपना यह व्याख्यान दिया I उपरोक्त प्रयुक्त शब्द जैसे “विश्व ”, “भाग्य ” , “हिंदी ” ये सभी भारतीय भाषा से चीनी में अनुदित हैं, उपन्यास के मुख्य पात्र ह्वांग ताओ फ़ो का भारत से लम्बा सम्बन्ध है I
ह्वांग ताओ फ़ो और चीनी कपास वस्त्र उद्योग
चीनी इतिहास में तीन महिलाओं की शौर्य गाथा सर्वाधिक प्रसिद्ध है ;ह्वा मू लान,मू कुई यिंग तथा ह्वांग ताओ फ़ो I ह्वा मू लान अपने पिता के लिए सेना में जाकर अपने देश की रक्षा करने की कहानी प्रसिद्ध है I ह्वांग ताओ फ़ो कपास वस्त्र उद्योग के तकनीक की उपयोगकर्ता हैं , उनके योगदान से ही कपास वस्त्र उद्योग उनका गृहशहर शंघाई चीन के सूती वस्त्र उद्योग का केंद्र बन गया , और उन्हें भी “जनसामान्य को सूती वस्त्र की उपलब्धता ” कराने वाली महिला के रूप में ख्याति मिली I यद्यपि कपास कताई और कपास से सूती वस्त्र बनाने की तकनीक का अविष्कार भारतीय लोगों द्वारा मानव सभ्यता का महान योगदान है I “सूती मार्ग ” से होकर कपास कताई की तकनीक भारत से होकर चीन ,दक्षिण –पूर्व एशिया, जापान , यूरोप , अफ्रीका तथा अमेरिकी महादेश में पहुंचा I
जैसा कि सर्वविदित है शंघाई चीनी सूती वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र था I कालांतर में शंघाई का कपास कताई धीरे – धीरे वू शी,चन्ग्चौ , शीआन, शिनच्यांग जैसे कपास उत्पादक क्षेत्रों में विकसित हुआ I इस प्रकार विश्व सूती वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में चीन और भारत ने महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया I विश्व सूती वस्त्र उद्योग में चीन ने जो महान उपलब्धि प्राप्त की है उसमें ह्वांग ताओ फ़ो का योगदान अतुलनीय है जिसे चीनी सूती वस्त्र उद्योग से अलग नहीं किया जा सकता I
ह्वांग ताओ फ़ो का समय चीन के सोंग राजवंश का अंतिम एवं युआन राजवंश (लगभग १३ वीं सदी ) का प्रारंभिक काल का है I उस समय चीन में युद्ध की स्थिति थी, युद्ध की विभीषिका के कारण एक समय में बहुत ही समृद्ध रहने वाला च्य्यांग नान शहर आम लोगों के रहने के लिए उपयुक्त नहीं रह गया था , और आम जनता पलायन करने लगी थी I बचपन में ही ब्याह दी गयी ह्वांग ताओ फ़ो की जिन्दगी और दयनीय हो गयी थी,उसके बाल पति की बीमारी से मृत्यु के बाद वह प्रतिदिन होने वाले उत्पीडन को सह नहीं सकी और एक दिन अमावस्या की काली रात में चोरी – चोरी छुपते छुपते नाव से भाग कर हायनान द्वीप पहुँच गयी I ली जनजाति के संबंधियों के सहयोग से ह्वांग ताओ फ़ो न केवल जीवित रही बल्कि एक शानदार बुनाई शिल्प कला भी सीख लिया I परन्तु वह हमेशा अपने गाँव और वहां के अपने सगे – सम्बन्धियों को याद किया करती थी, अपने गृहनगर वासियों को वह ली जनजाति के कपडा बुनाई के कौशल को सिखाने की इच्छा रखती थी तथा उन्हें एक अच्छा जीवन जीने में सहायता करना चाहती थी I
