समय कैसे उड़ता है … एक आत्मीय स्मृति

अतिला कोतलावल, श्रीलंका

आज एक पुरानी फेसबुक स्मृति ने मन को भीतर तक छू लिया — एक ऐसी स्मृति, जो मुझे जीवन के एक विशेष अध्याय की ओर ले गई — श्रीलंका में केन्द्रीय हिंदी संस्थान (KHS) परीक्षाओं की शुरुआत।

2005 में भारत से 500 – हिंदी शोध डिप्लोमा पूर्ण करने के बाद जब मैं श्रीलंका लौटी, तो मेरे मन में एक विनम्र भावना थी — क्यों न हिंदी भाषा को यहाँ एक मान्य और संगठित माध्यम के द्वारा आगे बढ़ाया जाए? भारत से लौटने के बाद, मैंने एक दिन भारतीय उच्चायोग से भेंट की और उन्हें KHS परीक्षाओं की आवश्यकता तथा उनके वैज्ञानिक ढांचे के बारे में बताया।

उस समय श्रीमती नग़मा मलिक, प्रथम सचिव के रूप में कार्यरत थीं। उनका प्रोत्साहन, सहयोग और खुले विचारों ने मुझे हिम्मत दी। उनके समर्थन और कई शुभचिंतकों के आशीर्वाद से अगले  वर्ष सन् 2006 में  KHS आगरा से एक प्रतिनिधिमंडल श्रीलंका आया। कई चर्चाओं और बैठकों के पश्चात 2007 से KHS परीक्षाएं श्रीलंका में औपचारिक रूप से आरंभ हुईं।

उसी समय भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (अब स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र) ने हिंदी शिक्षकों के लिए आवेदन आमंत्रित किए। तब तक मैं हिंदी संस्थान श्रीलंका की संस्थापक निदेशक थी, जिसे मैंने वर्ष 2000 में प्रारंभ किया था। करीब सैकड़ों आवेदनों में से मुझे यह अवसर मिला कि मैं चार नये शिक्षकों के टीम में चुनी गयी — यह मेरे लिए सौभाग्य था। इसका श्रेय मेरी प्रभावशाली हिंदी बोलचाल की क्षमता और आदरणीय प्रो. अश्विनी कुमार श्रीवास्तव जी द्वारा मेरे साक्षात्कार के समय दी गई मज़बूत अनुशंसा को जाता है।

🙏 सर, मैं आपके विश्वास और सहयोग के लिए सदैव आभारी रहूँगी।

मैं इस अवसर पर अपने प्रिय शिक्षकों और मार्गदर्शकों को भी सादर धन्यवाद देती हूँ:

प्रो. बीना शर्मा जी, वाशिनी शर्मा जी, मीरा सरीन जी, रजिस्ट्रार चंद्रकांत त्रिपाठी जी और वे सभी जिन्होंने KHS और श्रीलंका को जोड़ने में मार्गदर्शन दिया।

हिंदी के प्रति उत्साह बढ़ने पर, मैंने कुरुनेगला में एक नया परीक्षा केंद्र स्थापित करने का विनम्र निवेदन किया। माँग को देखते हुए, कुरुनेगला कुछ वर्षों तक एक सक्रिय केंद्र रहा — जिससे हमारे संस्थान ही नहीं, आसपास के अन्य छात्रों को भी लाभ मिला।

इस चरण में श्री शान्तनु दास शर्मा, जो उस समय श्रीलंका में कंट्री मैनेजर थे, मेरे लिए एक मार्गदर्शक और सहयोगी बने।

🙏 श्रीमान, आपके सहयोग और दिशानिर्देश के लिए हृदय से धन्यवाद।

बाद में, फिर से KHS का प्रतिनिधिमंडल आया, और मुझे उनके साथ सभी औपचारिक बैठकों में भाग लेने का अवसर मिला। प्रयासों के फलस्वरूप कैंडी में सहायक उच्चायोग के अंतर्गत एक नया परीक्षा केंद्र स्थापित हुआ — जिससे कोलंबो से दूर क्षेत्रों के छात्रों को परीक्षाओं की सुविधा मिली।

उस समय कैंडी के सहायक उच्चायुक्त श्री राधा वेंकटरमण जी और संस्कृति अटैची श्रीमती प्रज्ञा सिंह जी ने बहुत सकारात्मक और सहयोगात्मक रुख अपनाया।

🙏 आप दोनों का हृदय से धन्यवाद — आपके सहयोग से ही कैंडी शाखा की स्थापना संभव हो सकी।

इसके साथ मुझे एक और सौभाग्य प्राप्त हुआ — कैंडी में सहायक उच्चायोग के अंतर्गत KHS परीक्षाओं की हिंदी शिक्षिका के रूप में सेवा करने का अवसर मिला।

यह मेरे लिए सम्मान की बात रही, जिसे मैं सदा कृतज्ञता के साथ याद रखती हूँ।

🌿 आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो यह अनुभव किसी व्यक्तिगत गौरव का नहीं, बल्कि हिंदी सेवा के एक सामूहिक प्रयास का साक्षी है। मेरा योगदान केवल एक छोटा सा हिस्सा था, जिसे मैंने पूरे मन, प्रेम और निष्ठा से निभाया।

🙏 इस मार्ग पर साथ चलने वाले हर व्यक्ति को हृदय से धन्यवाद। जो भी छोटा योगदान मैं दे सकी, वह मैंने पूरी श्रद्धा और समर्पण से किया।

मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हूँ कि मुझे हिंदी जैसी सुंदर भाषा की सेवा का अवसर मिला।

“मुझे गर्व है कि मैं हिन्दी सेवा के इस कार्य की सेतु बन सकी। यह सब आपके आशीर्वाद और सहयोग से ही संभव हो पाया।”

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