बाबू देवकी नंदन खत्री

बाबू देवकी नंदन खत्री का जन्म 18 जून 1861 को बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (वर्तमान बिहार, भारत) के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा गाँव में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला ईश्वरदास था। उनके पूर्वज पंजाब (लाहौर) के निवासी थे और मुगलों के शासनकाल के दौरान उच्च पदों पर आसीन थे। महाराज रणजीत सिंह के बेटे शेर सिंह के शासनकाल के दौरान लाला ईश्वरदास बनारस में बस गए।

खत्री जी की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू-फारसी में हुई। बाद में उन्होंने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी का भी अध्ययन किया। प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वे गया के टेकारी राज पहुँचे और वहाँ के राजा के यहाँ नौकरी कर ली। बाद में उन्होंने वाराणसी में ‘लहरी प्रेस’ नाम से एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की और 1900 में हिंदी मासिक सुदर्शन का प्रकाशन शुरू किया।

देवकी नंदन खत्री का निधन 1 अगस्त 1913 में हुआ, वे अपने पीछे हिंदी रहस्य उपन्यासों का एक संग्रह छोड़ गए जो युवा पाठकों को आकर्षित करना जारी रखते हैं। उनके उल्लेखनीय कार्यों में से एक, ‘चंद्रकांता’ को 90 के दशक के मध्य में एक टेलीविजन श्रृंखला में बदल दिया गया था, हालांकि कथानक और पात्रों के संदर्भ में टेलीविजन दर्शकों के अनुरूप महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए थे। ‘चंद्रकांता’ खत्री के सबसे प्रिय उपन्यास के रूप में सामने आता है, और इसके बॉलीवुड फिल्म में जल्द ही रूपांतरण की अफवाहें हैं। यदि सब कुछ योजना के अनुसार होता है, तो हम अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन को फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्देशित देवकी नंदन खत्री की ‘चंद्रकांता’ के सिनेमाई प्रस्तुतीकरण में प्रमुख भूमिकाएँ निभाते हुए देख सकते हैं।

सत्तर के दशक के शुरुआती वर्षों की बात है मैं उन दिनों जूनियर कक्षाओं पाँच, छह, सात का छात्र था तब मैं पहली बार बाबू देवकीनंदन खत्री जी की इन चमत्कारिक रचनाओं को पढ़कर उनके जादू में खो गया था।

बाबू देवकी नन्दन खत्री ने हिन्दी में “चन्द्रकान्ता” और “चन्द्रकान्ता सन्तति” नामक उपन्यास लिखे थे जिनका कथानक बिहार के चुनार, जमानियां, रोहतासगढ के जिलों में ज्यादातर घूमता था और कथा “अय्यारी” और तिलस्म के विषयों पर आधारित थी। 17 वीं शताब्दी में राज परिवार अय्यार (जासूस) रखता था। उपन्यास में विजयगढ के महाराज सुरेन्द्रसिंह के पुत्र वीरेन्द्र सिंह और उन के मुख्य अय्यार जीत सिहं के पुत्र तेज सिंह मुख्य पात्र हैं। वीरेन्द्र सिहं कुमारी चन्द्रकान्ता के प्रेम में तिलस्मी (रहस्यमयी) महलों, कन्दराओं जंगलों में उसे ढूंढते और बिछुडते हैं और अपने अय्यारों की मदद से बचते रहते हैं। इसमें खलनायक हैं चुनार के राजा शिवदत और उसके बेटे।

चन्द्रकान्ता के चार भाग हैं। उस के बाद कथानक चन्द्रकान्ता सन्तति में चलता है जिसके छह भाग हैं। भाग का मतलब 6 उपन्यास। इसके साथ ही इसी कथानक से जुड़े पात्र भूतनाथ की कहानी आठ उपन्यासों में चलती है। विशेष बात यह है कि कौहतूल बना रहता है और एक बार पुस्तक शुरू करने के बाद आप उसे छोड नहीं सकते।

इस पुस्तक संग्रह को पढ़ने के लिये हजारों उर्दू प्रेमियों ने हिन्दी सीखी थी इसीलिए इस संग्रह का हिन्दी प्रचार में बहुत योगदान है।

भूत नाथ देववकीनन्दन बाबू के पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने लिखा था। उन्होंने भारत को विदेशियों से आजाद करवाने पर वैज्ञानिक उपन्यास भी लिखे जिनमें प्रतिशोध, लालपंजा, रक्तमण्डल, और सफेद शैतान प्रसिद्ध हैं। जिनमें जासूसी कौहतूल और वैज्ञानिक मृत्यु किरणें आदि बनाने का वर्णन है। दो भागों में रोहतास मठ भी लिखा था जिसे चन्द्रकान्ता संतति का उपसंहार कहा जा सकता है। यह उपन्यास आनंद मठ के लेखक बंकिमचन्द्र और चन्द्रशेखर आजाद आदि क्रान्तिकारियों के प्रेरणा स्रोत थे।

बाबू देवकी नन्दन खत्री के सभी उपन्यास लहरीबुक डिपो वाराणसी से प्रकाशित हुये थे। चन्द्रकान्ता उपन्यास पर नीरजा गुलेरी का टीवी सीरियल भी बनाया गया था जो बहुत लोकप्रिय था लेकिन असल में नीरजा गुलेरी अपनी TRP बनाने के चक्कर में बाबू देवकी नन्दन के उपन्यासों जैसा माहोल पैदा नहीं कर सकी। उसकी तुलना में मंजू बंसल असरानी ने भी वही सीरियल पुनः बनाया था जिस में उपन्यास का सही माहौल पैदा किया गया था मगर किन्हीं कारणों से वह सीरियल पूरा न हो सका।

अंग्रेजी में लिखे गये आधुनिक हैरी पॉटर से भी अधिक रहस्यमयी चन्द्रकान्ता सीरीज भारतीय साहित्य की अनमोल विरासत है।

(साभार -रजनीकांत शुक्ला (Rajanikant Shukla) के फेसबुक वॉल से)

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