अंततः २० वर्ष के उपरांत ह्वांग ताओ फ़ो शंघाई के वू नी चिंग शहर लौट आई I ह्वांग ताओ फ़ो अपने साथ कपड़ा बुनाई शिल्प वापस लाई और ग्रामीणों के कार्य क्षमता और रहन सहन में अत्याधिक सुधार किया I च्यांगनान क्षेत्र के बहुत से युवा धीरे धीरे वू नी चिंग ह्वांग ताओ फ़ो से कपड़ा बुनाई की कला सीखने के लिए आने लगे I कुछ वर्षों के बाद ह्वांगफु नदी के दोनों किनारे कई प्रसिद्ध कपड़ा शहर बस गए , कुछ वर्षों के कठिन संघर्ष के उपरान्त ह्वांग ताओ फ़ो का कपड़ा बुनाई कौशल पुरे च्यांगनान क्षेत्र में फ़ैल गया I ह्वांग ताओ फ़ो की मृत्यु के बाद शंघाई और च्यांगनान क्षेत्र में ह्वांग ताओ फ़ो की याद में बहुत से मंदिरों का निर्माण कराया गया , उनकी प्रशंसा करते हुए लोकगीत गाये गए I १९४९ में नए चीन की स्थापना के बाद ह्वांग ताओ फ़ो के महान योगदानों को देखते हुए सरकार ने उनके कार्यों को स्कूली पाठ्यक्रम में रखा , ह्वांग ताओ फ़ो के गावं वू नी चिंग में “ह्वांग ताओ फ़ो स्मृति भवन ” का निर्माण कराया गया जहाँ प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं I
मैं और ह्वांग ताओ फ़ो एक ही स्थान से हैं I मैंने ह्वांग फ़ो नदी के दोनों किनारों की संस्कृति, इतिहास , रीती- रिवाज का समुचित अध्ययन किया है , इसलिए मैंने अपने पहले उपन्यास के रूप में <ह्वांग ताओ फ़ो > लिखना शुरू किया I वर्ष १९८४ में पेइचिंग विश्वविद्यालय में १९ वर्ष के अध्ययन एवं अध्यापन के उपरान्त मैं शनचन विश्वविद्यालय आ गया , पेइचिंग विश्वविद्यालय छोड़ते समय मैंने अपने सारे मूल्यवान सामानों को दूसरों को दे दिया , अपने साथ केवल एक बर्तन और २६ पुस्तकों का बक्सा लेकर आया I जो एक बर्तन मैं लेकर आया था वो पेइचिंग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शिक्षक ने मुझे मेरे शादी के अवसर पर उपहार दिया था , पुस्तकों के २६ बक्सों में दो बक्सों में <ह्वांग ताओ फ़ो > उपन्यास की पांडुलिपियाँ थी I मेरे पास एक बर्तन था , और कुछ पुस्तकें , ये दोनों मेरे अध्यापन और जीवन के लिए पर्याप्त थे I एक हिंदी शिक्षक से चीनी शिक्षक के रूप जुड़ना मेरे लिए बहुत बड़ा बदलाव था , उपन्यास <ह्वांग ताओ फ़ो > के पांडुलिपि को संशोधित करने के लिए मेरे पास पर्याप्त समय नहीं था I वर्ष २००१ में पत्नी और बेटी के आग्रह पर मैंने उपन्यास को पुनः संकलित करना शुरू किया I लेकिन कार्य का दायित्य अधिक होने के कारण उपन्यास लेखन कार्य कई बार रुक गया I मित्रों और शुभचिंतकों के सहयोग से इस वर्ष मेरा यह उपन्यास प्रकाशित हो चूका है I आज , इस वेबगोष्ठी में मैं आप सभी से यह शुभ समाचार साझा कर रहा हूँ, मुझे लगता है कि यह वास्तव में सौभाग्य की बात है I
सूती मार्ग एवं रेशम मार्ग एक दूसरे की सुन्दरता को बढ़ाने में सहायक
