
डॉ शिप्रा शिल्पी
आज के आपाधापी युग में मन खोखले हो रहे हैं
उन्हें प्रेम से भरिए, नफरतें अजाब है, जहर भी
बचा कर रखे अपने सोने से मन को
पूरा विश्व गर्मी से झुलस रहा है पर सच तो ये है इस बाहरी ताप को मिटाने के लाखों उपाय है, किंतु इनसे भी तीव्र होती है मन की जलन, नफरत की आग, ईर्ष्याभाव, जिसे सौतिया डाह भी कह सकते हैं।
यदि एक बार आप इस आग के दावानल में फंस गए तो फिर बिना माचिस, बिना चकमक पत्थर आपका तिल तिल कर खाक होना तय है। सच कह रही हूं- कोई आग उतना आपको खाक नहीं करती, जितनी नफ़रत कर देती है। दीमक की तरह आपके पूरे वजूद को चट कर जाती है और आप इस दलदल में धंसते चले जाते हैं। ये जानते हुए भी जो आपको मिल रहा वो आपका भवतव्य है, आपके कर्म है और आपकी मेहनत है।
नैराश्य स्वाभाविक है जब लोग छल से, कपट से आपकी मेहनत का फल खा जाते हैं। आप योग्य होते हैं पर दूसरे अयोग्य होने पर भी आपका स्थान ले लेते हैं। ये उनका भाग्य है। पर नफरत सबसे पहले हमें खोखला करती है जिसके प्रति होती है वो आनंद उठा रहा होता है और आप खुद को खोखला कर रहे होते हैं, जल कुढ़ कर।
ज्यादा अनुभव नहीं है पर जितना है, एक बात समझ आती है कि जितना समय हम किसी के प्रति नफरत में बिताते हैं, यदि उतना स्वयं से और अपनों से प्रेम करने में व्यतीत करने में बीते, तो जीवन और मन कुंदन बन जाएगा, क्योंकि जब आपके अपने कम या ज्यादा में आपके साथ खुश होते हैं तो कुछ और चाहिए भी नहीं।
आज के आपाधापी युग में मन खोखले हो रहे है
उन्हें प्रेम से भरिए, नफरतें अजाब है, जहर भी
बचा कर रखे अपने सोने से मन को।
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