केंसिंग्टन गार्डन की एक शाम…

अलका सिन्हा

3 अगस्त 2025

आज हम केंसिंग्टन गार्डन गए। हरे-भरे पेड़ों के बीच, झील के किनारे टहलते हुए, हंसों और बतखों के साथ खेलते-खिलखिलाते हुए ऐसा लगा जैसे बचपन लौट आया हो। हम जैसे फिर से वही मासूम बच्चे बन गए थे जो बिना चिंता के, प्रकृति की गोद में सपने बुनते हैं। यह लंदन का वही सुंदर और ऐतिहासिक उद्यान है जहां अंग्रेजी कथाकार जे. एम. बैरी की कल्पना में पीटर पैन ने पहली बार उड़ान भरी थी। मन पूछ ही बैठा, “याद है पीटर पैन?”

‘पीटर पैन इन केन्सिंग्टन गार्डेन्स’ कल्पना के पंखों पर उड़ती हुई, जे. एम. बैरी की विलक्षण कहानी है जहां एक अद्भुत संसार की नींव रखी गई है। वह संसार, जिसमें बचपन कभी वृद्ध नहीं होता और कल्पना सदैव पुष्पित-पल्लवित रहती है।

लंदन के एक घर में जन्मा पीटर पैन मानता था कि हर बच्चा जन्म से पहले एक पक्षी होता है और इसलिए वह उड़ सकता है। एक दिन जब उसकी मां सो रही थी, पीटर खिड़की से उड़ गया और आ पहुंचा केंसिंग्टन गार्डन में, जो केवल पार्क नहीं, उसके लिए जादुई दुनिया थी।

यहां उसने देखा — बोलते पक्षी, रानी परियां, अदृश्य हाथों से चलती शिशु-गाड़ियां और कल्पनालोक की एक भरी-पूरी दुनिया। वहां उसकी मुलाक़ात हुई एक बुद्धिमान कौवे सोलोमन कॉ से, जिसकी दी हुई घोंसले की नाव पर सवार होकर वह घुमावदार झील में सैर करता, उड़ता और सपनों की दुनिया में विचरण करता।

पीटर उस मायावी दुनिया में रम गया। पर एक दिन जब मां की याद आई तब वह लौट चला। पर जब घर पहुंचा, तो देखा — उसकी मां की गोद में कोई और बच्चा था। पीटर का दिल टूट गया। वह वापस केंसिंग्टन गार्डन लौट आया हमेशा के लिए। वहां उसने बचपन को थाम लिया, बड़ा न होने का वादा किया, और परियों के संग चांदनी रातों में नाचने लगा — कल्पना की दुनिया में मुक्त और अमर!

हम सबके भीतर कहीं न कहीं एक पीटर पैन छिपा है जो उड़ना चाहता है, कल्पना करना चाहता है, जो ज़िंदगी को खेल समझता है, और जिसे अब भी लगता है कि बत्तखों से बात हो सकती है, और हर पार्क में एक परी छुपी बैठी है।

कभी-कभी ज़िंदगी की दौड़ में जब थक जाएं, तो केंसिंग्टन गार्डन की तरह किसी जगह बैठकर उड़ान का सपना देख लेना चाहिए… कौन जाने, वहां कोई पीटर पैन अब भी हमारा इंतज़ार कर रहा हो…

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