पूर्वी सभ्यता ने विश्व सभ्यता के विकास और प्रगति में महान योगदान दिया है। यह योगदान मुख्य रूप से सूती मार्ग एवं रेशम मार्ग द्वारा सफ़ल हो पाया I जैसा कि सर्वविदित है कि सूती मार्ग एवं रेशम मार्गद्वारा केवल कपास और रेशम आदि सामानों का आदानप्रदान हुआ बल्कि इन मार्गों से सांस्कृतिक – वैचारिक आदानप्रदान भी हुआ I इसके अलावा , ये दोनों मार्ग एक – दुसरे की सुन्दरता को बढ़ाते आ रहे हैं , आपमें मैं हूँ, मुझमें आप हैं , दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे हैं I
“एक पट्टी एक मार्ग ” अंतरराष्ट्रीय सहयोग शिखर सम्मलेन पेइचिंग में १४ -१५ मई २०१७ को आयोजित किया गया जो अत्यंत सफल रहा I परन्तु भारत इसमें शामिल नहीं हुआ I यद्यपि “एक पट्टी एक मार्ग ” प्राचीन रेशम मार्ग एवं समुद्री रेशम मार्ग का ही आधुनिक संस्करण है जिसका भारत से बहुत ही घनिष्ट संबध है I उदहारण के लिए हम सम्मलेन के लोगो (logo ) को लेते हैं , “एक पट्टी एक मार्ग ” में बहुत से भारतीय तत्त्व हैं , अंग्रेजी के सिल्क के S के अलावा, शीआन शहर का प्रसिद्ध “पैगोड़ा ” भी भारत से आया है जो भारतीय स्तूप का चीनी संस्करण है I अंग्रेजी का Silk शब्द संस्कृत से विकसित हुआ है , “पैगोड़ा ” का स्वरुप और उच्चारण दोनों भारत से आया है I अंतरराष्ट्रिय सहयोग शिखर सम्मलेन की समाप्ति के बाद विश्व प्रसिद्ध <मो ली ह्वा > गीत गाया गया I यह चीन के च्यांगसु प्रान्त का लोक गीत है I चीन के छिंग राजवंश (१६४४ से १९१२) के समय चीनी राजा के एक मंत्री ली होंग चांग (१८२३ – १९०१ ) यूरोप में एक सम्मलेन में भाग लेने गये थे, सम्मलेन के प्रारम्भ में सभी प्रतिनिधियों ने अपने अपने देश के राष्ट्रीय गीतों का गायन किया , उस समय चीन में कोई राष्ट्रीय गीत नहीं था , मंत्री ली होंग चांग ने अपने क्षेत्र के लोकगीत <मोली ह्वा > गाया , उसके बाद यह गीत विश्व प्रसिद्ध हो गया I यह “मोली ” शब्द भारत से आया है , “मोली ” शब्द संस्कृत के माली और मल्लिका शब्द से आया है , यह एक फुल है , जिसे स्थानीय भाषा में चमेली के फुल के नाम से जाना जाता है I
कपास का उत्पादन स्थल भारत है , कपास की खोज एवं उत्पादन मानव जाति के लिए सबसे अधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है , यह भारतीय लोगों द्वारा मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा योगदान है I अब तक, सूती कपड़े अभी भी सबसे महत्वपूर्ण, पर्यावरण के अनुकूल और सबसे व्यावहारिक कपड़ा सामग्री हैं।
मध्य युग में, कपास और कपास कताई तकनीक “कपास मार्ग ” द्वारा पुरे विश्व में पहुँच गया । चीन का हायनान द्वीप भौगोलिक रूप से नजदीक होने के कारण वहां ली त्सू जनजाति के लोग सीखने की सतत प्रकिया से कताई तकनीक को अद्यतन एवं परिवर्तित करते रहे ।ह्वांग ताओ फ़ो के हायनान द्वीप पहुँचने के बाद कपास की बुआई , कताई ,बुनाई और रंगाई सबसे तेज और सबसे अच्छी हो गयी ।ह्वांग ताओ फ़ो इन तकनीकों को सीखने के बाद, वह उन्हें अपने गृहनगर शंघाई ले आई और उन्हें स्थानीय रेशम बुनाई कौशल के साथ जोड़कर कपास बुनाई के कौशल में नई प्रगति की तरफ प्रेरित किया ।
