
श्री गणेश चतुर्थी: विघ्नहर्ता की आराधना और एक प्रसिद्ध आरती की कहानी

~ विजय नगरकर, अहिल्यानगर महाराष्ट्र
यह पावन पर्व हर वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जब विघ्नहर्ता, बुद्धि और समृद्धि के दाता श्री गणेश जी का जन्मोत्सव पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर घर-घर में गणपति बाप्पा की मूर्ति स्थापित की जाती है, मोदक का भोग लगाया जाता है, और आरतियां गाई जाती हैं। इनमें से एक सुप्रसिद्ध हिंदी आरती है “शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको”, जिसके रचयिता महाराष्ट्र के प्रसिद्ध गणेश भक्त श्री संत कवि गोसावी नंदन हैं। वे “श्री ज्ञान मोदक” नामक ग्रंथ के रचयिता भी हैं और मराठवाड़ा क्षेत्र के बीड जिले के मूल निवासी थे। इस लेख में हम गणेश चतुर्थी के महत्व, इतिहास, इस आरती की रचना और रचयिता के योगदान पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
गणेश चतुर्थी का इतिहास: प्राचीन परंपरा से आधुनिक उत्सव तक
गणेश चतुर्थी का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और यह हिंदू धर्म की गहन आस्था से जुड़ा हुआ है। पुराणों के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न काल में भगवान गणेश का जन्म हुआ था। स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, माता पार्वती ने स्नान के समय द्वार पर पहरा देने के लिए मिट्टी से एक बालक की रचना की, जिसे जीवन प्रदान किया। जब भगवान शिव लौटे और बालक ने उन्हें रोका, तो क्रोध में शिवजी ने बालक का सिर काट दिया। बाद में माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सिर लगाकर उसे पुनर्जीवित किया, और इस प्रकार गणेश जी विघ्नहर्ता के रूप में अवतरित हुए। इस जन्म की स्मृति में गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।
ऐतिहासिक रूप से, यह पर्व प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है, लेकिन इसका सार्वजनिक स्वरूप 17वीं शताब्दी में मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने प्रदान किया, जिन्होंने इसे सामाजिक एकता और राष्ट्रीय भावना जागृत करने के लिए राज्य स्तर पर मनाया।
19वीं शताब्दी में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे एक बड़े सामाजिक उत्सव का रूप दिया। तिलक जी ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की, ताकि ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोगों को एकजुट किया जा सके।
इससे यह पर्व महाराष्ट्र में विशेष रूप से लोकप्रिय हुआ और आज पूरे भारत में 10 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मूर्ति स्थापना, पूजा-अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रम और अंत में विसर्जन शामिल होता है। 2025 में यह पर्व 27 अगस्त से प्रारंभ होगा और 6 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होगा।
गणेश चतुर्थी का महत्व: आशा, समृद्धि और विघ्न निवारण
यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, अर्थात वे सभी बाधाओं को दूर करते हैं। इसलिए, नए कार्य की शुरुआत से पहले उनकी पूजा की जाती है। पर्व के दौरान मोदक का विशेष महत्व है, क्योंकि गणेश जी को मोदक प्रिय है। कथा के अनुसार, मोदक ज्ञान और आनंद का प्रतीक है, और इसे भोग लगाने से भक्तों को बुद्धि और सुख प्राप्त होता है।
यह उत्सव लोगों को एक साथ लाता है, जहां पंडालों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य-गान और सामाजिक जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से आजकल इको-फ्रेंडली मूर्तियों का उपयोग बढ़ रहा है, ताकि विसर्जन से जल प्रदूषण न हो। कुल मिलाकर, गणेश चतुर्थी आशा, समृद्धि और नई शुरुआत का संदेश देता है।
श्री गणेश जी की सुप्रसिद्ध हिंदी आरती: “शेंदुर लाल चढ़ायो”
गणेश पूजा में आरतियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें “जय गणेश जय गणेश देवा” के अलावा “शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको” एक अत्यंत लोकप्रिय हिंदी आरती है, जो महाराष्ट्र और हिंदी भाषी क्षेत्रों में गाई जाती है। यह आरती गणेश जी की महिमा का वर्णन करती है, जिसमें उनके रूप, शक्तियों और भक्तों पर कृपा का उल्लेख है। आरती के बोल सरल और भावपूर्ण हैं, जो भक्तों को आनंदित करते हैं। पूर्ण आरती इस प्रकार है:
शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।
हाथ लिए गुडलद्दु सांई सुरवरको।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥1॥
जय देव जय देव…
अष्ट सिद्धि दासी संकट को बैरि।
विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी।
कोटि सुरज प्रकाश ऐबी छबि तेरी।
गंडस्थल मदमस्तक झूलत शशि बिहारी ॥2॥
जय देव जय देव…
भावभगत से कोई शरनागत आवे।
संतति संपदा वहि भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।
गोसावी नंदन निशिदिन गुण गावे ॥3॥
जय देव जय देव…
यह आरती गणेश जी के बाल रूप, उनकी शक्तियों और भक्तों के लिए वरदानों का गुणगान करती है। अंतिम पद में “गोसावी नंदन” का उल्लेख रचयिता की पहचान देता है, जो भक्ति साहित्य में सामान्य परंपरा है।
आरती के रचयिता: श्री संत कवि गोसावी नंदन
इस आरती के रचयिता महाराष्ट्र के गणेश भक्त श्री संत कवि गोसावी नंदन हैं, जो मराठवाड़ा क्षेत्र के बीड जिले के मूल निवासी थे। वे एक संत कवि थे, जिन्होंने गणेश जी की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया। गोसावी नंदन “श्री ज्ञान मोदक” नामक ग्रंथ के रचयिता भी हैं, जो संभवतः गणेश जी से जुड़े ज्ञान और भक्ति के विषयों पर आधारित है। “ज्ञान मोदक” नाम से ही स्पष्ट है कि यह ग्रंथ ज्ञान को मोदक की तरह मीठा और आनंददायक रूप में प्रस्तुत करता होगा, क्योंकि मोदक गणेश जी का प्रिय भोजन है। उनकी रचनाएं महाराष्ट्र की लोक भक्ति परंपरा से जुड़ी हैं, जहां संत कवि अपनी रचनाओं में स्वयं का नाम शामिल करते थे ताकि भक्तों को उनकी भक्ति का स्मरण रहे।
गोसावी नंदन की इस आरती ने लाखों भक्तों के हृदय में स्थान बनाया है और गणेश चतुर्थी के दौरान इसे गाने से विशेष पुण्य प्राप्ति का विश्वास है। उनकी अन्य रचनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी सीमित है, लेकिन उनकी भक्ति का प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है।
निष्कर्ष: गणपति बाप्पा मोरया!
श्री गणेश चतुर्थी विघ्नों के नाश और नई ऊर्जा का प्रतीक है। इस पर्व पर “शेंदुर लाल चढ़ायो” जैसी आरतियां गाकर हम संत कवि गोसावी नंदन जैसे भक्तों की विरासत को जीवित रखते हैं। यह उत्सव हमें सिखाता है कि जीवन में बाधाएं आती हैं, लेकिन भक्ति से सब कुछ संभव है। एक बार पुनः सभी को गणेश चतुर्थी की अनंत शुभकामनाएं! गणपति बाप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया! 🙏🚩