सीमा- प्रहरियों की कलाइयों पर बंधे रेशमी धागे

 – अलका सिन्हा 

सावन की रिमझिमी फुहार में जब बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के गीत गाती रेशमी धागों की मोहक राखियां बनाती हैं तब लगता है जैसे मौसम भी दुआएं भर-भर बरसाता है। तब हम स्कूल प्रोजेक्ट के तौर पर राखियां बनाया करते थे और अगले दिन उन राखियों को स्कूल में सभी के बीच सजाया जाता था। उन दिनों भाइयों को अपने हाथ से बनी राखियां पहनाने का चलन था। बाजारवाद की दौड़ में आजकल यह चलन थोड़ा बदल गया है। अब दुकानें सुंदर-सुंदर राखियों से सजी होती हैं और बहनें उनमें से भाई के लिए राखी पसंद कर खरीद लाती हैं। खुद भी भर-भर हाथ मेहंदी रचवाती हैं और नए कपड़े पहन कर भाई के माथे पर चंदन-रोली का तिलक कर कलाई पर राखी बांधती हैं।

बदले हुए इस परिवेश में भी मुझे स्कूल के दिनों की याद उल्लसित कर जाती है। याद आता है एक दृश्य करगिल युद्ध के समय का। उस दौरान ‘दैनिक जागरण समूह’ ने एक अभियान छेड़ा था जिसके तहत देश की बहनों ने सीमा पर लड़ रहे हमारे फौजी भाइयों के लिए अपने हाथों से राखियां बनाई थीं। हाथ से बनी इन राखियों को इकठ्ठा कर, जागरण समूह भेजने वालों में मैं भी शामिल थी। उन दिनों मैं पालम, नई दिल्ली में रहती थी और वहां का माहौल थोड़ा कम शहरी था। मैंने बहुत उत्साह से अपने घर के आसपास भी इसका प्रचार किया। वहां की बच्चियां मेरे इस अनुरोध पर हुलस कर आगे आईं और उन्होंने तरह-तरह की राखियां बनाकर मेरे आगे रख दीं। सभी के चेहरे पर गजब का उत्साह था। वे ऐसे चहक रही थीं जैसे वे भी सरहद पर लड़ाई लड़ने जा रही हैं। एक साधारण सा उपक्रम कितनी सादगी और मुस्तैदी के साथ हमें अपने अनदेखे, अनाम भाइयों के साथ गहरे संबंध से जोड़ रहा था, यह अहसास अद्भुत था। हाथ से बनी राखियों में पिरोया हर रेशमी धागा हमारे फौजी भाइयों के लंबे और यशस्वी जीवन की कामना से दिपदिपाता उनका रक्षा कवच बन गया था। किसी की कलाई पर बंधा एक कोमल तार कैसे किसी के भीतर अटूट जिजीविषा का संचार करता है, यह देखने लायक था।

भाई-बहन के बीच का यह संबंध रेशमी धागों में निखर उठता है। अक्षत-रोली का मंगल टीका लगाते हुए बहनें भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। हमारे सैनिक पूरे देश की रक्षा का वचन देते हैं, फिर रक्षाबंधन के पावन अवसर पर देश अपने फौजी भाइयों को कैसे भूल सकता है। इसलिए सावन के मौसम में जब दुकानें स्वादिष्ट घेवर और रंगीन राखियों से सजी होती हैं तब देश की बहनें रेशमी धागों से शुभकामना गीत रचती हैं और भाई भी जिसे पाकर वज्र की तरह अदम्य साहस और शौर्य से भर उठते हैं। स्कूल की नन्हीं बच्चियां रंगबिरंगे धागों में अपनी अनगढ़ कविताएं पिरोती हैं। सुंदर राखियां बनाते हुए कहीं न कहीं हम भी देश भक्ति के उस जज्बे से जुड़ जाते हैं जो इन फौजी भाइयों की रगों में बहता है। हमारे भीतर यह विश्वास और भी प्रगाढ़ हो जाता है कि ये कोमल धागे हमारे फौजी भाइयों की हर हाल में रक्षा करेंगे, दुश्मन की निर्मम गोली इन कोमल भावनाओं से परास्त होकर लौट जाएगी और देश में अमन-चैन बहाल होगा। स्कूली बच्चे, बहनें, मांएं इन जवानों पर नाज करती हैं और इनकी रक्षा के लिए मंगलदीप जलाती हैं। सियाचिन के ग्लेशियर हों या लेह-लद्दाख की बर्फीली पहाड़ियां, सरहद पर तैनात जवानों की सूनी कलाइयों पर सजी राखियां हमारे सैनिकों के भीतर फौलादी जज्बा भरती हैं। सगे-संबंधियों से दूर निर्जन वन में, रेतीले रेगिस्तान  में, बर्फीली चट्टानों के बीच तोप और मशीनगन संभाले, अपलक ड्यूटी निभाते इन फौजियों के पास जब ये कोमल राखियां पहुंचती हैं तब इनकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। भावों का यह कोमल इजहार उनके भीतर अदम्य साहस और उत्साह का संचार करता है। वे महसूस करते हैं कि उनका यह एकांतवास उन्हें पूरे देश से जोड़ रहा है। देशवासी उनके लिए प्रार्थनाएं कर रहे हैं, उनका संबंध किसी एक परिवार या गांव से नहीं, देश भर से है। गुमनाम जगहों पर तैनात होने के  बावजूद देशवासियों का भेजा रक्षा सूत्र जब वहां पहुंचता है जहां कोई चिड़िया भी नहीं चहकती तब राखी के ये धागे उनके अकेलेपन में भावनाओं की रंगोली सजाने लगते हैं। 

इन सैनिकों की पहचान देशभक्ति की फिल्मों में अभिनय करने वाले हीरो की तरह भले ही न बनती हो मगर ये असल हीरो हैं। सरहद पर लोहा लेते इन जवानों को हम चेहरे या नाम से नहीं बल्कि उनकी वर्दी से पहचानते हैं। जब देश उत्साह से होली-दिवाली का त्योहार मना रहा होता है तब ये सैनिक अपने परिजनों से दूर किसी बियाबान में अपनी ड्यूटी निभा रहे होते हैं। उनकी इस निष्ठा की बदौलत ही देश चैन और सुकून से अपने त्योहार मना पाता है। किसी देशवासी के हाथ का लिखा एक खत इन्हें कितनी खुशी से भर देता है, इसका जिक्र ये जवान अक्सर ही किया करते हैं। हमारे भीतर अपने इन भाइयों के प्रति जो स्नेह है वह धर्म या जाति से परे है और सही अर्थों में देश को परिवार की ऊष्मा से भरता है। प्रेम और आस्था के इस अनमोल रिश्ते को इन रेशमी धागों से बेहतर और कौन व्यक्त कर सकता है?

क्या ही अच्छा हो कि हम उन्हें यह भरोसा दिला सकें कि ये रिश्ता किसी त्योहार को मनाने का एक उपक्रम भर नहीं है बल्कि हम सही मायने में तुम्हारे परिजनों के देखभाल की जिम्मेदारी लेते हैं। तुम सीमाओं पर मुस्तैदी से डटे रहो, यहां तुम्हारे गांव-घर की सेवा में हम कहीं पीछे नहीं रहेंगे।

रोली अक्षत से सजी थाली लेकर बहनें गा रही हैं कि मेरे भाई के सिर पर सदा विजय का ताज सजता रहे और भाभी की मांग का सिंदूर झिलमिलाता रहे…

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