चीन का कपास तकनीक भारत से आया है , कपास की किस्में भी भारत से ही आई हैं । कपास का प्राचीन नाम “सिबा ,पेंतंद्रा ” मलेशियाई भाषा के शब्द “कपोक ” से अनुदित है ।यह कापोक की रुई है, लेकिन चीन के थांग और सोंग काल के लोग कापोक की रुई और कपास की रुई में फर्क नहीं करते थे I चीन में कपास के प्रवेश के दो मुख्य मार्ग हैं , पहला पूर्वी हान राजवंश के समय में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से होकर चीन के युन्नान में प्रवेश किया , युन्नान के अल्पसंख्यक जाति समूहों में कपास से भिन्न एक अन्य प्रकार का रुई प्रचलन में था , दूसरा दक्षिण –उत्तर राजवंश के काल में उत्तरी मार्ग से मार्ग से शिनच्यांग में प्रवेश किया I कपास की बड़े पैमाने पर खेती और सूती कपड़े का बड़े पैमाने पर उत्पादन सोंग राजवंश के अंत में तथा युआन राजवंश के प्रारंभ में शुरू हुआ। (” चीनी पारंपरिक संस्कृति शब्दकोश “पृष्ठ 69) , ह्वांग ताओ फ़ो का जन्म सही समय पर हुआ था और उन्होंने च्यांग नान क्षेत्र में कपास के संवर्धन और विकास में अपना अमर योगदान दिया।
भारत की कपास प्रौद्योगिकी ने ब्रिटेन की आधुनिक अर्थव्यवस्था के विकास में बहुत योगदान दिया है। ब्रिटेन मूल रूप से अटलांटिक महासागर में एक अनाम द्वीप देश था, और कोयला खनन और कपास कताई पर निर्भर था। कोयला ऊर्जा और यांत्रिक शक्ति प्रदान करता है, और यह सूती कपड़ा उद्योग ब्रिटेन को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में समृद्ध बनाता था । सूती वस्त्र उद्योग ब्रिटेन के लिए पहला सोना सिद्ध हुआ । सूती वस्त्र उद्योग का कच्चा माल मुख्य रूप से भारत से आता है, और सूती वस्त्र प्रौद्योगिकी भी भारत की मूल तकनीक के आधार पर यंत्रीकृत था । इसलिए, भारत को इंग्लैंड की रानी के मुकुट में जड़ा हुआ गहना कहा जाता था ।
निष्कर्ष
ऐतिहासिक कारणों से , कपास मार्ग के ऐतिहासिक योगदान का सावधानीपूर्वक अध्ययन नहीं किया गया है, और भारतीय लोगों का मानव जाति को दिए गए उपलब्धियों का सही ढंग से प्रदर्शन नहीं किया गया है। अतीत को जानना और वर्तमान से सीखना चाहिए , केवल यह जानना कि हम कहाँ से आए हैं के द्वारा ही हम भविष्य की ओर समुचित ढंग से आगे बढ़ सकते हैं। कपास मार्ग का अध्ययन करने के लिए बहुत प्रयास करने की आवश्यकता है। हम कपास मार्ग और “ह्वांग ताओ फ़ो ” पर आधारित फिल्मों और टीवी श्रृंखलाओं का निर्माण कर सकते हैं, और हायनान द्वीप जहाँ पर ह्वांग ताओ फ़ो 20 वर्षों तक रही थी वहां हम पोया एशिया फोरम के तत्वाधान में “कपास मार्ग संगोष्ठी ” का आयोजन कर सकते हैं ।
नोट – काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित “बहुभाषावाद एवं बहुसंस्कृतिवाद – भाषाई व् सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य” वेबगोष्ठी में दिया गया व्याख्यान (17-18 मार्च 2021)